Thursday 24 December 2020

वापस आ जाओ....

हे ईश्वर

वो सारे दिन वापस आ गए हैं। वो फिर से नाराज़ हैं और इनको मनाना दिन पर दिन मुश्किल होता जा रहा है। मैं अकेली तो पहले भी थी पर वो मेरे साथ थे। दूर होकर भी हमेशा मेरे साथ थे। अब न जाने क्यूँ ऐसा लगता है अब मैं अकेली हूँ। उनके बिना एक दिन भी काटना कितना मुश्किल है। आपने मेरे साथ ऐसे क्यूँ किया? भगवान क्या मेरी श्रद्धा में कोई कमी है? क्या मन में कोई खोट है? क्यूँ करते हैं आप मेरे साथ ऐसा? बताइये न?

कौन चाहता है कि उसके साथ कुछ गलत हो, बुरा हो? सब अच्छे की ही उम्मीद करते हैं, भलाई का ही प्रयास करते हैं। पर जब कभी मैं सोचती हूँ थोड़ा आराम आ गया है जिंदगी में, तब सब कुछ बिखर जाता है। सोचा तो यही था न कि जैसे भी हो काट लेंगे। अब लेकिन कुछ नहीं समझ आ रहा।

कभी कभी लगता है जैसे मेरा कभी कुछ था ही कहाँ जो छूटेगा! फिर अगले ही पल किसी का अपनापन और परवाह मेरे हाथ थाम लेता है, कदम रोक लेता है। कभी लगता है सब कितना खाली और निरर्थक है उस इंसान के बिना अगले ही पल उसकी कड़वी बातों से आँखें भर आती हैं। उस समय उसी कड़वाहट को उसको वापस करने को जी करता है।

इंसान इतना हृदयहीन क्यूँ होता है ईश्वर? क्या उनको थोड़ा भी एहसास नहीं कि वो मेरे जीवन से जिस तरह खेल रहे हैं, मेरा भविष्य किस कदर अंधेरा हो गया है? उनके सामने तो दुनिया खड़ी है बाहें खोले इंतज़ार करती हुई। पर मेरी तो सारी दुनिया उन्हीं तक सीमित रही है। जब पूरी दुनिया मुझ पर उंगली उठाती है तब उसी दुनिया के रंग में डूबे उनके मुंह से निकलते जहर बुझे अल्फ़ाज़ मुझे अंदर से पूरी तरह तोड़ देते हैं। इसके बावजूद भी आज भी मैं सर उठा कर चलती हूँ तो वो कहते हैं तुम बेशर्म हो...

हाँ, बेशर्म तो मैं हूँ ही वरना आज की दुनिया में भी सच्चाई, ईमानदारी और सच्चरित्रता लेकर क्यूँ जी रही हूँ मैं? मेरे ऊपर उंगली उठाने वाले वो पहले इंसान तो हैं नहीं और वैसे आजकल तो पूरी दुनिया, पूरा समाज मेरे ऊपर ही उँगलियाँ उठाने में लगा हुआ है। फिर भी उनके लगाए हुए इल्ज़ामों पर मुझे हंसी क्यूँ आ जाती है। रात के अंधेरे में अपने अकेलेपन में भले ही ज़ार ज़ार रोती हूँ मैं, आपके सामने भले भरी हुई आँखें हो पर आपकी दुनिया ने हमेशा मेरा हँसता हुआ चेहरा ही देखा है।

भगवान, क्या मेरी नियति में हमेशा अपनों से ही एक अंतहीन सी जंग करना लिखा है आपने? ये कैसे अपने हैं जो मेरे लिए बुरे से बुरे श्राप निकालते हैं, मेरी जिंदगी में और भी मुश्किलें आने के दावे करते हैं? या फिर ये बोलते हैं कि दुनिया की सारी समस्याएँ तुम्हारे ही साथ क्यूँ होती हैं? और भी तो लड़कियां हैं इस दुनिया में! इसका जवाब तो मैं नहीं दे सकती। केवल आप बता सकते हैं। मौन तोड़िए अपना ईश्वर!


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