Monday, 8 March 2021

महिला दिवस (!)

 

हे ईश्वर

आज फिर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है और शुभकामनाएँ हवा में ऐसे तैर रही हैं जैसे नया साल या दिवाली हो। पता नहीं मेरे ही कान खराब हैं कि मुझे महिला दिवस की शुभकामना save the tiger या save water जैसी सुनाई देती है। ऐसा लगता है जैसे हम सब महिलाएं विलुप्त होने के कगार पर हैं और इसलिए हमें बचाने के सौ सौ जतन किए जा रही है दुनिया।

महिला दिवस है तो पर अपनी एसी गाड़ी में बैठी उस समाज सेविका के लिए जिसे न जाने कितने व्याख्यान आज देने हैं। है महिला दिवस पर उस स्त्री के लिए जो आज के दिन कहीं घूमने निकल जाएगी और आड़ी टेढ़ी शक्लें बना कर तस्वीरें खिंचवाएगी। महिला दिवस है उस स्त्री के लिए जो बाहर से खाना मंगवाएगी या फिर रोज़ जैसे बाहर खाने निकल जाएगी। या फिर उस स्त्री के लिए जो अपनी महंगी कार में डिज़ाइनर कपड़े पहने कॉलेज जाएगी। महिला दिवस है उस स्त्री के लिए जिसके घरवाले उसके सौ सौ नखरे उठाते नहीं थकते।  

ये महिला दिवस न बड़े लोगों के चोंचले हैं सारे!! उस स्त्री का क्या जिसे अभी चूल्हे के सामने खाना बनाना होगा और सबको गरम रोटी परोस कर खुद बचा खुचा खाना होगा। उस स्त्री के लिए कोई महिला दिवस नहीं जो आज भी नशेड़ी पति की मार खाएगी। महिला दिवस तो उस स्त्री का भी नहीं जिसकी प्रतिकृति उसके कोख से बार बार मिटाई जाती है। उस बच्ची के लिए भी नहीं जिसे रोज़ कि तरह कोई अनचाहा स्पर्श झेलना होगा। उस स्त्री के लिए भी नहीं जो अपने सपने मार कर डोली में चुपचाप बैठ जाएगी। उस स्त्री का भी नहीं जो पढ़ाई छोड़ कर घर के काम काज में बसी रहती है।

उस स्त्री के लिए भी कभी कोई महिला दिवस होगा क्या जो दहेज का पलड़ा हल्का होने पर विवाह वेदी तक नहीं पहुँच पातीं? या वो जिसकी साहस और क्षमता तो आसमान छूने की है पर उसे उसके सपनों को बस इसलिए भूलना पड़ता है क्यूंकि वो एक लड़की है!

अभी तक तो हम उन ज़ख़्मों को भी नहीं सहेज पा रहे जो स्त्री शरीर पर लगते हैं। उन ज़ख़्मों की तो अभी बात भी नहीं हो रही जो मन छलनी करते हैं और आत्मा कलुषित करते हैं। जब तक ये सारे ज़ख्म मिट नहीं जाते तब तक महिला दिवस आप बोलते रहिए मैं तो save the tiger ही सुनुंगी!!

Wednesday, 3 March 2021

टुकड़े टुकड़े ज़िंदगी

 

हे भगवान

आपको इतनी बार बुलाया है पर मेरी आवाज़ जैसे आपको सुनाई ही नहीं देती। याद है एक बार मैंने कहा था आपको हर किसी की के लिए कोई न कोई तो होता ही है। रास्ता दिखाने के लिए। साथ चलने के लिए, साथ देने के लिए। मैं क्यूँ अकेली हूँ फिर? आपने किसे बनाया है मेरे लिए? कौन है जो हमेशा मेरा साथ देगा? हाथ पकड़ कर रखेगा मेरा सारी ज़िंदगी?’ बहुत बार आपको बुलाने के बाद एक दिन आप सपने में आयीं थीं मेरे। घर था, दोस्त थे सब लोग थे... सबसे छुड़ा कर आप लेकर गईं थीं न अपने साथ। मैंने आपसे फिर से पूछा, बार बार पूछा फिर भी मुझे जवाब नहीं मिला। सारे रास्ते॥ और उस पहाड़ पर आपके घर पर भी.... आप बस बहुत खूबसूरती और खामोशी से मुस्कुराती रहीं, कुछ बोली भीं नहीं और मेरा सपना भी टूट गया। बाद में मुझे समझ आया, सारे रास्ते आप ही साथ थीं, आपने ही तो पकड़ा था मेरा हाथ। फिर और मुझे क्या चाहिए था?

उसके मैंने ज़िंदगी में कभी भी ये सवाल आपसे कभी नहीं पूछा।  कभी भी नहीं। लोग आते थे, जाते थे। रास्ते में कुछ दूर साथ चलते थे और फिर चले जाते थे। मैंने फिर कभी नहीं पूछा कोई आया तो क्यूँ? गया तो क्यूँ? और कब तक रहेगा। जब भी फिर कभी ये सवाल मुझे परेशान करता है बस वो सपना याद कर लेती हूँ। समझ जाती हूँ कि कोई रहे या न रहे आप हमेशा रहेंगी मेरे साथ।

फिर भी लोग समझते नहीं हैं। न मुझे किसी के आने की उम्मीद है न वापस जाने का दुख। मेरी जिंदगी खुद एक सफर है। पता नहीं कब इस दर से भी भटकना पड़े सब कुछ समेट कर। ठहरना तो जैसे मेरा नसीब ही नहीं। जिसने खुद मेरे साथ चलने से इंकार कर दिया वो खुद किस मुंह से मेरा रास्ता रोकता है, बताओ न?

लेकिन माँ कल जो हुआ मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा। जिसे नहीं रहना वो न रहे। पर कम से कम मुझे अपनी ज़िंदगी जीने दे, अपने फैसले खुद लेने दे। मैं आपके अलावा किसी की भी ज़िम्मेदारी नहीं हूँ माँ!

अकेले हैं तो क्या गम है

  तुमसे प्यार करना और किसी नट की तरह बांस के बीच बंधी रस्सी पर सधे हुए कदमों से चलना एक ही बात है। जिस तरह नट को पता नहीं होता कब उसके पैर क...