अध्याय ५८
हे ईश्वर
सच के लिए लड़ना कितना मुश्किल है न? बार बार मुंह की खानी पड़ती है, अपमानित होना पड़ता है। लोगों के सामने बेशर्म बनकर उनसे अपनी दुस्साहसी आंखें मिलनी पड़ती हैं। एक सच प्यार है और एक ईमानदारी ।पर आज दोनों ही हारते दिख रहे आपकी दुनिया में। कोई नहीं है मेरा भगवान, आपके सिवा। क्यों कहूँ कि वो प्यार मेरा है जो फ़र्ज़ की बलिवेदी पर मेरे सपने कुर्बान कर चुका है। क्यों कहूं कि वो समाज मेरा है जो मुझे जीने और प्यार करने का हक़ देने को तैयार नहीं। क्यों कहूँ कि वो सहकर्मी और वरिष्ठ मेरे हैं जो मेरी दिन रात की मेहनत को अनदेखा करके किसी और को उसका श्रेय ही नहीं देते बल्कि मुझे कुछ इस कदर अपमानित करते हैं कि अपनी मेहनत से मुझे नफरत हो गई है। आजीविका तो भगवान मैं कैसे भी कमा लूंगी पर जो इज़्ज़त और सम्मान मेरा हक है, वो न मिले तो क्या करूँगी? मैं इतना अपमान सहन नहीं कर सकती। ये मेरी एकमात्र कमज़ोरी है।
आज यदि मैं अपने हक़ और सम्मान के लिए न लड़ सकूँ, खुद की दांव पर लगी हुई प्रतिष्ठा की रक्षा न कर सकूं, तो कल कैसे किसी और के हक़ की रक्षा का दावा कर सकूंगी? मैं हारती जा रही हूं भगवान। मुझे आपकी दुनिया में रहना ही नहीं आया। मैंने तो सोचा था कि प्यार, सच्चाई, ईमानदारी और श्रद्धा के साथ मैं ज़िन्दगी की हर बाज़ी जीतूंगी। पर चापलूसी और कपट के मायाजाल ने हर बार मुझे हरा दिया। मेरी हर ईमानदार कोशिश इनकी साज़िशों से हार गई। अब और लड़ने की मेरी क्षमता नहीं है। तो क्या मान लूँ की आपकी दुनिया में प्यार, सच्चाई श्रद्धा और ईमानदारी के लिए कोई जगह नहीं? क्या सोच लूँ कि मेरी जिंदगी में वो इंसान आयेगा ही नहीं जो समाज और परिवार के सामने मेरा हाथ थामने का साहस रखता हो? सोच लूँ कि अब मेरा रास्ता वो अंधेरी सुरंग है जिसके किसी छोर पर रोशनी नहीं है। ये इंसान जिसे आपने भेजा था स्वार्थी और बेरहम लोगों से मेरी रक्षा करने के लिए, वो खुद इतना स्वार्थी क्यूँ हो गया है? क्यूँ बेरहमी के साथ मेरे सारे सपने, सारे अरमान पाँव के तले कुचलता जा रहा है?
हँसते हैं सब मुझ पर और आप मौन हैं! मैं जब भी अपने दुख दर्द उनसे कहती हूँ, वो मुझे delusional कह कर चुप करा देते हैं। वर्तमान में जियो, भविष्य की परवाह मत करो! जो है उसी में खुश रहो, ज्यादा की उम्मीद मत करो। ज्यादा सवाल करने पर 'ढूंढ लो न कोई और' या फिर ये कि 'मैं कभी तुम्हारे इतना नजदीक आना नहीं चाहता था। ये सब तुमने अपनी इच्छा से किया।' सच है कि आत्मघात की इच्छा मुझे हुई जरूर पर मेरी गर्दन पर छुरी चलाने वाले हाथ मेरे नहीं थे भगवान! मैंने हमेशा की तरह इंसानियत और वफादारी की उम्मीद की थी। जिससे उम्मीद की थी वो इस लायक भी था। पर सच भगवान, मैं भूल गई कि आपकी दुनिया में किसी की प्रेयसी बनने की जो योग्यता होती है वो आपको किसी की जीवनसंगिनी बनने से रोक भी देती है। एक निश्चित समय और बिल्ले के साथ पैदा होना मेरे अंदर के सारे गुणों पर भारी पड़ गया। मैं वो इंसान हूँ ही नहीं जिसके साथ कोई जिंदगी बिताना चाहे। मैं तो वो हूँ कि जब थक जाए तो थोड़ी देर आराम कर ले या बोर हो तो मनोरंजन। अपने बारे में न जाने कैसे कैसे विचार आने लगे हैं आजकल। अपनी हर अच्छाई को भूल कर एक बार फिर उसी बुराई में सर से पाँव तक डूब जाने को दिल करता है, जिसके लिए मैं बदनाम हूँ।
मैं क्या करूँ भगवान? तुम्हारी दुनिया मुझे जीने नहीं देती और किसी का अटूट विश्वास मुझे मरने नहीं देता।
मैं क्या करूँ भगवान? तुम्हारी दुनिया मुझे जीने नहीं देती और किसी का अटूट विश्वास मुझे मरने नहीं देता।
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