Thursday, 6 December 2018

उसने कहा है....

अध्याय ५९
....हे ईश्वर

फिर से वहीं ला के खड़ा कर दिया है आपने मुझे जहां से कुछ भी साफ नज़र नहीं आता। मेरा प्यार कम पड़ गया , मेरा विश्वास टूट गया। मैं खुद भी बिखरती जा रही हूँ। कुछ सोचने समझने की शक्ति ही खत्म हो गई है। जहां देखो वहाँ रिश्तों के नाम पर सौदे ही सौदे नज़र आ रहे हैं। एक सौदा मैंने भी आज किया। मैं एक बच्चा चाहती हूँ, पर उस बच्चे को पाने के लिए मुझे नरक से गुजरना पड़ेगा। दोहरी जिंदगी जीनी पड़ेगी। मन में कुछ और रखकर होठों से कुछ और कहना पड़ेगा। वो सब करना पड़ेगा जो करने के बारे में मैं सपने में भी सोच नहीं सकती थी। मेरी जिंदगी ऐसी क्यूँ है भगवान? क्यूँ कोई ऐसा इंसान नहीं आता जो मुझे स्वीकार कर ले, जैसे मैं हूँ वैसे ही अपना ले। सबके सामने मेरा हाथ पकड़ ले। 

पर नहीं। मेरी जिंदगी में रिश्तों के लिए जगह ही कहाँ है? जहां देखो वहाँ सौदे ही सौदे हैं। किसी ने एक बार फिर मुझसे वादा किया है, ज़ुबान दी है। मैं भी अपनी आँखों से देखना चाहती हूँ कहाँ है मेरे सब्र और उसकी ज़्यादतियों की हद। गलती मेरी है, मेरी ही है। मैं अपनी सही कीमत लगाना ही नहीं जानती। मैं दूसरों की तरह शर्तें रखना भी नहीं जानती। मैं और लोगों की तरह प्यार का तमाशा बनाना भी नहीं जानती। मैं कुछ भी तो नहीं जानती।

मैंने दूसरों का सहारा बनने की कोशिश की। दूसरों के लिए जीने की कोशिश की। अकेले अपना मुकाम भी पा लिया। पर आज भी मुझे एक इंसान की नज़रों में अपनी अहमियत देखने का इंतज़ार है, पता नहीं क्यूँ? मैंने किसी से बेहद प्यार भी किया। पर मेरा प्यार बार बार आपके समाज की रवायतों के आगे सर झुका देता है। मैं क्या करूँ? क्यूँ आते हैं मेरी जिंदगी में ऐसे लोग? कितने लोभ रहते हैं उनको। सब कुछ चाहिए उन्हें। प्यार भी, परिवार भी।  परिवार की इच्छा के आगे सिर झुकना उसकी मजबूरी है पर मेरी तो कोई मजबूरी नहीं। उनका कहना है तुम्हारी कुंडली में लिखा है तुम्हारी शादी का हाल। मन का हाल बताने वाली कोई कुंडली क्यूँ नहीं होती? क्यूँ कोई कुंडली उन्हें नहीं बताती कि मैं क्या महसूस कर रही हूँ?

ईश्वर मेरी सिर्फ एक प्रार्थना सुन लो। अगर तुम हो तो सुन लो! एक बार...सिर्फ एक बार इन सब रवायतों का सर झुका दो। मुझे एक बार अपनी कुंडली को मात देने की इजाज़त दे दो। आपने मेरी हर इच्छा पूरी की है। ये एक और मान लो। मैं जिंदगी भर अकेली रहना चाहती हूँ, भीड़ से दूर। मेरी जिंदगी में कोई ऐसा रिश्ता न भेजना जिसमें मेरी स्वीकृति न हो। मैं किसी झूठ के साथ अपना जीवन नहीं गुज़ारना चाहती, मेरे ईश्वर।


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