अध्याय ६६
हे ईश्वर
हे ईश्वर
एक
और साल खत्म होने वाला है और मेरी किस्मत वहीं की वहीं है। सांस रोके, दम साधे अपनी मौत का इंतज़ार करता हुए मेरा प्यार एक बार फिर सोचता है अपनी
गलतियों के बारे में। शायद सब कुछ नहीं बताना चाहिए था, शायद
सच नहीं कहना चाहिए था, शायद अपने अतीत को छुपा लेना चाहिए था। मैं इतना तो जान गई
हूँ भगवान कि गलती मेरे अतीत की ही है। मैं जब भी नई शुरुआत करना चाहती हूँ, ये रास्ते में खड़ा हो जाता है। मैं खुद भी पूरी तरह खुद को कहाँ माफ कर
पाई हूँ। मुझे आज तक एक बात समझ नहीं आ सकी...मैंने सिर्फ प्यार किया भगवान। जिसे
भी आप मेरे जीवन में लाए, उसे किया,
पूरी शिद्दत और ईमानदारी से। वही ईमानदारी सामने वाले ने क्यूँ नहीं दिखाई? जैसे मैंने किसी को अपना लिया उसकी हर अदा और आदत के साथ, किसी ने उसी तरह मुझे क्यूँ नहीं अपनाया।
मैंने
आपसे बहुत सारे सवाल किए हैं, पर जवाब एक भी नहीं है। मिला
ही नहीं। जब भी कोई जीवन में आता है अपने कसमों वादों के साथ, मैं आपके आगे सिर झुका कर स्वीकार कर लेती हूँ। जैसे जैसे वक़्त बीतता है, उसके सारे वादे टूटते चले जाते हैं। वो प्यार कहीं गुम हो जाता है और
उसकी जगह नियति की क्रूर हंसी ले लेती है। जिसने कल मेरी आँखों में कभी आँसू न आने
देने का वादा किया था, आज मुझे ज़ार ज़ार रुला रहा है। जो आज कल
मेरे साथ जिंदगी भर रहने का दावा करता था, आज मेरे साथ दो कदम
नहीं चलना चाहता। इंसान की फितरत हवा से भी जल्दी रुख बदल लेती है, मैं बस देखती रह जाती हूँ। क्या है आपके मन में भगवान? बताइये तो सही!!
मैंने
आज किसी से मदद मांगी और उसका नतीजा भी भुगत लिया। आज साल का आखिरी दिन है पर नियति
तो जैसे ठान चुकी है कि इस रिश्ते को भी आज ही अंतिम सांसें गिनवा देगी। मैं नहीं चाहती
ऐसा हो... क्या करूँ कि ये सब यहीं रुक जाए? कैसे समझाऊँ उसे कि
मैंने मदद मांगी थी, तक़ाज़ा नहीं किया था! क्या करूँ कि उसकी आँखों
में वही फिक्र और प्यार लौटे? क्या करूँ कि आज के दिन मेरी आँखों
में आँसू न आए? क्या करूँ, भगवान???
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