उसे कुछ न
कहना वो टूटा हुआ है
पत्थर के
बुत सा दीवाना मिला है।
क्या
कहूँ भगवान? किससे कहूँ? क्यूँ कहूँ? कहने के लिए आपने कुछ छोड़ा भी है? क्यूँ किया आपने मेरे
साथ ऐसा? एक बार फिर से मन करता है आपसे जी भर कर झगड़ा करने का!
पर अब मैं थक गई हूँ भगवान। क्यूँ लड़ूँ? जो बिना लड़े ही मुझे
हार चुका है उसके लिए आपसे क्यूँ झगड़ा करूँ? कल एक बार फिर अतीत
उसका रास्ता रोक कर खड़ा हो गया। मैंने पूछा भी ‘ आप होते मेरी
जगह तो क्या करते?’ वही रटा रटाया जवाब मिला ‘ऐसे इंसान को छोड़ देता’। सही तो है। क्यूँ रहेगा कोई
ऐसी स्त्री के साथ जो दो नावों की सवारी में विश्वास रखती हो? पुरुष पर तो ये बात लागू ही नहीं होती न। दो क्या, दो
हज़ार भी नावें उसके लिए कम हैं, है न?
बेकार
ही मैंने अपने रातों की नींद उड़ा ली। ताऊजी फिर एक बार एक अंगूठी के सहारे मेरी बिगड़ी
किस्मत संवारना चाहते हैं। पर सच कहूँ? जब मेरे प्यार और
विश्वास से मुझे कुछ नहीं मिला तो इस अंगूठी के सहारे मुझे कुछ नहीं चाहिए। जो मेरा
हो वो मेरे प्यार के लिए मेरा हो, कोई और कारण न रहे। इतना ही
तो चाहती हूँ मैं? क्या कुछ ज्यादा मांग लिया मैंने आपसे?
कुछ
लोग ये भी तो सोचते हैं मेरे जैसी लड़की को जरूरत भी क्या है किसी के प्यार की, सहारे की? सबकी नज़र में आर्थिक सक्षमता ही तो सब कुछ
है। मेरे रीते मन और सूनी सी जिंदगी की तरफ देखता भी कौन है?
पर
मेरा मन रीता नहीं है, मेरी जिंदगी सूनी नहीं है। मैंने बेहद
प्यार से और मेहनत से ये जिंदगी बनाई है, सँवारी है। ऐसे नहीं
बिगड़ने दूँगी कुछ भी। वादा करती हूँ! कितने भी अतीत के पन्ने खुलते चले जाएँ मेरे आगे, मैं सिर्फ उसके प्यार की तरफ ही देखूँगी। हमेशा।
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