Friday, 26 April 2019

पुखराज की अंगूठी

हे ईश्वर
ताऊजी मेरे लिए पुखराज लेके आए हैं, शादी की खातिर। उनको बताया तो शादी की अग्रिम बधाई मिल गई मुझे। मैंने अंगूठी बनवा भी ली। पर पहन नहीं पा रही। पता नहीं भगवान। सोचती हूँ तो लगता है मेरे कितने बुरे दिन आ गए न! प्यार, विश्वास, गुण, दोष छोड़ के एक अंगूठी के सहारे विवाह की वैतरणी पार करने को कहा जा रहा है। पर मैं भी जिद्दी हूँ, आपकी ही बेटी हूँ। जो अगर मुझे जीवनसाथी देना ही है तो व्रत, त्योहार, रत्न, कुंडली के सहारे नहीं, प्यार के सहारे दीजिए। विश्वास के सहारे पार करूंगी मैं ये वैतरणी। नहीं तो न सही।
मुझे हर तरफ से समझाइशें मिल रही हैं। अपने जनक को उनकी जिम्मेदारियों से मुक्त करने का अनुरोध किया जा रहा है। पर मैं एक ही बात सोचती हूँ। ये सारे लोग, ये सारी नसीहतें उस वक़्त कहाँ थीं जब मुझे सच में विवाह की इच्छा हुआ करती थी। आज तो न वो चाव रहा, न सपने। तो अब क्या करूँ? हजारों लड़कियों की तरह मैं भी आँख, कान बंद करके इस तालाब में छलांग लगा दूँ? जैसे वो कहते हैं, एक दिन शादी करोगी तुम। फिर सब बदल जाएगा।
क्या सच में सब बदल जाएगा? क्या मैं भूल जाऊँगी उनको?जो इंसान आज मेरे लिए सब कुछ है, कल उसकी आवाज़ भी सुन नहीं सकूँगी? शायद वो सोचते हैं जिस तरह उनके आस पास की सारी लड़कियां, दुनिया समाज के सामने शादी का ढोंग निभा रही हैं, अकेले में आज भी उनके नाम की कसमें खाती हैं, ऐसा ही कुछ मैं भी करूंगी। पर आपकी कसम भगवान..और चाहे जो भी हो ये कभी नहीं होगा। मैं नहीं जीना चाहती ऐसी दोगली जिंदगी। मैं नहीं रहना चाहती ऐसे। मत करो मेरे साथ ऐसा भगवान। मेरा विश्वास ही मेरा सब कुछ है, मेरा विश्वास बनाए रखो। प्लीज।
मुझे इस लायक तो रहने दो कि आईने में खुद से नज़र न चुरानी पड़े। मेरे मन, वचन और कर्म एक ही इंसान से जुड़े रहें, टुकड़ों में न बंटने पाएँ। ऐसा ही आशीर्वाद दो, भगवान। बस और कुछ नहीं चाहती।

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