Monday, 1 April 2019

कड़वा सच


हे ईश्वर

उसने फिर से मुझे ब्लॉक कर दिया है। वो जब भी ऐसा करता है मैं सोच में पड़ जाती हूँ। कैसा रिश्ता है हमारा और कैसी हूँ मैं? मुझे लेकर बहुत से लोग बहुत सी बातें करते हैं। अपने पराए सब मेरी कमियां गिनाते नहीं थकते। सबको लगता है मेरी जिंदगी में जो भी अकेलापन है उसकी वजह सिर्फ और सिर्फ मैं हूँ, मेरा व्यवहार है। इनको मेरी शक करने की आदत से परेशानी है। पर वो भी दिन थे जब मैं आँखें बंद करके विश्वास किया करती थी। इस तरह विश्वास करने का बहुत बुरा नतीजा भुगता है मैंने, फिर से वही गलती कैसे करूँ?

मैं जानती हूँ ये ऐसे इंसान नहीं हैं। पर वक़्त आने पर इन्होंने भी वही चुना जो दुनिया का चलन है। उनके अंदर भी इतना साहस नहीं कि दुनिया, समाज और परिवार के सामने हमारे रिश्ते को स्वीकार कर सकें। ये भी उसी रास्ते पर बढ़ रहे हैं जहां इन्हें समाज के सामने कुछ और ही मुखौटा ओढ़ना है। कायरता को मजबूरी का नाम देकर आगे बढ़ना है मुझे छोड़ कर।

ऐसे बहुत से लोग हैं समाज में भगवान! आपका समाज इसी झूठे मुखौटे को असली चेहरा मानता है। दोहरी जिंदगी जीने पर लोगों को मजबूर करता है। मेरे जैसे इंसान जो स्पष्ट बोलते हैं, उन्हें तकलीफ पहुंचाता है। आपके समाज को चाशनी में लपेटे झूठ की आदत है। उससे मेरा कड़वा सच बर्दाश्त नहीं होता।

एक कड़वा सच विवाहेतर संबंध भी हैं भगवान। मैंने वही कड़वा सच उनके सामने रखा था। हम कभी अपने नजदीकी रिश्तों के बारे में गलत सोचना चाहते पर कभी कभी आँखों के आगे कुछ ऐसी चीज़ें आती हैं जिन्हें झुठलाया नहीं जा सकता। क्या करूँ? ख़ैर! ये कोई पहली बार तो नहीं कि मेरी स्पष्ट बोलने की आदत ने किसी का दिल दुखा दिया। जिनको चाशनी में लिपटे झूठ की आदत हो, वो मेरी बातों को समझेंगे भी क्यूँ?

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