Thursday, 19 December 2019

प्यार करती हूँ


हे ईश्वर

मेरी मदद करो! क्या कहूँ कल के बारे में? इतना मुश्किल क्यूँ है उसे यकीन दिलाना कि मैं सिर्फ उसकी हूँ? जिस सदी से औरत ने एक कदम दहलीज़ से बाहर निकाला है उस दिन से एक कठघरे में भी एक कदम रख दिया। सदियाँ बीत गई हैं पर वो कभी उस कठघरे से बाहर नहीं आई। कैसे समझाऊँ मैं उसे कि... मैं उसे कुछ नहीं समझाना चाहती। वक़्त हर चीज़ का जवाब दे देता है। इस बात का जवाब न जाने उसे कब मिलेगा कि मैं सिर्फ और सिर्फ उसकी हूँ, उसके लिए हूँ।
क्यूँ इतना मुश्किल है उसके लिए ये समझना कि मैंने सिर्फ घर से बाहर कदम निकाला है, उसकी जिंदगी से नहीं। मैं आज़ाद हूँ, उछृंखल नहीं। मेरे संस्कार, मेरी परवरिश और मेरे सिद्धान्त आज भी वही हैं।

मैं उसे प्यार करती हूँ। उसकी सारी मजबूरी और सारे निर्णय के साथ। जब तक मेरी आँखों में उसका चेहरा है, मैं क्यूँ किसी और को देखूँगी? पर वो भी तो पुरुष ही है न! आदमी अपनी ही उधेड़बुन में औरत को इतना उलझा देता है कि वो कुछ और सोच ही नहीं पाती

आर्थिक आज़ादी का कोई मायने नहीं अगर हमारी सोच आज भी ग़ुलाम है अपनी मानसिकता की। बिना सच जाने बस एक नज़र देखा और फैसला कर लिया? होते कौन हैं वो ये सोचने वाले कि मुझे किसी और की ज़रूरत है? कोई और... और कितने दिन तक लटकेगी ये कोई और की तलवार हमारे रिश्ते पर? क्यूँ?

ईश्वर, आप ही मेरे साक्षी हैं। न मैंने उससे न कभी खुद से कोई बात छुपाई है। फिर उसे ऐसा क्यूँ लगता है। तुम्हारी दुनिया तुम्हारा समाज मेरे अंचल पर दाग ही देखना चाहता है।मैं आपसे कहती हूँ, कुछ भी हो जाए मेरा सर मत झुकने देना। मैं तुम्हारी दुनिया की आँखों में मिर्च झोंक कर जी लूँगी।  पर मेरे अपनों की आंखों में जलन मत होने देना आप।

आज भले उसे मुझ पर यकीन नहीं पर मैं उस वक़्त का इंतज़ार करूंगी जब उसे मुझ पर यकीन होगा। मैं उसे बहुत प्यार करती हूँ ईश्वर। आप जानते हैं, उसे भी बता दो न! उसकी बुझी हुई आँखें मुझसे देखी नहीं जातीं। उसकी आँखों में मेरे लिए विश्वास ही देखना चाहती हूँ मैं। उसकी आँखों की चमक और होठों की हंसी ही मेरा सब कुछ है। कितने भी कठघरों में मुझे खड़ा कर लो, मेरा सत्य नहीं झुकेगा, न मिटेगा। उसके लिए मेरा प्यार ही मेरे लिए आपकी परछाई है। वो कितने भी रास्ते बदल ले, आना उसे मेरे पास ही है। है न?

Wednesday, 18 December 2019

मर्दानी II : साहस और क्षमता की अद्भुत दास्तां


एक और नारीवादी फिल्म आई और शोरशराबा शुरू हो गया। कुछ नया नहीं है से लेकर ऐसा थोड़ी न होता है। अति नाटकीयता और अविश्वसनीयता के इल्ज़ाम भी लगे। पर जब मैंने ये फिल्म देखी तो सबसे पहले मुझे सिर्फ दहशत महसूस हुई। डर लगने लगा था। इंसान के भेस में न जाने कैसे कैसे जानवर घूम रहे हैं इस दुनिया में। वैसे भी जिस तरह की घटनाएँ हमारे आस पास हो रही हैं, ऐसी किसी संभावना से इंकार भी तो नहीं किया जा सकता।

बहुत दिन बाद सतही और बिना सर पैर की कहानियों से अलग एक ताजी हवा के झोंके जैसी एक कहानी देखी। पर इस हवा के झोंके में एक सड़ांध भी है – पुरुष की बीमार और दमनकारी मानसिकता की सड़ांध!

हम जानते हैं शायद हर अच्छी कहानी की तरह ये कहानी भी ज़्यादा न देखी जाए। आखिर हमें तो केवल मनोरंजन चाहिए, हम बेसुध होना चाहते हैं। सोना चाहते हैं, फूहड़ हंसी से अपने अंदर की चीत्कार को दबा के रखना चाहते हैं। पर हमें ऐसा करना नहीं चाहिए। जब तक ये असहज सच्चाईयाँ हमारी आँखों में मिर्च नहीं झोंकेंगी, हम जागेंगे नहीं। हमें महसूस करना होगा हमारी जलाई गई बहन बेटियों के सीने की जलन को, तभी शायद पूरे देश में फैली हुई ये आग बुझेगी।

पर्दे पर दिखाई गई वहशत कुछ नई नहीं लगी। ऐसा हो रहा है, पूरी दुनिया में। पर किरदार के मुंह से निकले लफ्ज सुनकर मैंने कुछ लोगों को हँसते भी देखा। किसी मुसीबत में पड़ी हुई स्त्री की मदद करने के बजाय फोन में उन वीभत्स घटनाओं को कैद करने वाले समाज से मैं और क्या उम्मीद करूँ?

बहुत लंबा रास्ता तय करना है लेकिन अभी। अभी तो केवल हम इन सब सच्चाइयों को पर्दे पर दिखाने का साहस ही जुटा पाए हैं। जिस दिन इन्हें देखकर किसी का दिल दहल जाए, किसी वहशी दरिंदे का मन पिघल जाए, किसी कातिल के हाथ कांप उठें और किसी मासूम की जान और इज्ज़त बच जाए उस दिन हम अपनी मंज़िल तय कर चुके होंगे।

Wednesday, 11 December 2019

मैं वो नहीं हूँ!


हे ईश्वर

किसी पौधे को बाहर की धूप, हवा और पानी से ज्यादा उसकी अपनी जड़ें मजबूत करने की ज़रूरत होती है। अगर वो मजबूत हों तो फिर बाहर का कुछ भी उसे हिला नहीं सकता। अगर कुछ समय के लिए वो कटे, छँटे या टूटे भी तो फिर उठ खड़ा होने की ताकत हमें हमारी जड़ें ही देती हैं। हम टूटते भी पहले अंदर से ही हैं। फिर ही कहीं बाहर के थपेड़े हम पर असर कर सकते हैं।

ईश्वर आपने मेरी जड़ें बेहद मजबूत बनाई हैं। इसलिए तो बाहर के मौसम मुझे हिला देते हैं, पर मिटा नहीं सकते। मैंने अपनी जिंदगी में रिश्तों से हमेशा मात ही खाई है, शह का अभी कोई अवसर नहीं आया। अपने रिश्तों को संभालने के लिए लिए गए मेरे सारे निर्णय आज सवालों के घेरे में हैं, पर मैं जानती हूँ कि एक दिन सब समझ जाएंगे, सबको मिल जाएंगे अपने जवाब।

मैं अविवाहित क्यूँ रहना चाहती हूँ, उसका कोई एक कारण तो नहीं है। लेकिन अक्सर मुझे अपने इस निर्णय के लिए कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है। कैसे समझाऊँ और किसको समझाऊँ? मेरे अंदर इतनी ताकत नहीं है कि एक नए परिवार और परिवेश में ढल सकूँ। उम्र के इस दूसरे पड़ाव में अपनी आदतों और रहन सहन में कोई भी बदलाव मेरे लिए घातक सिद्ध हो सकता है। मुझे डर लगता है भगवान किसी को अपने जीवन में इतनी सारी जगह देने से।

इतना प्रयास करके, इतनी ईमानदारी बरत के भी मेरे इतने जतन से सहेजे हुए रिश्तों का ये हाल है! तो फिर नए रिश्ते न जाने किस कठघरे में मुझे खड़ा करेंगे? क्या क्या कैफ़ियतें मांगेंगे, बीते हुए सालों का न जाने कैसे आकलन करेंगे? ये सब न होता अगर मैं भी तुम्हारी दुनिया की तरह झूठी और मक्कार होती!

पर मैं वैसी नहीं हूँ। एक बार मैंने आपसे कहा था कि जीवन एक अधखुली या बंद किताब होना चाहिए। पर मेरा जीवन तो ऐसा नहीं है। इस किताब का कौन सा पृष्ठ न जाने कब खुल जाए, कौन कह सकता है?

पर एक बात तो है। मुझे आगे बढ़ने में वक़्त ज़रूर लगता है पर मैं कभी आगे बढ़ कर पीछे हटने में विश्वास नहीं रखती। फिर भी आपका समाज मुझे आज भी मेरे अतीत से ही जोड़ कर देखता है। ऐसे समाज में, ऐसे परिवेश में मैं एक नई शुरुआत की उम्मीद भी कैसे कर सकती हूँ?

Wednesday, 4 December 2019

प्यार करते हैं.....!!


हे ईश्वर
जब कोई मुसीबत आती है अपनों का पता भी अक्सर उसी वक़्त चल जाता है। आज जो हुआ उसे मुसीबत तो नहीं कह सकती बस कुछ ऐसा है जिसने मुझे चौंका दिया। बदलाव अक्सर इंसान को चौंका देता है। ऐसा ही कुछ हुआ जब मेरी जॉब में एक बदलाव की संभावना ने मुझे और मेरे अपनों को चौंका दिया। कुछ लोग हैं जिनको लगता है कि मैं इस बदलाव से घबरा गई हूँ। कुछ को लग रहा है मैं उनसे मदद की उम्मीद कर रही हूँ। कुछ को लगता है मैं चुपचाप जो भी हो रहा है उसे स्वीकार कर लूँगी।

क्या होगा नहीं जानती पर इतना जानती हूँ आज के इस हलचल में भी मुझे वो सुकून मिल रहा है जो मैंने कभी भी महसूस नहीं किया था। आज जिस तरह से मेरे लोग मेरी फिक्र कर रहे हैं, प्यार से बात कर रहे हैं पहले क्यूँ नहीं की कभी? मुझे कितना सुकून मिला उनकी बातों से कैसे बताऊँ? कितना अच्छा लगता है जब कोई कहता है मैं हूँ न!

जिंदगी में हमेशा मैं हूँ न बहुत ज़रूरी होता है। कोई तो होना ही चाहिए कहने वाला कि मैं हूँ न। मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा। मेरा परिवार भी सब कुछ भूल कर मेरे लिए मेरे साथ खड़ा है। वो भी कहने लगे हैं मैं अब हमेशा तुम्हारा ख्याल रखूँगा। कभी तुमसे बुरी तरह से बात नहीं करूंगा। जिस प्यार को हम उम्र भर तलाश करते हैं, वो प्यार हमेशा हमारे अपनों के दिल में रहता है। ज़रूरत होती है बस उसे ज़ाहिर करने की। 

शुक्रिया भगवान। जो भी है पर यही भरोसा तो मैं चाहती थी। यही प्यार है जिसके लिए तरसती थी। आज मुझे वो सब मिल गया है। कैसे शुक्रिया अदा करूँ आपका? जिस तरह से सब कुछ छोड़ कर मेरी समस्या सुलझाने में सब जुट गए हैं...मैं ये नहीं चाहती कि सब हमेशा सब कुछ छोड़ कर सिर्फ मुझ पर ध्यान दें पर प्यार से बात कर रहे हैं, मुझे समझ रहे हैं, मेरे लिए फिक्र कर रहे हैं मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।

आपने सचमुच मेरे जन्मदिन का तोहफा बेहद शानदार चुना है।

अकेले हैं तो क्या गम है

  तुमसे प्यार करना और किसी नट की तरह बांस के बीच बंधी रस्सी पर सधे हुए कदमों से चलना एक ही बात है। जिस तरह नट को पता नहीं होता कब उसके पैर क...