हे ईश्वर
आपने फिर से रच दी एक अग्निपरीक्षा
मेरे लिए? क्यूँ? मन नहीं भरा क्या अभी तक? बताइए? उनकी वो अजीब अजीब सी बातें सुन कर मन करता है
किसी दीवार में चुन दूँ अपने आप को। खत्म कर दूँ खुद को... जान ले लूँ मैं अपनी। ताकि
फिर कभी कोई मेरे चरित्र को किसी कटघरे में न खड़ा कर सके। ताकि फिर कभी किसी की आँखों
में अपने लिए संशय न देखूँ। भगवान विश्वास इतना नाज़ुक होता है न... पर स्त्री के लिए
विश्वास तेल से भरा वो कटोरा होता है जिसे लिए हुए उसे पूरी दुनिया का चक्कर लगाना
होता है। एक बूंद भी छलका तो विश्वास खत्म...भगवान बताओ न तुमने मुझे ये जन्म ही क्यूँ
दिया? किसलिए? ताकि मैं जिंदगी भर दूसरों
के हाथों अपमानित होती रहूँ? लोग मेरे बारे में मनचाही धारणा
बनाते चलें और मैं उसका खंडन भी न कर सकूँ?
जिसने मेरे प्यार का, विश्वास
का, अपनेपन का ज़रा भी मान नहीं रखा उसके लिए मैं जिंदगी भर बैठती
भी तो क्यूँ? मैंने अपनी पूरी निष्ठा के साथ एक सपना देखा था।
वो पूरा नहीं हुआ तो क्या मुझे दूसरा सपना देखने का कोई अधिकार नहीं? किसी विवाहित पुरुष के साथ मैं खुद को कैसे देख सकती हूँ? मेरी मर्यादा और संस्कार इतने तो कच्चे नहीं हैं न! पर एक बात कहूँ॥ उनकी
आवाज़ और उनका ये लहजा मुझे बहुत चुभता है। वो कहते हैं ऐसा इसलिए होता है क्यूंकि इंसान
को सच्चाई बुरी लगती है। पर मैं आपसे कहती हूँ ऐसा इसलिए होता है कि अपना मन और आत्मा
देकर भी उनका विश्वास नहीं जीत पा रही मैं। परीक्षा देते देते थक सी गई हूँ।
क्या ही अच्छा होता कि ऐसा
इंसान मेरी जिंदगी में कदम ही नहीं रखता जिसे मुझ पर विश्वास ही नहीं। जो मुझे चोर
कहता भी है और मानता भी है। जो सोचता है कि वक़्त के साथ कुछ ऐसा उसके सामने आएगा जिससे
वो कह सकेगा कि मैं ही गलत हूँ, दुश्चरित्र हूँ। पर मैं आपसे कहती हूँ मेरा
सिर नहीं झुकने देना कभी। उसका मेरी जिंदगी में आना आपका फैसला था। उसकी मेरी जिंदगी
में जगह और अहमियत दोनों आपने ही दिए। मैंने आपने दिए हुए को आपका आशीर्वाद समझ कर
स्वीकारा है। मान, अपमान जो भी मिला सिर झुका के स्वीकार लिया।
कभी प्रश्न नहीं किया आपके निर्णय पर। इसलिए भगवान गुजरते हुए वक़्त के साथ उसके इस
झूठे सच को झुठलाना आपका ही काम है। आप ही मेरे साक्षी हैं, आप
ही मेरी अदालत और आप ही मेरे गवाह।
झुठला दो उसके मन में बनी
हर एक दुर्भावना। गलत साबित कर दो उसे। मैं चाहती हूँ कि एक दिन वो मुझ पर आँखें बंद
करके विश्वास करे। मैं चाहती हूँ कि वक़्त के साथ आप उसे समझाओ कि मैं सही हूँ और मेरे
माथे पर सत्य का केसर दमकता है, कपट की कालिख नहीं।
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