Tuesday, 27 August 2019

झूठे इल्ज़ाम मेरी जान...!


हे ईश्वर
तो ये थी उस रात की हक़ीक़त। उनका कहना है कि वो तो मेरे पास अचानक पहुँच कर मुझे चौंकाना चाहते थे। मुझे मिलने के लिए आने ही वाले थे और आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि वो मुझे मिले बिना आ गए हों। ऐसा कैसे हो जाता है भगवान कि हमेशा वो मेरे लिए कुछ अच्छा करने ही वाले होते हैं कि मेरी ही किसी बात पर नाराज़ होकर अपना इरादा बदल लेते हैं। ऐसा है तो मेरा इरादा कभी क्यूँ नहीं बदलता? कुछ भी हो जाए मैं क्यूँ हमेशा वही करती हूँ जो वो चाहते हैं? क्यूँ भगवान?
मैं ही क्यूँ हर बार दोषी हूँ?? क्या उनकी कभी कोई गलती नहीं होती? बड़ी आसानी से उन्होने ये साबित कर दिया कि मेरी जिंदगी कुछ और हो सकती थी। उन्हें मुझसे प्यार हो सकता था, मेरी कदर हो सकती थी, मेरी परवाह जता सकते थे। सब कुछ हो सकता था पर सिर्फ इसलिए नहीं हुआ क्यूंकि मेरी किसी बात ने उनका इरादा बदल दिया। कुछ भी कहने पर वो मुझे मेरी कमियाँ किसी पहाड़े की तरह गिना देते हैं। पर आजकल मुझे अपनी कोई भी गलती उतनी भी बड़ी नहीं लगती। आजकल अपना कोई भी गुनाह अक्षम्य नहीं लगता।
मैं कमजोर हूँ, मेरा विश्वास कच्चा है ये सच है। पर किसी ने भी कभी एक पल के लिए ये नहीं सोचा कि मेरा विश्वास इतना कच्चा क्यूँ है? मेरे साथ जो कुछ भी हुआ था उसके बाद कोई गुंजाइश नहीं बची कि मैं किसी पर विश्वास कर सकूँ। शायद मेरे अंदर वो कोमलता ही नहीं बची जो किसी रिश्ते को बचाए रखने के लिए ज़रूरी है। क्या नहीं देखा है मैंने? हर एक टूटते हुए रिश्ते के साथ मेरे अंदर का विश्वास भी मर गया।
अजीब लगता है जब दूसरों की हर इच्छा अनिच्छा बिना कहे समझने वाला इंसान मेरी पसंद नापसंद से इतना अंजान बन जाता है। मेरी बात आते ही उसकी संवेदनशीलता बुझ जाती है। क्यूँ? मैंने बेहद प्यार, ध्यान, समय, श्रम और धैर्य इस रिश्ते को दिया। पर हमेशा मेरी कोई कमी मेरे सारे प्रयास पर भारी पड़ जाती है।
मेरे परिवार वाले भी अब बेहद नाराज़ रहने लगे हैं। मैं अकेली पड़ती जा रही हूँ। या शायद मैं हमेशा से अकेली थी। मैं ही इस बात को देख नहीं पाती। हर बार यही चूक मुझसे हो जाती है। सबका ख्याल रखते रखते मैं अपने बारे में सोचना ही भूल गई हूँ। ईश्वर, मुझे एक बार अपने आप से प्यार करना सिखा दो।

Thursday, 22 August 2019

दुखवा मैं कासे कहूँ?


हे ईश्वर
कितना प्यारा सा रिश्ता था मेरा, तोड़ कर आपको क्या मिला? खुशफहमी ही सही, रहने देते। लोग यूं ही तो नहीं नशे में खुद को भूलने की कोशिश करते। मैं जानती हूँ कि गलत उसने किया था फिर भी मेरा ध्यान बार बार अपनी गलतियों पर जाता है। क्या बिलकुल ही मर गया है मेरा खुद पर यकीन? बताइये न? क्यूँ बार बार ऐसा लगता है जैसे गलती मेरी थी? वैसे भी अब तो मुझे आदत पड़ ही गई है। दूसरों से पहले खुद से उम्मीद लगाने की। अपने प्यार की सच्चाई को साबित करते करते भूल ही गई थी कि वो भी तो सच्चा होना चाहिए जिससे मैंने प्यार किया है। अब वही बातें उसकी, कोई और होगा, तुम उसी के साथ रहोगी। मैंने खुद को इस कदर समेट लिया है कि उसके अलावा कोई भी हो मुझे भीड़ ही लगती है, अपनापन नहीं।

मेरी जिंदगी में अब कहीं कोई खुशी नज़र नहीं आ रही। शायद मैं इसी दिन का इंतज़ार कर रही थी। कितना स्वाभाविक सा लगता है रात रात भर जाग कर बिताना। मेरा मन खुशी बर्दाश्त ही नहीं कर पाता। उसे तो दुख में ही जीना अच्छा लगता है। किसी भी इंसान की परिस्थितियाँ तब तक नहीं बदलती जब तक वो खुद नहीं बदलता। मैंने अपने को बदलने की हर संभव कोशिश कर ली, सब बेकार लगती है। ऐसे धूप छांव में न मैं पूरी तरह खुश रह पाती हूँ, न ही उदास। कभी कभी खुशी से नाचते झूमते दिन ऐसा बीतता है कि पता ही नहीं चलता। कभी कभी मन ऐसा डूबा रहता है कि बिस्तर से उठना तक दूभर हो जाता है।

उसका कहना है कि मैं नहीं तो कोई और ज़रूर होगा। पर जब से वो मिला मेरे दिल ने शिद्दत से बस एक ही तमन्ना की है। किसी दिन, किसी पल उसे एहसास हो कि उससे मिल कर मेरी हर चाह, हर इच्छा पूरी हो गई है। मन मार कर समझौता करना होता तो शादी कोई बुरा विकल्प नहीं था। सिर्फ कुछ दिन के लिए मुझे अपनी अंतरात्मा का गला घोंटना था। पर मेरा मन चीखने लगता है किसी और के नाम पर। एक रिश्ते में रह कर उसका मान न रख पाई तो अपनी ही नज़र में गिर जाऊँगी।

इस सब में मुझे बस एक ही बात का दुख होता है। उस औरत का मुझे नीचा दिखाने का अरमान पूरा हो गया। वो भी उस इंसान की नज़रों में जिससे मैं इतना प्यार करती हूँ। खैर! आप हैं तो एक दिन ज़रूर उसे अपनी गलती का एहसास होगा। पता नहीं वो लौटेगा तो मैं उसे स्वीकार कर भी पाऊँगी या नहीं। पर उसे मेरे पास वापस तो आना ही है। आना है न?

Tuesday, 20 August 2019

रूठे रूठे पिया...


हे ईश्वर
मैंने ऐसा क्यूँ किया भगवान? जिस रिश्ते को इतने प्यार से, ध्यान से रखा था क्यूँ इस तरह तोड़ दिया? जब भी कुछ गलत होता है, बहुत से काश मेरी आँखों के सामने आ जाते हैं। काश मैंने थोड़ा सा संयम रखा होता। पर कितना धैर्य रखूँ मैं भगवान? कल जब मैंने उसको वहाँ देखा, मेरी आँखों के सामने उसके सारे झूठ नाच गए। मैं और नहीं सह सकती थी भगवान। सच में!
अब नहीं कहती तो मेरा आत्मसम्मान जिंदगी भर मुझे कोसता रहता। अपनी नज़र में गिर कर मैं कभी नहीं उठ पाती। इसलिए जब मेरे प्यार और आत्मसम्मान के बीच चुनना पड़ा, तो मैंने आत्मसम्मान को चुन लिया। उसे पलट कर जवाब दिया। मेरा दिल खाली हो गया है भगवान, आँखें भर आई हैं। पर फिर भी इतना सुकून है कि एक बार ही सही मैंने अपने आप को प्यार तो किया। खुद की रक्षा की, खुद के लिए एक कदम उठाया। इस सब में एक बहुत बड़ी गलती भी हुई मुझसे। वो गलती ही थी, चाहे वो मानें या नहीं। मैं उनको कभी भी जानबूझ कर चोट नहीं पहुंचा सकती। मेरा दिल जानता है और आप भी जानते हैं।
पर अब क्या होगा? क्या वो कभी नहीं लौटेंगे मेरे पास? क्या सच में वो मुझे चोट पहुंचाएंगे? क्या सचमुच वो मुझे सुख चैन से जीने नहीं देंगे? कल का उनका कहा हुआ क्या वो सच में पूरा करेंगे? मन अजीब सा शांत सा हो गया है। मैंने सोचा था हमारा रिश्ता टूटा तो मैं भी टूट जाऊँगी उसी के साथ। पर ऐसा हुआ नहीं।
वो तो इस वक़्त खुशी से नाच रही होगी। कौन? वही जिसके छलावों में उलझ कर वो मेरा सच्चा प्यार भूल गए हैं। उसी के पास दोस्ती का हाथ बढ़ाने मैं गई थी। उसके मुश्किल वक़्त में उसका सहारा बनने की कोशिश की। पर उसकी एक चाल ने मेरा ही सब कुछ मुझसे छीन लिया।
वो कहते हैं कि तुम्हारे जीवन में कोई और आएगा। उसी से प्यार करोगी तुम और शादी भी। ये कोई और की टेक छोड़ दो न भगवान। मैं टुकड़ों में बंटने लगी हूँ। मेरी जिंदगी रुक सी जाती है उनके बिना। न सही रस्मो रिवाज के बंधन। प्यार की डोर तो रहने दो।
मन सहमा हुआ तो है पर उम्मीद का दामन अभी भी नहीं छोडता। आज आपके पास आकर भी यही तो मांगा था मैंने। लौटा दो उसे भगवान। वो मेरा है!

Monday, 12 August 2019

धोखा है?


हे ईश्वर

कितने सवाल पूछूं मैं आपसे? कितनी बार हाथ जोड़ूँ? आप मुझे सच क्यूँ नहीं बताते? जब कभी मैं सोचती हूँ कि वो एक छलावा है, झूठ है उस समय उसकी कोई न कोई अच्छाई मुझे एहसास दिला देती है कि वो बुरा इंसान नहीं है। उसे मैं गलत समझ रही हूँ। जब कभी उसकी अच्छाइयों पर निश्चिंत होकर आँख मूँद कर विश्वास कर लेती हूँ वो अपनी किसी बात से मेरा दिल दुखा देता है। भगवान वो कैसा इंसान है? क्यूँ इतना मुश्किल है उसे समझ पाना?

आपने मेरी जिंदगी में ऐसे कितने छलावे और लिखे हैं? क्या मेरी यही नियति है कि मैं जिस पर भी विश्वास करूँ वो मुझे धोखा ही देगा। क्या यही मेरी किस्मत है कि मैं जिसे भी प्यार करूँ वो मुझे नीचा ही दिखाएगा, मुझसे नफरत ही करेगा। वो मुझसे नफरत नहीं करता पर ये कैसा प्यार है? आप बताओ!

मुझे सुकून चाहिए ईश्वर। वो सुकून जो इस विश्वास से मिलता है कि कुछ भी हो वो मेरे साथ है। क्या मैंने कुछ ज़्यादा मांगा है आपसे? एक ज़रा सा भरोसा कि जिस तरह मैं उसकी खुशी और सुकून के लिए कुछ भी कर सकती हूँ, वो भी मेरे मुश्किल हालात में मेरा साथ नहीं छोड़ेगा। बुरे से बुरे  इंसान को ये हक़ होता है कि कोई उसे दुनिया से अलग समझे, उस पर विश्वास करे और उसे प्यार करे। मैं भी आपसे अपना यही हक़ मांग रही हूँ। मैं थक गई हूँ भगवान। अब मैं आराम चाहती हूँ।

समझाओ उसे ईश्वर। मैंने आँख मूँद कर उस पर विश्वास किया है, दुनिया छोड़ कर उसका दामन थामा है। याद दिलाओ इसे वो सारे समझौते जो सिर्फ उसके लिए मैंने किए हैं। दिखाओ उसे इस मतलबी दुनिया में उसके पास किसी का निस्वार्थ और निशर्त प्रेम है। उसे इस प्रेम की कद्र करना सिखाओ ईश्वर, प्लीज।

Friday, 9 August 2019

खुशफहमियाँ...


हे ईश्वर

क्या छलावा बनाया है तुमने? कहानियों में, किताबों में, फिल्मों में। जहां सच की जीत होती है और झूठ की हार। कहानियाँ हैं जहां अंत में सब कुछ ठीक हो जाता है। जहां लोग अपने समाज और परिवार के विरोध में जाकर भी सच का साथ देते हैं, आदर्शों पर अटल रहते हैं, प्यार की कद्र करते हैं। असलियत ऐसी कहाँ होती है? बोलो न? कहाँ है प्यार की कद्र करने वाले? सच का साथ देने वाले? आदर्शों पर मर मिटने वाले। आजकल तो झूठों का ही राज है सारी दुनिया में। भीड़तंत्र न्याय पर हावी है और चाटुकारिता प्रतिभा और ज्ञान पर।

वैसे देखा जाए तो आजकल की फिल्मों और किताबों में कहाँ रह गया है वो रस और बोध? कुछ गिने चुने प्रयासों को छोड़ दें तो कोई भी मन को नहीं छूता। सब सतही और निम्न स्तरीय। ऐसा लगता है सुबह से शाम तक इंसान के दिमाग को चेतनाविहीन करने की कोई साजिश सी चल रही है। उद्देश्यहीन व्यस्तता में उलझाने का जाल बुना जा रहा है। चिंतन के लिए मनन के लिए समय ही नहीं देते हैं तरह तरह के ये मायाजाल।

आज का सच तो यही है कि दुनिया बस इस्तेमाल की भाषा जानती है, स्वार्थ की बोली बोलती है। अपना स्वार्थ पूरा होते ही अंधेरी सड़क पर एक लड़की को अकेला छोड़ देना ही आपके आजकल के युवा ने सीखा है। आपकी दुनिया की रग रग से वाकिफ होकर भी मैंने न जाने क्यूँ इससे सच्चाई, ईमानदारी, प्रेम और सत्यनिष्ठा की उम्मीद लगा रखी थी? मेरी हर उम्मीद तोड़ कर भी उसकी आँखों में शर्म नहीं, अहंकार है। 

तो होने दो। मेरे लिए जो राह आपने चुनी है मुझे तो उसी पर चलना है। आपकी दुनिया से ठोकर खाकर भी मुझे खुद को खुद ही संभालना है, संवारना है। अब मुझे उम्मीद करनी ही होगी तो सिर्फ आईना देखूँगी। खुद से करूंगी हर उम्मीद, खुद के लिए देखूँगी हर सपना। बार बार खुद को यही समझाती हूँ, फिर भी तुम्हारी दुनिया के मायाजाल में उलझ ही जाती हूँ। या तो ये मायाजाल तोड़ दो या इसमें भी मेरे लिए एक सुरक्षित कोना ढूंढ दो। जहां मेरे सपनों की और मेरी रक्षा करने वाला हो।

Wednesday, 7 August 2019

मैं अधूरी सी....


हे ईश्वर

घर घर खेलने चले थे हम, बुद्धू हैं न तो लौट के घर आ गए हैं। दो हिस्सों में बाँट दिया है हमने अपने आप को। उसने मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया? कितना भी सोचें पर जवाब शायद कभी न मिले। सारे जवाब तो आपके पास हैं और आप हैं कि चुप लगा के बैठे हुए हैं। कितने सालों से चुप हैं न आप? कुछ बोलते क्यूँ नहीं! लोग अक्सर पूछते रहते हैं तुम ऐसा क्या मांगती हो भगवान से? पर सच कहूँ कि जब भी आपके पास आती हूँ सिर्फ शुक्रिया कहने आती हूँ। शुक्रिया अपने इस जीवन के लिए और उन लोगों के लिए जो मेरे साथ हमेशा रहते हैं।

मैंने सोच लिया था कि शायद हमारा इतना प्यारा सा साथ यहीं खत्म हो गया। पर आपने बचा लिया। लोग सोचते होंगे क्या एक रिश्ते के बिना मेरा कोई अस्तित्व नहीं? है तो पर अधूरा। जब वो नहीं होते मैं भी नहीं होती हूँ जैसे। सब कुछ रह कर भी कुछ नहीं रहता। हर कोई कहता है आप अकेले रहते हो तो आपको कुछ अधूरा नहीं लगता? ये अधूरापन आपको तब तक नहीं छू सकता जब तक आपने किसी को अपने करीब आकर दूर जाते न महसूस किया हो। जब आप अकेले होते हो तब आप आज़ाद होते हो। किसी की कमी आपको तभी खलती है जब कोई आपके जीवन के खालीपन में कुछ समय के लिए जगह घेर लेता है।

तो अब मेरे जैसे लोग क्या करें? अपने चारों तरफ लकीरें खींच दें? किसी को न आने दें अपने करीब? किसी से कोई वास्ता न रखें? क्या प्यार पर विश्वास ही करना छोड़ दें? बहुत से ऐसे ही नियम कायदे दिमाग में आते हैं। पर दिल है कि सुनता ही नहीं! किसी न किसी से तो कह देता है अपने मन की बात। सच कहो? इतनी स्वार्थी दुनिया में इतना नाज़ुक दिल देकर आपने मुझे न जाने क्यूँ भेजा? आप ही जानते होंगे। इंसान के स्वार्थ ने उसकी दुनिया, उसके रिश्ते और उसकी सारी नैतिकता की आँखों पर पट्टी बांध रखी है। मैं और मेरे जैसे न जाने कितने लोग इसी पट्टी के खुलने का इंतज़ार कर रहे हैं। हमारा इंतज़ार शायद हमारे जीवन जितना लंबा हो। पर इस भरे पूरे जीवन में इतनी छोटी सी कमी का क्या ही ज़िक्र करूँ! शुक्रिया भगवान। आपने मुझे दोनों हाथों से दिया और बहुत दिया।

अकेले हैं तो क्या गम है

  तुमसे प्यार करना और किसी नट की तरह बांस के बीच बंधी रस्सी पर सधे हुए कदमों से चलना एक ही बात है। जिस तरह नट को पता नहीं होता कब उसके पैर क...