Wednesday 1 August 2018

उम्र का तकाज़ा या उम्र का बोझ

अध्याय ५१
ये रचना मैंने अपने ब्लॉग के अर्धशतक के लिए रख छोड़ी थी पर उस वक़्त मन भटक गया. खैर ५१ का शगुन ही सही:

आज ब्लॉग की पिच पर मैंने अर्धशतक बनाया है. इसके लिए कोई ख़ास रचना तलाश ही रही थी कि एक सोशल मीडिया पोस्ट पर नज़र पड़ी और मसला खुदबखुद हल हो गया. माधुरी दीक्षित जी की एक आकर्षक तस्वीर के नीचे किसी निहायत ही अहमक शख्स के गुस्ताखी भरे जुमले और उनके जवाबों की एक श्रृंखला पर नज़र पड़ी.






एक खूबसूरत और गरिमामय व्यक्तित्व का सज संवर कर रहना किसी को इतना बुरा लगा! तो मेरे जैसी ३० पार कर चुकी महिलाएं क्या करें? जान बूझ कर अपना व्यक्तित्व बिगाड़ लें या फीके रंगों के कपड़े पहन कर घर के किसी कोने में  खुद को समेट लें? कौन तय करता है ये मानक कि एक निश्चित उम्र के बाद एक स्वतंत्र और आत्मविश्वासी स्त्री को कैसे रहना है? क्यूँ? ऐसा करने वाले के शब्दों को विराम देने की बड़ी कोशिशें की गईं पर सब बेकार. हर बात का उनके पास एक ही अतार्किक, घटिया और ओछा जवाब था.

सोचती हूँ ऐसे ही लोग होते होंगे जो किसी की स्कर्ट की लम्बाई को उसके चरित्र का मानक मानते होंगे. सड़कों पर चल रहे जोड़ों को धमकाते होंगे या किसी अकेली लड़की का सड़क चलना मुश्किल बनाते होंगे. या मेरे जैसी किसी लड़की के पीठ पीछे उसके बारे में अनर्गल प्रलाप किया करते होंगे. पर ऐसे लोगों के लिए शायद चुप्पी कोई जवाब नहीं है. *Troll Police की बड़ी याद आती है मुझे. वो हक्की बक्की शक्लें, लड़खड़ाती जुबान और आँखों में डर देख कर दिल को बहुत सुकून मिलता था.
कितना आसान लगता है उनको एक नकली चेहरे के पीछे छुप कर किसी के बारे में अपमानजनक बातें कहना. कितना मुश्किल था दिन की रोशनी में उसी इन्सान से ऑंखें मिलाना. कुछ तो अपने घमंड में चूर इतरा कर चल भी दिए. कुछ ने गलती का एहसास किया और माफ़ी मांगी.

एक बात पर उन सब में एक जैसी ही थी. वो सारे लोग एक नकली चेहरे के पीछे छुप कर जो चाहे बोलें पर उनके अन्दर उसी बात को सबके सामने कहने की हिम्मत नहीं थी. इसी तरह के लोग हैं जिन्हें हम चाँद दिखाना चाहते हैं और वो हमारी ऊँगली की गलतियाँ निकालने में लगे रहते हैं. चाँद की तरफ तो कोई देखता ही नहीं.

कुछ ऐसी ही कहानी मेरी भी है. मेरा खूबसूरत व्यक्तित्व वो चाँद है जिसकी तरफ मैं सबका ध्यान खींचना चाहती हूँ. चाहती हूँ कि मुझे मेरे चेहरे और कद काठी से ज्यादा लोग मेरे व्यक्तित्व और आत्मविश्वास के लिए पहचानें पर लोग हैं कि मेरी बढती उम्र और मेरे अविवाहित रहने की तरफ देखने में ही लगे रहते हैं. पर फिर भी मुझे पूरा यकीन है कि किताबों और रचनाओं की इस दुनिया में मेरी पहचान मुझे ज़रूर मिलेगी. पढने लिखने वाले वो सुरुचिपूर्ण लोग होते हैं जिनकी नज़र हमेशा माधुरी जी जैसे चाँद की तरफ ही रहती है, उनकी उम्र जैसी नादान सी ऊँगली की तरफ नहीं. 

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