अध्याय ५३
हे ईश्वर
दो दिन से उनकी आवाज़ नहीं सुनी। देखा तो था उस दिन पर उसके बाद जाने क्या हुआ! वो इतना नाराज़ हो गए कि मुझे छोड़ कर जाने की बातें करने लगे। बेजा इल्जामों के बोझ तले दबा दिया उन्होने मेरा सारा प्यार। अब मेरे ऊपर लगे लेबलों की सूची में 'दिखावपसंद' भी जुड़ जाएगा। बड़ा यकीन है मन को मेरे खुद पर और अपने इस प्यार पर। फिर भी॥किस्मत भी तो कोई चीज़ होती है। वहमी से मन को बार बार ख्याल आ रहा है - उस दिन व्रत के दिन नहीं कहना चाहिए था कि भूख लगी है। पर दुनिया भर के दीन दुखियों की चीख पुकार के बीच क्या भगवान को याद होगा कि मैंने ऐसी कोई बात कही थी? कहाँ मैं जो बच्चों की तरह उनसे फर्माइशें कर रही थी और कहाँ आज का ये दिन कि आवाज़ तक नहीं सुनी मैंने उनकी।
लगा था भटक जाऊँगी अगर अपना हाथ छुड़ा लिया उसने। पर मैं तो पहले से कहीं ज़्यादा ज़िम्मेदार हो गई हूँ। देखो न कल घर जाने की कोई जल्दी नहीं थी। आराम से लंच छोड़ कर सारा दिन काम किया और खाना खाए बिना ही सो गई। चीख चिल्ला कर घर और ऑफिस सिर पर उठाने वाली मैं - मुंह से एक आवाज़ तक नहीं निकाल रही। बहुत दुख होता है लेकिन सच में। जब आपके अतीत की परतें खोलने वाला ही एक दिन आपका वही अतीत उठा कर आपके मुंह पर मार देता है। ये बात शायद मैं पहले भी कह चुकी हूँ पर सच! लोग बदलते रहते हैं पर उनके झूठे बे बुनियाद इल्ज़ाम वहीं के वहीं।
'तुम चाहती हो लोग हमारे बारे में वही बातें करें जो तुम्हारे और उसके बारे में उड़ा करती थीं' कटघरे में खड़े होना किसे अच्छा लगता है? वो भी अपने किए हुए जुर्म से जब आप अंजान हो। और मेरा तो अपराध अक्षम्य है ही। मैं लड़की हूँ और वो भी आत्मनिर्भर और अकेली। तीन तीन भयंकर अपराध! उस पर मैं कभी अपने तौर तरीकों के लिए माफी भी नहीं मांगती। न ही ये देखती हूँ कि मेरे ऊपर गड़ी नज़रों में किस कदर हिंसात्मक भाव हैं। लेकिन भगवान एक बात बताइये न...आप मेरी जिंदगी से 'कमज़ोर कड़ी कौन' खेलना कब छोड़ेंगे? मुझे इस बात का दुख नहीं है कि किसी का साथ छूट गया या छूट जाता है। बस इस बात का दुख है कि उसने पहले क्यूँ नहीं कहा कि वो मुझसे इतनी नफरत करता है।
अब आपके सवाल का जवाब... नहीं, मैं नहीं चाहती कि चार लोग हमारे बारे में बातें करें। मैं बस इतना चाहती हूँ कि आपको मुझसे बात करने में या चार लोगों के सामने ये स्वीकार करने में हिचक न हो। मुझसे जान पहचान किसी के लिए शर्म का कारण बने ऐसा नहीं सोचना चाहती मैं। पर ऐसा होता है और बार बार होता है। इसे सिर्फ ईश्वर ही रोक सकते हैं। इसलिए ईश्वर आप ही अब कृपा कीजिये, प्लीज।
अब आपके सवाल का जवाब... नहीं, मैं नहीं चाहती कि चार लोग हमारे बारे में बातें करें। मैं बस इतना चाहती हूँ कि आपको मुझसे बात करने में या चार लोगों के सामने ये स्वीकार करने में हिचक न हो। मुझसे जान पहचान किसी के लिए शर्म का कारण बने ऐसा नहीं सोचना चाहती मैं। पर ऐसा होता है और बार बार होता है। इसे सिर्फ ईश्वर ही रोक सकते हैं। इसलिए ईश्वर आप ही अब कृपा कीजिये, प्लीज।
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