हे ईश्वर
शुक्रिया उनको वापस लाने के लिए! आप सोचते होंगे मैंने एक ज़रा सी बात
पर क्या कुछ सोच लिया। आप तो सब कुछ जानते हैं न? फिर क्यूँ ऐसे
आजमाते हैं मेरे प्यार को? मन बिलकुल से सहम गया था। लगा था आज
के बाद हम कभी एक दूसरे से मिल नहीं सकेंगे। लगा था कि अब वो मेरे सामने ही किसी और
के साथ होंगे मुझसे बेपरवाह। बेहद दर्द हुआ था भगवान ये सोच कर। फिर ये भी सोचा कि
कम से कम अब मेरे जैसी बुरी लड़की से उनका पीछा तो छूटा। कितना समय, कितना श्रम और कितना सारा सब्र उनके पास। कितना तो समझाते थे मुझे। मुझे ही
भरोसा नहीं होता था। रात भर में अपनी एक भी अच्छी बात याद नहीं कर सकी थी मैं। बस वही
सब याद आता था कि मैंने उनको कितनी चोट पहुंचाई है। कितना दुख दिया है।
सुबह हुई थी बेहद बुझी बुझी पर उनके एक ही शब्द ने मुझे ये एहसास दिला
दिया कि मेरा निश्चय कितना खोखला था। वो मुझसे बेहद प्यार करते हैं और अगर इतनी गलतियों
के बाद भी मुझे वो माफ कर सके हैं तो मुझे भी कोशिश करनी होगी। मन हमेशा अपनी ही बुराइयों
में क्यूँ उलझा रहता है भगवान? क्यूँ मुझे किसी और में कोई कमी नहीं
दिखती? क्यूँ नहीं सोचती हूँ मैं कि शायद मेरे साथ ही कुछ गलत
हुआ था?
वैसे भी उनका और मेरा साथ है ही कितना? कल को जब रीत रिवाज
के बंधन इनको जकड़ेंगे तब ये चाह कर भी उनको तोड़ नहीं सकेंगे। बहुत मज़बूत होती है सामाजिक
निषेध की ज़ंजीरें भगवान। पर सच कहूँ तो बहुत कुछ चाहते हैं ये जिंदगी से और मुझसे भी।
कहने को ज़रूर कहते हैं कि मुझे तुमसे कोई उम्मीद नहीं पर इनकी आँखें न जाने क्यूँ इनका
साथ नहीं देतीं। काश कि कभी ये खुल कर बोल सकें कि मेरे पास ही रहो तुम। कहीं मत जाओ।
काश कि स्वीकार कर सकें मुझे। प्लीज भगवान। जिंदगी बेहद सहज हो सकती है अगर आप चाहो
तो। चाह लो न प्लीज!!
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