Tuesday, 25 June 2019

विनाश काले विपरीत बुद्धि

Top post on IndiBlogger, the biggest community of Indian Bloggers

हे भगवान

ये कौन से दिन दिखा रहे हो आप मुझे? थक जाते हो न आप भी? कितना सवाल करती हूँ मैं! कल उसने भी यही कहा कि तुम इतने सवाल करती भी क्यूँ हो? तुमने तो कहा था कि मैं जैसा भी हूँ तुम मुझे वैसे ही स्वीकार करोगी। सब तो मान लिया मैंने उसका भगवान। ज़िद, गुस्सा, झगड़ा, कही अनकही फर्माइशें और उनकी वो 200 किलोमीटर लंबी सी फ्रेंड (!) लिस्ट। यहाँ तक कि मुझे छोड़ कर आगे बढ़ने का उनका निर्णय भी। अब वो चाहते हैं कि मैं उनकी जिंदगी में एक दूसरी औरत को स्वीकार करूँ। ये भी स्वीकार करूँ कि वो उससे हर तरह की नज़दीकियाँ रखेंगे और मैं कभी सवाल नहीं करूंगी। कभी कभी लगता है ये सब झूठ है और वो मुझे केवल सता रहे हैं, आज़मा रहे हैं मेरे प्यार को।

पर कभी कभी ये भी लगता है कि मज़ाक की आड़ में कहीं कोई ऐसा सच तो नहीं जो वो मुझे दिखाना चाहते हों। वो कहते हैं शक का कोई इलाज नहीं होता॥ पर भगवान, अंधविश्वास भी तो कोई विकल्प नहीं है न। मुझे इन पर भले ही अटूट विश्वास हो पर त्रिया चरित्र के काटे का कोई इलाज भी तो नहीं। हर किसी की जिंदगी में एक ऐसा वक़्त ज़रूर आता है जब वो अपने हित, मित्र, और शुभचिंतकों से दूर एक ऐसे दलदल में चला जाता है जहां से उबरना शायद मुमकिन ही नहीं। मैं उनको डूबते हुए नहीं देख सकती। पर एक सच ये भी है कि इस वक़्त उनको मेरी कोई भी सलाह बस एक ईर्ष्या में अंधी प्रेमिका की बकवास ही लगती है। सब कुछ खत्म सा हो रहा है भगवान।

मैं अपना आत्मसम्मान चुनूँ या फिर स्वीकार कर लूँ उनका ये रूप। हर स्थिति में हार तो मेरी ही है। मैं बहुत ही हारा हुआ महसूस करती हूँ कभी कभी। पर मेरे लिए उनकी फिक्र मुझे आश्वस्त करती रहती है। मन डूबने को होता है कि वो आकर इसे उबार लेते हैं। मुझे संभाल लेते हैं। आपके भरोसे मैंने छोड़ा है उनको, समय पर उन्हें उबार लेना। प्लीज भगवान!  




No comments:

Post a Comment

अकेले हैं तो क्या गम है

  तुमसे प्यार करना और किसी नट की तरह बांस के बीच बंधी रस्सी पर सधे हुए कदमों से चलना एक ही बात है। जिस तरह नट को पता नहीं होता कब उसके पैर क...