हे ईश्वर
मैं इतनी ही बुरी हूँ तो क्यूँ लाते हो लोगों को मेरे पास? क्या इसलिए कि एक दिन मेरा दिल तोड़ दें? कितनी बार भगवान और क्यूँ? आज आपको मुझे ये बताना ही पड़ेगा! वो भी दिन थे कि ये मेरी तारीफ़ें करते नहीं थकते थे। आज किसी से तुलना भी करते हैं और उसे मुझसे हर लिहाज से बेहतर भी बताते रहते हैं। अचानक से मेरी सारी अच्छाई , मेरे सारे गुण न जाने कहाँ खो गए हैं। इनको आजकल मुझमें कुछ अच्छा नज़र नहीं आता। मैं बेहद कोशिश करती हूँ अपना मनोबल ऊंचा रखने का पर पता नहीं क्यूँ मुझसे हो ही नहीं रहा है। मैंने आप पर विश्वास किया है इसलिए आने दिया था इनको अपनी जिंदगी में। क्या आप भी मेरा विश्वास तोड़ देंगे? क्या आप भी मुझसे प्यार नहीं करते? क्या आप भी आपकी दुनिया के लोगों की तरह सिर्फ मेरी कमियाँ ही गिनवाएंगे? बताइये?
आजकल लगता है आपका मेरी परीक्षा लेने का मन है। इसलिए उनके मुंह से न जाने कैसी कैसी बातें सुनने को मिलती हैं। कभी मेरा घर, कभी मेरा रहन सहन और कभी तौर तरीके से उनको शिकायत होने लगी है। सच तो ये है भगवान कि मैं आज भी वही हूँ जो तब थी। पर उनकी आंखों पर वो पट्टी बंधी है जो किसी भी स्त्री के जीवन का सबसे बुरा सपना होती है। हां भगवान आजकल किसी और के साथ उनकी नज़दीकियां कुछ ज़्यादा ही बढ़ती जा रही हैं। मैंने बहुत कोशिश की कि उनको आईना दिखा सकूँ। पर इस वक़्त वो कोई भी सच देखने को तैयार नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि पहले कभी उसके साथ मैंने इनको देखा नहीं या कभी उसका ज़िक्र नहीं आया। पर आपने हम स्त्रियों को जो छठी इन्द्रिय का वरदान दिया है वो आजकल उसके नाम तक से सहम जाती है। मन आशंकित है भगवान और उनके शब्दों में ये सिर्फ मेरा वहम है। काश ऐसा ही हो!
वो कई बार कहते हैं कि मैं अपने नियम कानूनों में बंधा हुआ हूँ। ये सब कुछ तो पहले भी था न ईश्वर। पर अब कुछ और भी है। वो साफ साफ कहते हैं वो मुझे छोड़ सकते हैं पर उसको नहीं। शायद छोड़ भी देंगे एक दिन। ये निश्चय करने में एक पल भी नहीं लगा उन्हें। कितना नाकाफी सा है न मेरा प्यार!
उनको शायद एहसास भी नहीं कि उनकी बातों से मुझे किस कदर चोट पहुंची। जानते होंगे वरना इस तरह क्यूँ कहते? आज आधी रात तक मैंने अपने इस कमरे का कोना कोना चमकाया है। सिर्फ इसलिए कि उनको लगता है मेरा घर अव्यवस्थित है, बिखरा हुआ है। आज पहली बार लग रहा है कि मैंने अपने जीवन में जो भी पाया उसके लिए मैंने कितनी बड़ी कीमत चुकाई है। मैंने इतने साल अपने ही खोल में बंद रह कर गुज़ार दिए। आज लगा जैसे आँखें खुली हैं। एक बार पहले भी उसके लिए मुझे अपशब्द कह चुके हैं ये। उनकी बोली हुई वो एक बात आज भी कभी कभी मेरी रातों की नींद उड़ा देती है। इतनी बुरी हूँ मैं भगवान? सचमुच? उस वक़्त भी मैंने बस अपने आप को अपने इस घर में बंद कर लिया था। आज मन कर रहा है कि अपनी सांसें भी बंद कर दूँ। और नहीं देखना चाहती मैं तुम्हारी ये दुनिया।
मैं इतनी ही बुरी हूँ तो क्यूँ लाते हो लोगों को मेरे पास? क्या इसलिए कि एक दिन मेरा दिल तोड़ दें? कितनी बार भगवान और क्यूँ? आज आपको मुझे ये बताना ही पड़ेगा! वो भी दिन थे कि ये मेरी तारीफ़ें करते नहीं थकते थे। आज किसी से तुलना भी करते हैं और उसे मुझसे हर लिहाज से बेहतर भी बताते रहते हैं। अचानक से मेरी सारी अच्छाई , मेरे सारे गुण न जाने कहाँ खो गए हैं। इनको आजकल मुझमें कुछ अच्छा नज़र नहीं आता। मैं बेहद कोशिश करती हूँ अपना मनोबल ऊंचा रखने का पर पता नहीं क्यूँ मुझसे हो ही नहीं रहा है। मैंने आप पर विश्वास किया है इसलिए आने दिया था इनको अपनी जिंदगी में। क्या आप भी मेरा विश्वास तोड़ देंगे? क्या आप भी मुझसे प्यार नहीं करते? क्या आप भी आपकी दुनिया के लोगों की तरह सिर्फ मेरी कमियाँ ही गिनवाएंगे? बताइये?
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