Saturday 29 June 2019

निर्वासन



हे ईश्वर
मैं अब तुम्हें कुछ नहीं बताया करूंगा जिस इंसान के लिए मैं न जाने कितनी मन्नतें मांगा करती हूँ, आज वो कहता है तुम कभी साबित नहीं कर पाओगी कि हमारा कोई रिश्ता है। वो मुझे नकारात्मक कहता है, मुझसे दूर जाना चाहता है। किसी और से उसकी बढ़ती नज़दीकियों पर सवाल उठाओ तो मुझे शक्की कह कर टाल देता है। उनके लक्ष्य प्राप्ति में कोई बाधा न आए इसलिए मैंने अपनी सारी छोटी बड़ी खुशियाँ बलिदान कर के चुपचाप इंतज़ार करने का विकल्प लिया था। क्या इसीलिए कि जिस दिन वो दिन आए उस दिन मैं उनकी खुशी और सफलता का हिस्सा ही न रहूँ? आज उनको किसी के गलत तरीके इसलिए सही लग रहे हैं क्यूंकि उसने उन्हें आसानी से मिलने वाली सफलता का प्रलोभन दिया। वो कहते हैं तुम तो आरक्षित वर्ग से हो। तुम्हें क्या पता हमारे संघर्ष के बारे में!

सच है मुझे उनके संघर्ष के बारे में कुछ नहीं पता। पर मेरे जीवन के छोटे छोटे संघर्षों के बारे में वो भी तो नहीं जानते! मैं पढ़ाई में हमेशा से अच्छी थी। पीछे के सीट पर बैठने वाली एक चुपचाप सी लड़की जो बस अपनी किताबों में खोई रहती थी। किताबें ही मेरी सुख दुख की साथी हैं। इसलिए मैंने कभी आपकी दुनिया को ठीक से पहचाना ही नहीं। आपकी दुनिया मेरी सफलता और उपलब्धियों से रश्क करती है, मुझे नीचा दिखाना चाहती है। और कोई तरीका नहीं मिला तो उसने आरक्षण को ही अपना हथियार बना लिया। कितना ही कहूँ कि मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता पर जब एक बैसाखी को वो मेरी सफलता का इकलौता कारण बताते हैं मुझे दुख होता है। एक दिन की बात बताती हूँ भगवान। मेरी कंपनी के किसी नियम पर बहस चली थी। मैंने सही उत्तर ही दिया फिर भी सामने वाले को ये विश्वास नहीं था कि कोई अनारक्षित वर्ग  का व्यक्ति उसे गलत उत्तर बता सकता है। पर साँच को आंच नहीं होती भगवान। मैंने भी नियमावली का वो पन्ना उसकी आँखों के आगे लहरा दिया। आपने मेरा सिर झुकने से बचा लिया।

मैंने कई बार लोगों को चुनौती दी है कि हो सके तो मेरे ज्ञान की परीक्षा कर के देख लें। पर उनको आक्षेप करके निकल जाना ही आसान विकल्प लगता है। मैं भी हार नहीं मानूँगी। एक दिन आपकी यही दुनिया मेरे ज्ञान का लोहा मानेगी। मेरे गुणों का अनुसरण करना चाहेगी। मेरी लिखी कहानियों की तरह मैं भी आपके समाज को शर्म से नज़रें झुकाने पर मजबूर कर दूँगी।
रहा सवाल इनका तो गलत का भी अपना एक नशा होता है। इनको इस दलदल में गिरने से अब मैं नहीं रोक सकूँगी। इस वक़्त उनके किसी भी शुभचिंतक की कोई सलाह काम नहीं आएगी। जब तक वो अपने हिस्से की ठोकर नहीं खा लेते, जब तक उनको भी वही धोखा नहीं मिलता जो उसने बाकी सबों को दिया, जब तक उन्हें भी दूध की मक्खी की तरह निकाल नहीं दिया जाता, तब तक मुझे इंतज़ार करना ही होगा। वो ठोकर खाएँगे और लौटेंगे मेरे पास। तब तक थोड़ा सा सब्र ही सही।   

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