अध्याय ४२
हे ईश्वर
सुनो द्रौपदी शस्त्र
उठा लो
अब गोविन्द न
आएंगे
स्वच्छ भारत अभियान में हम लोग बढ़
चढ़ कर अपना योगदान दे रहे हैं. अथक प्रयास करके गाँव गाँव तक बिजली, पानी ला रहे
हैं, दवाएं बाँट रहे हैं, पेड़ लगा रहे हैं, पीने का पानी जुटा रहे हैं. बहुत गर्व
होता है जब मैं देखती हूँ कि विकास की इस दौड़ में हम अपने सभी लोगों को साथ ले कर
चलने का प्रयास कर रहे हैं. हमारे पास जो कुछ भी है वो खुले दिल से बाँटने की
कोशिश कर रहे हैं.
इस सब के बीच एक और स्वच्छ भारत
अभियान है जो हमें चलाना है. हमें अपने घर के साथ साथ अपने मन भी तो साफ़ सुथरे
करने हैं. यहाँ लड़कियों का सड़क चलना तक दुश्वार है और हम नई नई सड़कें बना रहे हैं.
इन्टरनेट पटा पड़ा है नोच खसोट के दहला देने वाले दृश्यों से. आज मन बहुत दुखा हुआ है.
इन्टरनेट पर फिर से भयानक कहानियां सुनने को मिलीं. एक पूरा परिवार जिसमें ११ लोग
थे, पता नहीं किस कारण उन लोगों ने खुद को ख़त्म कर लिया या फिर उनको किसी ने मार
दिया. ७ साल की दिव्या और १७ साल की संस्कृति की चीखें भी गूंजी. सो नहीं सकी हूँ
दो रातों से. मन खट्टा हो गया. अपने ऊपर बेतरह शर्म आ गयी भगवान जब मन में आया ‘शुक्र
है ऐसा मेरे साथ नहीं हुआ.’
पर क्या सच में ऐसा कुछ मेरे साथ नहीं
हुआ? ये जो ‘बिगड़ी हुई लड़की’ का तमगा आपके समाज ने मुझे दे दिया है, वो क्या है?
क्या है ये देर रात को आने वाले अनचाहे फ़ोन? क्या है जो किसी भी इन्सान को मेरे
अकेले होने और अनब्याहे होने पर वक्र दृष्टि डालने की अनुमति देता है. मेरा
अनब्याहा होना मेरी अपनी इच्छा है, कोई मजबूरी नहीं.और अपने तरीके से जीने की
कैफियत मैं किस किस को दूँ और क्यूँ? क्या क्या बताऊँ आपको ईश्वर? आप तो
सर्वज्ञापी और सर्वज्ञानी हैं.
कल मेरी जिंदगी का एक बहुत बड़ा दिन
है. कल मुझे किसी से साफ़ साफ बात करनी है. आँखों में ऑंखें डाल के अपने हमलावर की
आँखों में देखना है. बताना है उसे कि वो मुझे डरा नहीं पाया है. मैं हारी नहीं
हूँ, मैं टूटी भी नहीं हूँ. मैं डरती तो बिलकुल भी नहीं हूँ. मेरी मदद करो, ईश्वर.
मुझे अब अपना गोविन्द खुद बनना है. अब अपनी रक्षा के लिए शस्त्र मुझे खुद उठाने
हैं. मेरी निर्भीकता ही मेरा सबसे बड़ा शस्त्र है, ईश्वर. मुझे हिम्मत दो सब कुछ
ठीक करने की.
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