अध्याय ४७
हे ईश्वर
क्या कहूँ? किन शब्दों में कहूँ?
किसे कहूँ? कैसे कहूँ? बहुत से सवाल हैं जो मन में गूंजते रहते हैं. मेरे रचयिता,
मेरी हर कहानी के किरदार ही बदलते रहते हैं, कहानी वही रह जाती है.पर इसमें भी न
भगवान, गलती मेरी है. पहले ही मान लिया था मैंने कि ये गलती सिर्फ और सिर्फ मेरी
है. मैंने पुरुष की जात से इंसानियत, हमदर्दी, समझदारी, परिपक्वता, ईमानदारी और भी
न जाने कितनी सारी बड़ी बड़ी उम्मीदें लगा के रखी थीं. मैंने सोच भी कैसे लिया कि
समाज के नाम पर खदेड़े हुए श्वान से भी तेज़ी से भागने वाली ये प्रजाति डट कर मेरी
तरह उसका सामना कर पाएगी.
फिर क्यूँ आपने इन्हें हक दिया कि
मेरी शांत सी ज़िन्दगी में उथल पुथल मचा सकें! मेरे ईश्वर आज एक ही दिन में दो बार
ऐसा हुआ कि मुझे किसी की बेहद ज़रूरत पड़ी और मैंने खुद को अकेला ही पाया. उनसे कहने
पर हमेशा वाला ‘मैं इतना ही बुरा हूँ तो छोड़ क्यूँ नहीं देती मुझे’ का सस्ता सा
राग अलाप दिया. कई बार उन्होंने कहा है कि इस तरह अपनी सारी भावनाएं कभी न उड़ेला
करो. पर सच कहूँ, ये भी पुरुष की कायरता का ही एक रूप है. वो कभी सोचना ही नहीं
चाहता कि उसने किसे और कितनी चोट पहुंचाई है.
सच कहूँ तो मन करता है अब कुछ छोड़
कर आगे बढ़ जाऊं. न जाने कौन सी चीज़ है जो बार बार कदम रोक लेती है. जिस रिश्ते में
मैं किसी को ख़ुशी नहीं दे पा रही, उस रिश्ते में उसे रहने को कैसे कहूँ? किस हक से
उम्मीद करूँ? क्या कह कर उसका रास्ता रोकूँ? हर बार जब हम दोनों अपने मतभेदों के
बारे में बात करने की कोशिश करते हैं, उनके लगाए ‘ये सब तुम्हारा किया धरा है’ के
इलज़ाम मेरे कानों के परदे फाड़ने लगते हैं. मैं कितना भी दर्द से चीख पडूं, वो मेरे
अतीत के घाव कुरेदने में ज़रा भी रहम नहीं करते. आकर्षण किसी के भी मन में पहले
पनपा हो, दोषी तो मैं ही हूँ.
अतीत को छोड़ कर आगे बढ़ जाना बेहद
आसान होता अगर इस बार या किसी बार किसी के निर्णय बदल जाते. अगर एक बार मैं अकेली
न होती. अगर एक बार किसी ने कहे हुए को निभाने का साहस दिखाया होता. अगर एक बार
किसी ने साफ़ साफ़ ये कहा होता कि मैं केवल तुम्हारा इस्तेमाल करने में दिलचस्पी
रखता हूँ, तुम्हारा ख्याल रखना मेरी ज़िम्मेदारी नहीं है. पर लोग तो लोग हैं! प्यार
करता हूँ, परवाह करता हूँ, अपनाना चाहता हूँ... कितने सारे झूठ. हे भगवन, मर्द जात
को सच बोलना सिखा दो न. ताकि मेरी तरह किसी को प्यार के नाम पर इस तरह के छलावे न
मिलें.
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