अध्याय ४५
मैं खाज वाली कु*या ही सही, अच्छा
है कि मैं किसी की पाली हुई कु*या नहीं हूँ. कम से कम मुझे कोई दुरदुरा तो नहीं
सकेगा.
हे ईश्वर
इस रचना के लिए मैं आपसे और अपने
सभी अपनों से माफ़ी मांगना चाहती हूँ क्यूंकि कई बार मेरी रचनाएँ उन्हें डराती हैं
और काफी आहत भी करती हैं. कई बार उन्होंने मुझसे चुप रहने या अपनी रचनाओं को थोड़ा
सजाने सँवारने का भी कहा है पर हो नहीं पाया. भगवान, जिस तरह बुरे से बुरे इन्सान
को इस दुनिया में रहने का हक है उसी तरह मेरी कड़वी से कड़वी बात को आप तक पहुंचने
का पूरा हक है. इसलिए क्षमा तो चाहती हूँ पर झुक नहीं सकूंगी. भले ही इस बात से
कोई भी मुझ पर कैसा भी इलज़ाम लगा दे, मैं सब इलज़ाम झेल सकती हूँ. पर मेरी रचना मेरी
वो संतान है जिसकी शरारतों पर मैं खुद भले ही उसे दो थप्पड़ लगा दूँ, पर बाहर वालों
को उस पर बोलने का कोई हक नहीं दूंगी.
कुछ दिन पहले गुस्से में मेरे
पिताश्री ने मुझे कहा ‘खाज वाली कु*या’ बन जाओगी तुम अगर सबसे झगड़ा
करोगी.’ पितृसत्तात्मक समाज में रहने के और काम करने के साइड इफेक्ट्स ये भी होते
हैं कि आपकी आवाज़ दबाई जाती है. आपके लिए गये निर्णय पर सवाल उठाये जाते हैं. आपके
आने जाने के समय पर नज़र रखी जाती है. जब आप इन सब पर सवाल उठाते हैं या विरोध करते
हैं तो लोग आप पर आक्षेप लगाने लगते हैं. हर किसी के सात खून माफ़ हैं पर मेरे
लिए हर रस्ता बंद है. इस बात पर जब मैंने उंगली उठाई तो मुझे इस विशेषण से नवाज़
दिया गया.
सच तो कहा उन्होंने, मैं हूँ ही खाज
वाली कु*या. मैं ही क्यूँ हर वो लड़की जिसका आत्मविश्वास उसका सबसे बड़ा हथियार होता
है खाज वाली कु*या ही तो है. हर वो लड़की जो समाज की उठी हुई उँगलियों के बावजूद
चाँद की तरफ ही देखती हैं, किसी की ऊँगली की गलती नहीं निकालती. हर वो लड़की जिस पर
एसिड अटैक होने के बाद भी वो बाहर निकलती है, नौकरी तलाशती है और खुद का व्यवसाय
भी शुरू करती है. हर वो लड़की खाज वाली कु*या होती है जो पति के छोड़े जाने के बाद
दूसरा घर बसा लेती है या अपना घर बना लेती है. हर वो लड़की जो खूबसूरत सिर्फ अपने
लिए दिखना चाहती है किसी और के लिए नहीं.
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