Sunday 29 July 2018

सावन का सोमवार


अध्याय ४९ 
मेरे ईश्वर

शिव – औघड़ दानी, सन्यासी, भोले बाबा! कितने सारे नाम दिए गए हैं भगवान को.मैंने भी आज व्रत रखा है. मां का कहना है जब तुम्हें शादी ही नहीं करनी तो व्रत क्यों रखा है तुमने ! सही है मां.. शादी के अलावा किसी लड़की की कोई हार्दिक इच्छा हो भी कैसे सकती है!

पर मेरी है...जानती हो क्या? मैं चाहती हूँ मेरा खुद का घर. एक घर जो छोटा सा ही सही पर मेरा हो. ऐसा घर जिसमें मैं कभी भी जाकर रह सकूँ. एक घर जिसमें मैं अपनी हर चीज़ रख सकूँ. ऐसा घर जो मेरी शरण हो. घर जिसमें जब कोई मुझे कहेगा ‘अपने घर चली जाओ’ तो जा सकूँ. मुंह पर मार दूँ लोगों के ये जुमला. ‘अपना घर’.

एक अच्छी और बेहतर ज़िन्दगी मेरा सपना है मां. न सिर्फ अपने लिए बल्कि दुनिया की हर औरत के लिए. मैं बेहद खुशकिस्मत हूँ कि मेरा ये सपना सच हुआ है. मैं जिस घर में रहती हूँ उसका एक एक कोना मेरा है..मेरी किताबें हैं जो हर जगह बिखरी रहती हैं, मेरे ही कपड़े हैं जो दिन भर सहेजे जाते हैं. डायरी, गिटार, कार्ड्स और न जाने क्या क्या. मैं सचमुच बेहद खुशकिस्मत हूँ कि एक शांत और सुरक्षित जीवन है मेरा.

अभी कुछ दिन पहले मैं बेहद अशांत थी. अचानक ही बढ़ते हुए क़र्ज़ से परेशान होकर मैंने अपनी रातों की नींद हराम कर ली थी. पर एक दिन अचानक मैंने सोचा. मैंने अभी तो बस एक ही निर्णय लिया अपने आप. क्या हुआ अगर वो थोड़ा सा गलत था. उससे मेरी जिंदगी ख़त्म तो नहीं हो जाती. मेरा कोई काम रुक तो नहीं जाता. मेरी आर्थिक आज़ादी छिन तो नहीं गई. मेरी उम्र बेहद कम है, एक अच्छी खासी तनख्वाह है, सेहत है. आगे बढ़ने के बहुत से अवसर हैं. ये क़र्ज़ भी कितने दिन मेरा पीछा करेगा. एक न एक दिन तो इसे ख़त्म होना ही है.

ये सारे ख्याल आते ही बुरा वक़्त जैसे एक कोने में सिमट गया. मेरे होंठों पर मुस्कान लौटी, जीने की इच्छा फिर से जगी. मेरे जैसी बहुत सी लड़कियां होंगी, जिन्हें गलती करने के ख्याल सताते होंगे. इस डर से वो जीना भी भूल जाती होंगी. पर मैं नहीं भूल सकती. मैं आज़ाद तो हूँ, बेपरवाह नहीं. मेरी जिंदगी सिर्फ मेरी नहीं. बहुत से लोगों की नज़र है उस पर. मेरी झुकी हुई नज़र दुनिया की हर आज़ाद औरत का सर भी झुका देगी. इसलिए जाओ, मैं हार मानने वाली नहीं.

इसी बीच में आ गया ये सावन का सोमवार. मेरे भोले बाबा का दिन. ईश्वर तो अन्तर्यामी होते हैं, तो अपनी इच्छा मुंह से क्यूँ कहूँ. समझते तो हैं, पूरा भी कर देंगे एक दिन.

उस दिन का इंतजार करूंगी!


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