अध्याय ३५
हे ईश्वर
तुम्हारी दुनिया के लोग क्यूँ इतनी
नफरत करते हैं लड़कियों से? जहाँ देखो वहां गाली गलौज और तानेकशी की बौछार ही नज़र
आती है. आज मैंने अपना सोशल मीडिया हैंडल खोला तो एक मशहूर अभिनेत्री के नए रिश्ते
पर छींटाकशी का दौर चल रहा था. लोगों की सोच पर तरस भी आता है और गुस्सा भी. बड़ी
आसानी से किसी भी स्त्री पर कीचड़ उछाल देते हैं. उम्र का अंतर आज कैसे नज़र आ गया
उन लोगों को जिनकी आँखों के सामने इतने सारे बेमेल विवाह होते रहते हैं. जहाँ मर्द
जितने चाहे रिश्ते बना लेता है वहां एक लड़की को कैसे कह दिया कि वो एक की कभी होकर
नहीं रह सकती. जनम जनम का रिश्ता कहलाने वाली शादी भी तोड़ने में लोग एक बार भी
नहीं सोचते. फिर क्यूँ सच्चरित्र होना सिर्फ हमारा धर्म है.
मैंने आपसे पूछा था न भगवान्..वो
क्यूँ मुझे सबके सामने स्वीकारते नहीं. फिर समझ आता है कि अगर सबके सामने हम साथ
आये तो लोग उन पर नहीं मुझ पर कीचड़ उछालेंगे. वैसे ही कहा करते हैं बहुत कुछ. मैं लोगों
से नहीं डरती. कहने दो उनको जो वो चाहें. तुम तो सच जानते हो न. उनकी मदद करना
भगवान्. लोग चाहे जो कहें उनको सही रास्ता दिखाते रहना. करोगे न भगवान्?
हमारी शादी पर फिर वही समाज, परिवार
और जात बिरादरी की तलवार लटक रही है. सब कहते हैं तुम क्या घर तोड़ देना चाहती हो?
नहीं भगवान्, क्यूँ चाहूंगी ऐसा? मैं तो एक घर को उसी खुले दिल से अपनाना चाहती
हूँ जिस दिल से मैंने उन्हें और उनके तौर तरीकों को अपना लिया था. एक बार गुस्से
में उन्होंने कहा था “तुम न तो अपना घर, न नौकरी, न आदतें और तौर तरीके छोड़ सकती
हो. तुम सिर्फ अपने लिए जीती हो.” याद आ गया था मुझे कि कैसे उनके घर के हिसाब से
खुद को ढालना चाहा था. कैसे उनकी सारी दिक्कतें खुद पर ओढ़ ली थीं और उनको हर तरह
से आराम पहुँचाने की कोशिश की थी.
मेरी जिंदगी में आए किसी भी इन्सान
ने कभी मेरे लिए कुछ करने का सोचा ही नहीं. रिश्ते में सुरक्षा मेरा हक था पर पता
नहीं कब मेरा फ़र्ज़ बन गया. लोगों का ख्याल राख राख के थक गयी हूँ अब. आराम करना
चाहती हूँ. पहली बार लग रहा है उसके साथ हूँ तो सुरक्षित हूँ. मुझे सुरक्षित रहने
दो न भगवान. प्लीज!
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