अध्याय ३८
हे ईश्वर
धोखा खूबसूरत होता है और सत्यम कभी
सुन्दरम नहीं होता.आज जब दोनों ही आँखों के सामने आए तो आँखों पर विश्वास नहीं
हुआ. मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि जिन लोगों के बारे में मैंने इतनी नेक राय बना
रखी है वो मेरी पीठ में छुरा घोंपने से पहले एक बार भी नहीं सोचेंगे. वैसे मेरे
बारे में आपके अलावा सोचता ही कौन है? शुक्रिया भगवान, वक़्त पर मेरी आँखें खोलने
के लिए. भगवान जैसे जैसे दिन बीत रहे हैं, अपने आपको संभालने की मेरी हर कोशिश
नाकाम होती जा रही है. मदद के लिए जहाँ भी हाथ बढ़ा रही हूँ, निराशा ही हाथ आ रही
है. ईश्वर, मैंने इतनी किताबें पढ़ी हैं, सबमें लिखा होता है ‘अच्छा सोचो.’ कुछ दिन
बड़े जोर शोर से अच्छा सोचो अभियान चलता है. डायरी में अच्छी अच्छी बातें लिखी जाती
हैं, सूचियाँ बनाई जाती हैं. फिर कुछ ऐसा हो जाता है जो एक ही पल में मेरी सारी
मेहनत पर पानी फेर देता है. ये क्या है, भगवान? ऐसे जैसे छोटे से पिल्ले के साथ खेलते
हुए अचानक वो आपको दांत गड़ा दे. अपनी असावधानी पर बहुत क्रोध आता है, पिल्ले के
दुस्साहस पर आश्चर्य भी होता है. अचानक से उसको झटकने को हाथ भी उठ जाता है.
ऐसा ही कुछ मेरा गुस्सा है. एक तो
मैं हर वक़्त दर्द में रहती हूँ आजकल. ऐसे में न जाने कितने लोग मेरी दुखती रग पर
जाने अनजाने हाथ रख़ देते हैं. एकदम से उनको झटकना मेरी आदत नहीं है भगवान, ज़रूरत
है. मुझसे टीस बर्दाश्त नहीं होती. क्या करूँ? सामने वाले तो दांत गड़ा देते हैं. आत्मरक्षा
में मैं उन पर हाथ उठा देती हूँ. कैसे रोकूँ खुद को?
लोग कहते हैं तुम सोचती हो सारी
दुनिया तुम्हारे खिलाफ है, ऐसा है नहीं. न होगा भगवान. पर ‘सावधानी हटी दुर्घटना
घटी’ इतनी बार हो चुका है कि अब ऐसा सोचने के अलावा मेरे पास बचने का कोई रास्ता
नहीं है. शक्की कहलाना मंजूर है मुझे पर बेवकूफ नहीं.
क्या मेरे प्रति कोई वफादार नहीं
है? क्या मेरी मेहनत का कोई मोल नहीं है? क्या चापलूसी ही सफलता का एकमात्र रास्ता
है? क्या मैं भी कड़वे सच की जगह चाशनी में लिपटे झूठ बोलने लगूं? क्या होती है डिप्लोमेसी?
इसकी कहीं कोई कक्षा भी चलती है क्या? बहुत सारे सवाल हैं मेरे पास और कोई
संतोषजनक उत्तर नहीं है.
सबकी राजनैतिक और सामाजिक मुद्दों
पर राय है और वो खुलकर उसे प्रकट करते हैं. सिर्फ मेरे लिए ये विकल्प बंद है.
क्यूँ भगवान? कहाँ है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता? सेंस ऑफ़ ह्यूमर के नाम पर
अश्लील मजाक बर्दाश्त नहीं कर पा रही, इसलिए लोग कहते हैं कि मैं अपने ‘औरत
कार्ड’ का प्रयोग कर रही हूँ. लोगों से कहीं ज्यादा योग्य होने के बावजूद मुझे
और मेरे काम को पहचान नहीं मिल रही तो लोग कहते हैं मैं अपने कोटे का फायदा उठा रही.
बहुत बोलते हैं तुम्हारे लोग भगवान और मेरी जुबान बंद रखने के लिए एड़ी चोटी का जोर
लगा रहे हैं.
हाँ, मेरा कोई सामाजिक जीवन नहीं है
और इसका मुझे कोई अफ़सोस भी नहीं है. मैंने सब कुछ खो कर अपने आप को पाया है और मैं
इस प्राप्ति की कद्र करती हूँ. शुक्रिया भगवान.
No comments:
Post a Comment