Friday, 1 June 2018

एक बार फिर


अध्याय ३१ 

हे ईश्वर

लगता है तुम्हारी दुनिया एक बार फिर जीत गई और मेरा प्यार हार गया. एक बार फिर मैंने मात खाई, मेरा विश्वास टूटा. एक बार फिर लोग हंस रहे होंगे इस पागल लड़की पर. एक बार फिर अपना प्यार, अपनी ज़रूरतें, अपना दुःख दर्द सब भूल कर एक कोने में चुप मार कर बैठ जाना होगा. भगवान तुमने मुझसे इतना प्यार किया, इतनी नियामतें बिछा रखी हैं मेरे क़दमों के नीचे. सेहत दी, अक्ल दी, समझदारी दी, सफलता भी दी. प्रेम दिया और सब देकर मुझे अकेला भेज दिया दुनिया में. कोई है ही नहीं जिसे मैं अपना ये प्यार सौंप सकूँ. कोई है ही नहीं जो कानों में हौले से कह सके ‘मैं तुमसे प्यार करता हूँ. हमेशा साथ दूंगा तुम्हारा.’ कोई मिला ही नहीं जो हाथ पकड़ कर कह देता ‘तुम मेरी हो, सिर्फ मेरी.’ नहीं न भगवान. तुम मेरी हो तो हर कोई कह देता है. कहना चाहता है! पर रात के अँधेरे में, चुपके से. ऐसे कि मेरे साये को भी न सुनाई दे ये बात. कोई माई का लाल दुनिया के सामने मेरा हाथ क्यूँ नहीं पकड़ता? क्यूँ मेरे कन्धों पर रखे हाथ फिसल कर नीचे तो जाना चाहते हैं, पर उठा कर सर पर कोई नहीं रखता. क्यूँ हर कोई बस मेरी मुस्कान का, मेरी ख़ुशी का साथी बनना चाहता है. कोई मेरे आंसू क्यूँ नहीं पोंछता? मेरा गुस्सा नज़र आता है, मेरे गुस्से के पीछे का दर्द नहीं?

याद है पिछली बार दिल टूटा था तो किस तरह भाग कर आ गई थी मैं आपके पास? कितना सुकून मिला था, कितना चैन. आज भी उस बात को लेकर लोग सवाल करते हैं. कौन था मेरे साथ? कोई नहीं था माँ, बस तुम थी. तुम्हारा दिया हौसला था. प्यार था जो तुम मुझे बचपन से करती आई हो. याद है मुझे आज भी. बहुत दिन परेशान किया था मैंने आपको सवाल कर करके. पूछा करती थी कि तुमने मुझे एक इन्सान क्यूँ नहीं दिया जो मुझे प्यार करता, बिना शर्त. बुआ की बहुत याद आती थी उस वक़्त. वो बहुत प्यार करती थी मुझे. काश मेरे बड़े होने का इंतज़ार कर लेती. मैं भुला देती उसकी संतानहीनता का दर्द. बन जाती वो बेटी, उसकी बेटी. पर वो ऐसा ही दौर था कि लोग बस हार जाते थे, हार मान लेते थे. मैंने हार मानने से इनकार कर दिया भगवान. इसलिए शायद तुम्हारी दुनिया मुझे हराने के लिए इतनी कोशिश कर रही है.

अब कहाँ जाऊँगी? ये इन्सान इतना प्यारा है, सच! अभी भी याद है मुझे किस तरह भीड़ में बिना कहे कस कर मेरा हाथ पकड़ लेता है. किस तरह कभी मेरी उदासी तो कभी अकेलापन भांप लेता है. किसी की भी नज़रों में मेरे लिए गलत बात देखे तो घूर कर उसकी नज़रें झुका देता है. उसके पीछे चल कर बहुत सुकून मिलता है भगवान. वो जिस तरफ ले जाता है हर वो रास्ता सही निकलता है. फिर भी यही इन्सान है जो मुझे छोड़ देने की बात करता है. मुझसे कहता है अकेले जीना सीखो. अपना ख्याल रखना सीखो. अपने आप से प्यार करना तो ज़रूर सीखो.  

हर बार मुझे सही रास्ता दिखाने वाला ये इन्सान आज खुद एक गलत रस्ते पर जा रहा है. बहुत भरोसा है उसे अपने निर्णय पर. देख लेना ईश्वर, उसे पछताने का मौका मत देना. मेरे जैसे लोग तो गिर कर फिर उठ सकते हैं. वो गिर गया तो कौन संभालेगा? उसकी जिंदगी में उसके बारे में सोचने वाला कोई है ही नहीं. स्वार्थ में लिपटे हैं उसके रिश्ते भगवान. फ़र्ज़ का नाम देकर वो भले अपने आप को समझा ले, पर मैं सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ सकती. हे ईश्वर, मुझे थोड़ी और हिम्मत दो. मुझे उससे दूर जाने कि हिम्मत दो. मैं उसे किसी और का होते नहीं देख सकती. कभी कभी मन करता है, किसी भी राह चलते से गले में डलवा लूँ मंगलसूत्र. जो दर्द मुझे होने वाला है, उसका एहसास उसे करा दूँ. पर वो पहले ही इतने दर्द में है कि मेरी हिम्मत नहीं होती.  

हे भगवान् तोड़ दो उसका हर भरम. मुझे इतना वरदान दो कि एक बार उसकी नज़रें झुका सकूँ. एक बार जितने भी इशारे उसने मुझे मेरी शादी को लेके दिए थे सब झुठला दो. मत होने दो उसकी किसी भी भविष्यवाणी को सच. झुठला दो मेरी कुंडली और उसके बताये हुए भविष्य को. मुझे छोड़ देने पर बहुत बार मैंने लोगों की आँखों में अफ़सोस देखा है. पर उसकी आँखों में मैं देखना चाहती हूँ निश्चय. मुझे अपना लेने का निश्चय. उसे ये निश्चय दे दो और नहीं तो मुझे वो सुकून कि मैंने अकेले जीना बहुत अच्छी तरह सीख लिया है. प्लीज भगवान्.

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