Sunday, 3 June 2018

कैसे कहें अलविदा


अध्याय ३३

हे ईश्वर

कल सारी रात अंधियारे में बीती. आंधी तूफ़ान आया था और मोमबत्तियां भी ख़त्म हो चली थीं. मुझे अँधेरे से बहुत डर लगता है भगवान्, आपको तो पता है. फिर भी रात किसी तरह कट ही गई. बहुत कुछ सोचने को जो रहा करता है. लोग कहते हैं अच्छा सोचो, अच्छा होगा. उन्होंने भी तो यही कहा था. एक वक़्त था जब मैंने निश्चय किया था कि मैं अब कभी किसी भी रिश्ते में खुद को झोंकने से पहले अच्छी तरह सोच समझ कर निर्णय लूंगी. सामने वाले से कोई न कोई वादा ले लूंगी. अपने आप को प्राथमिकता दूंगी, अपनी ख़ुशी के बारे में सोचूंगी. अपने आप को दुबारा किसी अनिश्चित और असुरक्षित रिश्ते में कदम नहीं रखने दूंगी. क्या क्या नहीं सोचा था भगवान्! आज मैं फिर से एक ऐसे रिश्ते में हूँ जिसके सर पर मजबूरी की तलवार लटक रही है, उतनी ही असुरक्षित हूँ जितनी पहले थी, बल्कि ज्यादा ही. किसी से उतना ही प्यार करती हूँ बल्कि ज्यादा ही. सांस रोके प्रतीक्षा कर रही हूँ, उस कैदी की तरह जिसे मृत्युदंड सुनाया जा चुका है और वो बचे खुचे दिन गिन रहा है. आप सोचते होंगे रिश्ता है या क़ैद? अगर इतनी नाखुश हूँ तो छोड़ क्यूँ नहीं देती उसे. वो भी अक्सर यही कहते हैं.

जवाब दूँ? अच्छा अगर ये शादी होती तो आप क्या कहते? मैं बताऊँ? बेटा रिश्ते ऐसे जल्दबाजी में नहीं तोड़े जाते. थोड़ी समझदारी से काम लेना पड़ता है. हर रिश्ते में उंच नीच आम बात है. थोड़ा एडजस्ट करना पड़ता है. सोच समझ कर निर्णय लेना. शादी सिर्फ दो लोगों का नहीं दो परिवारों का भी रिश्ता है. यही सब न? और हमारा रिश्ता जिस पर न परिवार की मुहर है न समाज की. उसके टूटने का इंतज़ार कर रहे हैं. मैं भी इंतज़ार कर रही हूँ. भगवान मैं आपके फैसले का इंतज़ार कर रही हूँ. जिस इंसान को आपने सही और गलत की इतनी गहरी समझ दी देखती हूँ वो मेरे साथ सही करता है या नहीं.

हम जब मिले थे, कितनी सारी बातें की थीं. आज वो कहता है कि उसे कुछ याद नहीं है. उसने ये भी कहा कि उसने कभी भी मुझसे कोई वादा किया ही नहीं था. उसका कहना है उसने कभी मुझसे शादी के लिए हाँ भी नहीं की थी. उसने ये भी कहा कि वो मुझसे प्यार नहीं करता. तो क्या भगवान मैंने एक बार फिर गलत इन्सान चुना है, गलत आदमी पर विश्वास किया है? दिन पर दिन उसकी बातें उन सब लोगों की हाँ में हाँ मिलाने लगी हैं जो मेरे अतीत का हिस्सा थे. जब भी कोई फैसला करने को कहती, वो लोग मुझे यही सारे ताने दिया करते थे. उसने मुझे बहुत प्यार और इज्ज़त से रखा. पर वही इन्सान ये भी कहने लगता है तुम मेरे लिए वैसे ही हो जैसे बाकी लोग. उसके कहने और करने में साम्य नहीं है ज़रा भी भगवान. मैं क्या करूँ? अपने लिए आज़ादी मांगी और मैंने एक बार खुद से कोई निर्णय ले लिया तो नाराज़ हो गया. मैं सब कुछ छोड़ तो दूँ पर किसके भरोसे? कितनी स्वार्थी और क्रूर है तुम्हारी दुनिया भगवान. ऐसी दुनिया में वो अकेला क्यूँ रहे?

मैं तो ये सब सोच रही हूँ. उसे क्यूँ ये ख्याल नहीं सताते? उसने तो अपना निर्णय अपने परिवार पर छोड़ दिया और निश्चिन्त हो गया. मुझे भी सुना दिया है उनका फैसला. मेरे पास अब उनकी इच्छा के आगे सर झुकाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं. मैं वो शर्त भी तो नहीं पूरी कर पाई जो उसने रखी थी. अब मुझे कुछ भी कहने का हक ही क्या रहा? पर मन नहीं मानता. वो यही कहता है कि उसे सारी सच्चाई पता थी. फिर भी उसने ये रास्ता चुना जिस पर चलकर मुझे फिर से आग से गुजरना पड़ेगा. उसके लिए मैंने अपनी सारी बुरी आदतें बदल डाली थीं, आज मैं बस इस बात का इंतज़ार कर रही हूँ कि वो मुझे वापस उन्हीं बुरी आदतों के साथ जीने दे. सोच ले कि मैं कभी नहीं सुधर सकती ताकि उसे दुःख न हो. सोच लेगा कि मैं हूँ ही बुरी इन्सान तो जीना आसान हो जाएगा उसके लिए. वैसे भी वो हमेशा यही कहता है कि तुम कभी सुधर नहीं सकती. मुझे तुम पर विश्वास नहीं है. तुम जैसी लड़की कभी सही रस्ते पर नहीं चल सकती. फिर भी मैं चले जा रही हूँ उसी रस्ते पर जो उसने दिखाया है. अँधेरे से इतना डरने वाली मैं अँधेरे में ही चले जा रही हूँ. बिना रास्ता देखे, ठोकर लगने का इंतज़ार करते हुए. हल्की सी उम्मीद के साथ कि शायद ऐसा न हो. शायद मेरी किस्मत किसी तरह बदल जाए. मैं इस अन्धेरे में चलने को तैयार हूँ ईश्वर, जानते हुए कि मुझे ठोकर लग सकती है. मुझे आप पर अब भी पूरा विश्वास है.

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