अध्याय ३९
मेरे ईश्वर
कैसे पता चल जाता है आपको कि मुझे
क्या चाहिए? अचानक ही जब उनकी आवाज़ सुनी, ऐसा लगा जैसे अभी तक सांस भी नहीं ले रही
थी. जब वो नहीं होते तो मैं भी पता नहीं कहाँ खो जाती हूँ. बात करती हूँ, हंसती
बोलती हूँ, काम भी करती हूँ. पर मन में कहीं न कहीं कुछ चुभता रहता है. ऐसे जैसे
पता नहीं कितनी धूप में निकल आई हूँ. या ऐसे जैसे एकदम से अकेली हूँ. कोई है ही
नहीं जिसे मैं जानती हूँ. कोई है ही नहीं जो मुझे जानता है. कुछ अच्छा भी नहीं
लगता और कुछ बुरा भी नहीं लगता. समझ ही नहीं आता कि सामने वाला क्या कह रहा है,
क्यूँ कह रहा है? बस ऐसा लगता है जब तक वो न रहे तब तक मैं भी न रहूँ. नज़र ही न
आऊँ किसी को. किसी से भी बात न करनी पड़े.
बात तो आपके बारे में करने चली थी.
अभी टीवी देखते देखते कुछ नज़र आ गया और मन भटक गया. ‘बहन जी टाइप’ – ये वो जुमला
है जो सड़क चलती किसी भी लड़की को मैरिज मटेरियल बना देता है. वो बहन जी टाइप ही तो
होती हैं जो घुटने के नीचे तक दुपट्टा लटका कर सर झुका कर चलती हैं. धीरे धीरे
मीठी आवाज़ में बोलती हैं. चुप चाप और सहमी सहमी रहती हैं. इन्हें सब अच्छी लड़की
कहते हैं. प्यार व्यार का तो नाम तक नहीं जानती हैं. ऐसी लड़कियां किसी भी लड़के के
लिए एक चुनौती सी तो होती हैं. उन्हें बहला फुसला कर शादी के सपने दिखा कर उनका
फायदा उठाना कितना आसान होता है. इन्हें मन कर दो तो रो पीट कर सब्र कर लेती हैं.
बड़ी प्यारी होती हैं, सर झुका कर किसी और से चुप चाप शादी भी कर लेती हैं. ‘बहन जी’
टाइप लड़कियां...
क्यूँ करते हैं लड़के ऐसा? जब कोई
सीधे रास्ते चलता रहता है तो उसे क्यूँ गलत रास्ते जाने पर मजबूर करते हैं. फिर
साथ भी नहीं देते. अगर प्यार करते हो तो शादी कर लो. इतना सा ही तो चाहती हैं
लड़कियां. शादी नहीं निभा सकते तो क्यूँ प्यार के रस्ते पर कदम बढ़ा देते हैं. इनके
तो परिवार इन्हें ७ खून भी माफ़ कर देते हैं, हमारा एक रिश्ता माफ़ करना इनकी जान पर
आता है. बोलो न भगवान्, क्यूँ है आपकी दुनिया ऐसी?
वो ऐसे नहीं हैं. ये बात वो कई बार
कह चुके. पर गलती मेरी भी नहीं है. क्या है भगवान्? क्यूँ है?
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