हे ईश्वर
‘मैं जा रहा हूँ, मेरा इंतज़ार मत
करना। अब मैं कभी वापस नहीं आऊँगा। मैं किसी और के साथ हूँ अब’ क्या नया बोला तुमने जो मैंने पहले नहीं सुना। कुछ भी नहीं। पर इस बार कुछ
नया ज़रूर होगा। जैसा कल हुआ। कल पहली बार माँ ने मुझे अपने मंदिर में बुलाया। ऐसा लगा
जैसे वो मुझे आश्वस्त करना चाहती हूँ कि मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम फिक्र मत करना। आगे आने वाली मुश्किलों को झेलने की ताकत देने के लिए
और मेरी आँखों में झिलमिलाते आँसू पोंछने के लिए।
मुझे क्या पता था जिसकी नाराजगी से घबरा कर माफी मांगने मैं आपके पास
आई थी वो मुझे ऐसी सज़ा देगा। जिसकी सफलता और खुशी के लिए दुआ करने मैं आपके पास आई
थी वो मुझे मेरे जीवन की सबसे बड़ी हार से नवाज़ देगा। पर माँ, इस बार मैं टूटने बिखरने वाली नहीं। उनकी बात वहाँ खत्म भी नहीं हुई। इसके
बाद भी कहना बाकी था कि अब हम कभी बात नहीं करेंगे।
मत कीजिएगा। आपकी जिसमें खुशी हो वही कीजिएगा। और मैं क्या करूंगी? मैं सिर्फ आपका इंतज़ार करूंगी और आपसे उतना ही प्यार करूंगी जितना आज करती
हूँ। पर इसके साथ आज से मैं अपने आप को भी उतना ही प्यार करूंगी जितना आपने मुझसे किया।
बहुत प्यार किया है आपने मुझसे। अब आपके हिस्से का प्यार भी मुझे खुद को देना है। अपना
ख्याल रखना है।
मेरे ईश्वर आप इनको हमेशा खुश रखिएगा। मुझे नहीं पता हमने साथ में जो
भी शुरू किया था उस सपने का क्या होगा? पर मैं इतना जानती हूँ
कि जो भी होगा अच्छा ही होगा। इनकी खुशी, इनकी सफलता और इनकी
आगे की जिंदगी के साथ मैं अपना वो सपना भी अब आपको ही सौंप रही। ख्याल रखिएगा, प्लीज।