अध्याय ४१
हे ईश्वर
ये क्या हो गया है बुद्धु बक्से को?
जो टेलीविज़न एक समय पर सामाजिक क्रांति का वाहक हुआ करता था वो आज बेसिरपैर की
भावनाओं और कहानियों का एक भौंडा नाच बनके रह गया है. कभी नागिन, कभी भूत प्रेत और
टीवी का सबसे लाडला दुलारा थीम – साजिशें. कैसी कैसी साजिशें? कभी कभी हफ़्तों तक
मैं टीवी की शक्ल ही नहीं देखती और अच्छा ही करती हूँ. कुछ खास तो नहीं.. मैं कभी
नहीं समझ पाई कि मैं औरों से इतनी अलग क्यूँ हूँ? मेरा टाइप क्या है और कहाँ पाए
जाते हैं मेरे जैसे प्राणी? मैं आज तक समझ नहीं पाई कि मैं अच्छी हूँ या बुरी हूँ?
कभी अपनी अच्छी अच्छी बातों से लोगों को इतना प्रेरित कर देती हूँ कि आसमान छू लें
और कभी अपनी कड़वाहट उड़ेल देती हूँ. क्या हो गया है मुझे? मेरे जैसी कहानी भी होती
है क्या भगवान्? आज की दुनिया में रहकर भी इतनी सच्चाई, ऐसी ईमानदारी किसलिए? बताओ
न भगवान्?
और आपके ये धारावाहिक! एक छोटी सी
बच्ची दूसरी छोटी बच्ची को आगे बढ़ते नहीं देख सकती. इतना ही नहीं वो उसकी सफलता को
अपना बताने से भी नहीं चूकती. एक माँ जो अपनी बेटी को सिखाती है कि झूठ बोलना अपने
सपनों को पूरा करने का सही तरीका है. या फिर ये कि कोई किसी से बदला लेने के लिए
उसकी तरफ से गलत सन्देश लोगों को भेज दे. अपनी गलती न मानने के लिए लोग किसी भी हद
तक चले जाते हैं और इसे गलत भी नहीं मानते. मैं समझ नहीं पाती कि हमें दुःख में
इतना सुकून कैसे मिलता है? एक सशक्त कहानी लिखने के लिए बेहूदा प्रदर्शन की कोई
ज़रूरत नहीं. क्या हो गया है तुम्हारी दुनिया को? ये कैसा मनोरंजन है ईश्वर?
वैसे सबसे बड़ा मनोरंजन तो वैसे
हमारी जिंदगियां हैं. आपकी ये पहेलियाँ मुझे समझ नहीं आतीं. मैं आप पर पूरा
विश्वास करती हूँ पर आपके निर्णय समझ नहीं पा रही. क्या करना चाहते हैं भगवान्?
कहाँ लेके जा रहे हैं मुझे? बताइए तो? आप जानते तो हैं अपने बच्चों को? कहाँ जा
रहे हैं पता होने पर भी हम सौ बार सवाल करते हैं. तो मैं तो ये भी नहीं जानती कि
आप मुझे ले कहाँ जा रहे हैं? और कितनी देर लगेगी? कैसे कहूँ और क्या कहूँ? बताइए? अच्छा
ठीक है, एक दुआ ही कर लेती हूँ. आप मुझे इतनी शक्ति दीजिये कि हर बात का जवाब एक
मीठी सी मुस्कान हो. कोई कुछ भी करे, कितनी भी कोशिश करे पर मेरी इस मुस्कान को
झुठला न सके.