Thursday, 31 May 2018

प्यार नहीं है


अध्याय ३० 
हे ईश्वर

पता नहीं प्यार क्या होता है? आज २१००० शब्द लिख डाले हैं फिर भी लगता है कुछ कह नहीं पाई हूँ ठीक से. समझा नहीं पा रही कि कहना क्या चाहती हूँ! मेरी दुनिया कितनी अलग है मेरे आस पास के लोगों से. उस दिन बहुत दिनों के बाद एक दोस्त से मुलाक़ात हुई. वो शादी शुदा है. कितनी अलग है हमारी दुनिया एक दूसरे से. अभी भी गूँज रही है उसकी हिदायतें और सलाहें मेरे कानों में. खुश रहा करो, व्यस्त रहा करो, घर साफ़ रखा करो. कुछ व्रत त्यौहार भी बताए. मन ही मन मैं सोचती रही क्या करूँ? खुश रहने दूं उसे उसकी सोच के दायरे में या सच्चाई का आईना दिखा दूँ. ये सारे लोग बेहद मासूम हैं भगवान. दुनिया और उसकी तल्ख़ सच्चाई उनको छू नहीं पाई है अब तक. सच कहूँ तो बेहद बहादुर है वो और मैं कायर. उसमें विश्वास करने का और विश्वास के दम पर आगे बढ़ने का जो गुण है, वो उसकी मदद करता है. मैं अगर शादी का सोचूं तो न जाने क्या क्या सोचना पड़ जाता है. सबसे अहम् बात जो उसने कही थी वो थी भूल जाओ अपना अतीत. मैं तो भूलने को तैयार हूँ, पर आने वाले ने पूछा तो क्या जवाब दूँ? कैसे झूठ बोलूं? अगर न बोलूं तो क्या वो मुझे मेरे सच के साथ स्वीकार करेगा? यही सब सोच कर मन नहीं मानता.

आपने कहा था कि आप मेरी तरह बग़ावत नहीं कर सकते. मुझे बग़ावत की ज़रूरत ही नहीं है. अजीब है न! मैं जिसे चाहूँ उसे अपना जीवनसाथी बना सकती हूँ पर ये फैसला मेरे नहीं सामने वाले के हाथों में रहता है हमेशा. और हमेशा वो मुझे छोड़ कर आगे बढ़ जाता है.  रिश्ते की शुरुआत तो बड़ी खूबसूरत होती है पर अंत भयानक. हर बार मुझे अन्दर से छील देती है तुम्हारी दुनिया ईश्वर. मैं मर जाती हूँ जबकि मैं जीना चाहती हूँ. मैंने बहुत कुछ सुना है अपने बारे में इतने सालों में. हर बार मैंने सोचा था अब कभी किसी पर भरोसा नहीं करुँगी. फिर भी कोई जब आपको चोट लगी हो और कोई सहारा देकर खड़ा करने लगे तो आप कैसे उसे ठुकरा सकते हैं? पर भगवान हर बार मुझे सहारा देकर खड़ा करने वाला ही मुझे वो धक्का देता है कि मैं फिर से बिखर जाती हूँ.पहले से ज्यादा ज़ख्म लग जाते हैं. पता है कुछ ज्यादा समझदार लोग कहेंगे खुद का सहारा खुद बनो. कहने दो. ‘पीर पराई’ समझने वाले नहीं हैं तुम्हारी दुनिया में.

सच कहूँ तो मैं भी अकेली रहना चाहती हूँ. पर जैसे ही हमारे बीच की दूरी बढ़ाती हूँ वो और भी मेरे करीब आ जाते हैं. शायद अकेले रहने का डर उन्हें सताने लगता है. या उनकी ज़रूरतें उनका रास्ता रोक लेती हैं. नाराज़ हो जाते हैं वो जब भी मैं ये सवाल किया करती हूँ. पर मेरा मन पूछे बिना नहीं मानता. क्या हक है किसी भी इन्सान को मुझसे कोई उम्मीद लगाने का? क्यूँ मेरी इतनी फिक्र है जब मुझे छोड़ कर जाने का पक्का इरादा कर लिया है. हर १ महीने में ये दौरा मुझे पड़ता है जब मैं ‘प्रैक्टिकल’ होने की तरफ कदम बढ़ाती हूँ. पर सच. अपना आप ही खोखला लगने लगता है मुझे तब. ऐसा लगने लगता है कि मैं अपने आप के साथ गलत कर रही हूँ. किसी को निस्वार्थ प्यार करना मेरा हक है. भले ही मुझे बदले में वो प्यार न मिले.

बहुत अजीब होते हैं मेरे जैसे लोग भगवान. अपना सब कुछ प्यार के नाम पर देकर बदले में कुछ नहीं चाहते. प्यार करना बड़ा मुश्किल है तुम्हारी दुनिया में. फिर भी मेरे जैसे लोग न जाने कहाँ से इतनी हिम्मत ले आते हैं. धोखा खाते हैं फिर भी विश्वास करते हैं. इतना कुछ सहते हैं फिर भी अच्छा ही सोचते हैं. क्यूँ? क्यूँ नहीं बदलती मैं? क्या कीमत चुकाऊं अपने अटूट विश्वास की? बताओ न भगवान्? अच्छा ठीक है. चाहो तो ये रिश्ता भी ले जाओ. इसका भी वही हाल करो जो तुमने बाकियों का किया. अलग कर दो मुझे फिर से मेरे किसी चाहने वाले से. दो मुझे फिर से वही सांसें रोक देने वाला दर्द. करो न ये सब और बाकी सब कुछ. पर ईश्वर मैं आप पर और प्यार पर विश्वास करना नहीं छोडूंगी. हमेशा यही सोचूंगी कि तुमने मेरे लिए मेरे इतने बरस की तपस्या का पुरस्कार बचा कर रखा है. सही समय पर दे दोगे. पर एक बात कहूँ ‘जब भी अपनी शादी को लेकर उनसे मजाक करती हूँ, उनकी आवाज़ की राहत मेरा मन खट्टा कर देती है. ऐसा लगता है जैस साँस रोक कर वो प्रतीक्षा कर रहे हैं कि कोई मुझे वो सब दे दे जो कभी मैंने उनसे मांगा था. ईश्वर अगर तुम हो तो उनकी ये इच्छा उनसे ही पूरी करवाना. मेरे प्यार की जीत में न जाने कितने मासूम एहसासों की जीत है, सच्चाई की जीत है, धैर्य और विश्वास की जीत है. जीतने दो न इस बार मुझे. प्लीज भगवान्.

Monday, 28 May 2018

सात फेरों के सातों वचन...



अध्याय २९

हे ईश्वर

मैंने जब कभी आपकी दुनिया के बनाए रीत रिवाजों से समझौता करने की सोची है, हर बार आप खुद मेरे सामने एक आईना ला कर रख देते हो. जिसे हम इतने अरमानों से घर लाते हैं, उसे ही कितनी बेदर्दी से कह देते हैं चली जाओ. क्यूँ? अच्छा हुआ मेरी जिंदगी में ये सुकून तो है कि मुझे मेरे घर से कोई जाने को नहीं कह पायेगा कभी. मैंने सोचा था कि इस रिश्ते को यहीं ख़त्म करके मैं अब एक नई शुरुआत करुँगी. न जाने कितनी खूबसूरत यादें मेरा हाथ थामने लगीं, तब भी जी कड़ा कर लिया था. पर देखो न! उसकी ज़रूरत से आज भी मुंह नहीं फेर पाती हूँ. उसकी बेबसी मेरी आँखों में उतर आती है. फिर क्यूँ उसे मेरी उदासी का एहसास नहीं घेरता? क्यूँ जिस तरह मैं परेशान हो जाती हूँ उसकी परेशानी में, वो कभी मेरी उलझनें दूर करने कि कोशिश नहीं करता. भगवान मैंने जब भी उससे मदद की उम्मीद की है, उसकी साफ़ न ने मेरा दिल दुखा दिया. मेरी न उसे सिर्फ किसी और के पास जाने पर मजबूर कर देती है. कभी कभी लगता है कि वो बेहद स्वार्थी है. पर सच तो मैं भी नहीं जानती. उसकी मदद करके, उसका साथ देकर जो सुकून मुझे मिलता है, वो दुनिया की किसी चीज़ में नहीं. ऐसा लगता है जैसे हर कुछ की तरह वो भी मेरी एक ज़िम्मेदारी है. ये भी लगता है कि एक बार जब वो अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा, फिर चाहे तो छोड़ दूंगी दुनिया की भीड़ में उसे. पर अभी उसे किसी की ज़रूरत है, मेरी ज़रूरत है. 

जिसने दुनिया की रवायतों के आगे सर झुका दिया, वो भी खुश नहीं है. और जिसने अपने दिल की सुनी वो भी दुखी ही है. और मैं? मैं एक ऐसे इन्सान के साथ हूँ जिसकी मजबूरी, जिसकी जिम्मेदारियां उसके लिए मुझसे और मेरे टूटते हुए भरोसे से ज़्यादा ज़रूरी हैं. मैं जब सोचती हूँ मैं मज़बूत बनकर अकेले जीना सीखूंगी, उसी वक़्त वो आगे आ कर मेरा रास्ता रोक लेता है. जो जिंदगी भर मेरा साथ नहीं दे सकता उसे बार बार मेरा साथ चाहने का हक किसने दिया? मैं भी चाहती हूँ जिंदगी भर का साथ, पर मांगूं किससे? कल मेरी आँखों ने जो भयानक सच देखा, उसके बाद मेरा तुम्हारे रीत रिवाजों से विश्वास ही उठ गया. तुमने सात वचन बनाये थे न, भगवान. तुम्हारी दुनिया के लोग तुम्हारे एक भी वचन की इज्ज़त नहीं करते. एक लड़की के लिए रिश्ते में बराबरी हमेशा एक सपना ही बन कर रह जाती है. उसकी हर एक शिकायत को ये कह कर झुठला दिया जाता है कि ऐसा तो होता ही रहता है, आम बात है. जब तक हम किसी भी रिश्ते में छोटी से छोटी बात को नज़रंदाज़ करने लगें तो एक दिन बड़ी से बड़ी बात भी हम पर असर करना बंद कर देती है. कैसे समझाऊँ और किसे समझाऊँ?

खैर मेरी सुनता भी कौन है? इसलिए तो तुम्हारी दुनिया छोड़ छाड़ कर मैं तुमसे बातें किया करती हूँ. पर तुमसे भी मुझे आज तक कोई जवाब नहीं मिला. मैंने आज तक कभी पूछा नहीं कि आपने ऐसा क्यूँ किया? पर आज मैं पूछना चाहती हूँ ‘क्यूँ लाते हो मेरी जिंदगी में ऐसे लोग. वो कहते हैं मैंने ऐसा ही चाहा था. पर कौन चाहता है ऐसा कि जिंदगी में हमेशा लोग आते जाते रहें.हर कोई वफादारी चाहता है, किसी का साथ चाहता है, प्यार चाहता है. धोखा, फरेब, अपनी ज़रूरतों और मतलब के लिए बनाये हुए रिश्ते, स्वार्थ और ढेर सारे इलज़ाम.... क्या मैंने यही सब कुछ चाहा था?
हर कोई ये कहता है कि मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ? पर मैं ऐसा नहीं कहूंगी. आपने कुछ सोच कर ही किया होगा मेरे साथ ऐसा. पर भगवान क्या मेरा ये सीखना समझना कभी ख़त्म होगा? कितना लम्बा है ये सफ़र भगवान? कब ख़त्म होगा? तुम मुझे दूर रखो अपनी इस दुनिया से, प्लीज भगवान.   

Saturday, 26 May 2018

अकारथ है...


अध्याय २८ 

हे भगवान

अपनी अस्तित्वहीनता का एहसास इतनी शिद्दत से मुझे कभी नहीं हुआ. आज ऐसा लग रहा है कि सब किया धरा एक बार फिर अकारथ हो गया. शायद शुरुआत से ही था. मैं ही विश्वास नहीं कर पा रही थी इस सच का. एक बार फिर किसी ने बीच रस्ते में मुझे छोड़ दिया. सब कुछ जानते हुए भी मुझे एक बार फिर उसी तकलीफ से गुजरने पर मजबूर कर दिया. जिसने कभी मुझसे जिंदगी भर साथ निभाने का वादा किया था मुझे नहीं पता अगले साल मैं उससे बात भी कर सकूंगी या नहीं. जिस रिश्ते को आप दोस्ती के दायरे में बांध कर रखना चाहते हैं, आपको कभी भी उस रिश्ते को अपनी हदें पार नहीं करने देना चाहिए. मैं क्यूँ हर बार एक ही गलती करती हूँ? पर सच कहूँ भगवान् गलती मेरी नहीं है. लोग अच्छी तरह जानते हैं कि गलती मेरी नहीं है. मैंने हमेशा से एक घर का सपना देखा है, एक साथी चाहा है. कुछ दिन के लिए नहीं, जिंदगी भर के लिए. जो इन्सान मुझे वो साथ नहीं दे सकता उसे मेरे करीब आने का हक ही नहीं था. मेरी स्थिति- परिस्थिति को बहाना बना कर लोग मेरे नज़दीक आते हैं. फिर एक दिन जब उन्हें लगता है कि मेरे सवालों का जवाब देना अब उनके लिए मुमकिन नहीं, वो मुझे परिवार का, मजबूरी का और सबसे बढ़कर मेरी कमियों का वास्ता देकर मुझसे दूर चले जाते हैं. अपनी कमजोरी और कायरता को नहीं मेरे तेज़ स्वभाव, निरंकुश उग्र जुबान और मेरे अतीत की गलतियों को ज़िम्मेदार ठहराते हैं. गलत मैं नहीं हूँ भगवान्. गलत वो सारे लोग हैं जिन्होंने मेरा विश्वास तोड़ दिया. जिन्होंने अपनी एक गलत छवि मेरे सामने रखी. जिन्होंने मुझे ऐसा आभास दिया कि वो दुनिया और उसकी रवायतों से बगावत कर सकते हैं.

वही लोग आज मुझसे कहते हैं रहना तो हमें इसी समाज में है. मेरे परिवार पर तुम्हारे कारण उंगली उठेगी तो सहा नहीं जाएगा. वही लोग हैं न भगवान् जो मेरे दुःख में मुझसे ज्यादा दुखी थे. क्यूँ लगा उनको कि जिंदगी से इतना सब कुछ चाहने वाली मैं पल पल बदलने वाले रिश्ते में राहत महसूस करूंगी. आपने मुझे बहुत बहुत मज़बूत बनाया है. पर इसका मतलब ये नहीं कि मैं हर बार अपनी पूरी ताक़त टूटे हुए रिश्ते से निकलने के लिए इस्तेमाल करूँ. आज से पहले मैंने खुद से बहुत नफरत की है. पर मुझे प्यार की ज़रूरत है. मुझे अपनी गलतियों के लिए अब खुद को माफ़ कर देना चाहिए और उन हादसों के लिए भी जिसमें मेरी कोई गलती नहीं थी.

मेरे साथ एक बार एक हादसा हुआ और मैंने हादसों को ही अपनी नियति मान लिया. घर घर खेलने का मेरा वो शौक अब पूरा हो गया है. मैंने अब स्वीकार कर लिया है कि तुम्हारी दुनिया का कोई भी So called मर्द मेरे लिए वो घर नहीं बना सकता. मुझे वो घर खुद बनाना होगा. मुझे अकेले ही उस घर को और अपने जीवन को संवारना होगा. मुझे ही अपनी सोच बदलनी होगी. मैं कोई खिलौना नहीं हूँ भगवान् जिससे थोड़े दिन खेलकर उसे छोड़ दिया जाए. वैसे भी मेरी जिंदगी में आने वाले किसी भी इन्सान से कभी उसे सँवारने का नहीं सोचा. जो भी मिला है बिखेर कर ही गया है. इसलिए जो रहत मैं बाहर तलाशती रही हूँ, वो मुझे खुद में खोजनी होगी. क्या हुआ जो मुझे घर आने में देर हो जाती है, मैं अपनी रक्षा के लिए हथियार लेकर चलूंगी. क्या हुआ जो लोग मेरे बारे में अनर्गल प्रलाप करते हैं, मेरा साफ़ आचरण कभी न कभी उनको आँखें झुकाने पर मजबूर कर देगा. क्या हुआ जो लोग मुझे मेरे अतीत के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं, जो उसका हिस्सा थे सच उनको नज़र झुका कर चलने पर मजबूर कर देगा. एक बार फिर मेरे साथ धोखा हुआ तो क्या हुआ. मैं वादा करती हूँ भगवान् अब कभी तुम्हारी दुनिया के किसी इन्सान को खुद से धोखा करने नहीं दूँगी. मैं भी अब तुम्हारी दुनिया को वही दूंगी जो उसने मुझे दिया. सच ही तो कहा था उसने ‘ऐसा रिश्ता होने से अच्छा रिश्ता न हो.’ मुझे इस रिश्ते से भी अपमान के अलावा मिला ही क्या है? उसने भी मेरा इस्तेमाल ही किया.

थोडा सा दुःख हो रहा है भगवान्. ये इन्सान उन सब लोगों से कितना अलग था. ये भी मर्द जात में शामिल हो गया. आज के बाद मुझ पर उठने वाली उँगलियों में एक ऊँगली उसकी भी होगी. लेकिन अब हर एक बात की तरह उसका मुझ पर उंगली उठाना भी अकारथ है! है न?

एक बात और. वो सारे सवाल जो आप मुझसे तब पूछने वाले थे जब मेरी शादी होती वो पूछने का मौका आपको अब कभी नहीं मिलेगा. हाथ छोड़कर जाने वाले को कभी ये हक नहीं होता कि आगे बढ़ जाने वाले से कोई भी सवाल कर सके.

Friday, 25 May 2018

खोई हुई अंगूठी

अध्याय २७

मेरे ईश्वर

शकुन्तला नहीं हूँ मैं! फिर भी बहुत कुछ खो गया है मेरा जिसे मैं तलाश रही हूँ. कभी वो उपहार जो मैंने तुम्हें दिए थे. कभी वो सारी खुशियाँ जो मैंने तुम्हारे क़दमों में रख़ दी थीं इस उम्मीद में कि तुम भी मेरी छोटी छोटी खुशियों का उतना ही ख्याल रखोगे. या फिर कभी वो सारी बातें जिनमें मेरी सोच और मेरे दिल का हर दर्द छुपा था. बाँटने से पहले कहाँ सोचा था कि उन्हीं बातों के लिए किसी दिन तुम मुझे बेशर्म का ख़िताब दे दोगे. या फिर तुम्हारी हर फिक्र जिसे मैंने अपना समझ कर हल करने की कोशिश की. या मेरी जिंदगी और मेरा प्यार जो मैंने तुम्हें सौंप दिया बिना ये सोचे कि इस जिंदगी और इस प्यार की तुमने अगर बेकद्री की तो मुझे कितना दुःख होगा. तुम मेरी जिंदगी में अलग अलग नाम लेकर आये. हर बार अपने से पहले आने वाले के लिए तुमने बहुत कुछ कहा और मुझे लगा कि तुम्हें मेरे दर्द का एहसास है. कितना सुकून मिला था मुझे सुन कर कि गलती मेरी नहीं है. मैंने तो सिर्फ एक इन्सान खोया जो मुझसे प्यार ही नहीं करता था पर उसने उससे कहीं ज्यादा खो दिया मेरा साथ छोड़कर. ये भी सुना इन कानों ने कि मैं कभी तुम्हें चोट नहीं पहुंचाउंगा, हमेशा तुम्हारा ख्याल रखूँगा. विश्वास करो मैं तुम्हें बेहद प्यार करूँगा हमेशा. उस हमेशा की उम्र बहुत छोटी थी. बात अगर इतनी ही होती तो शायद मैं सह भी लेती. पर मैं भूल नहीं पा रही वो सारे इलज़ाम जो तुमने मुझ पर लगाये. रिश्ता तोड़ने की अपनी कोशिश में तुम भूल गये थे कि तुमने मुझे किस भयानक दलदल में धकेल दिया.

निर्लज्ज, बदचलन, स्वार्थी, धूर्त, कुटिल, कामी....न जाने कितने विशेषण हैं जो तुमने मेरे मत्थे मढ़ दिए. मैं तुम्हारे इल्जामों के बोझ तले दबकर सांस लेना भी भूल गई. आज भी कभी कभी सोने नहीं देती हैं वो सारी भयानक यादें मुझे. मैंने तो जी जान से सिर्फ तुमसे प्यार किया था. पर तुमने मेरे प्यार को एक लिज़लिज़ा कीड़ा बना दिया और मुझे भी. मुझे ये तो एहसास है कि मैं बेहद मज़बूत हूँ, न होती तो बिखर जाती. पर फिर भी कभी कभी लगता है क्या मिला मुझे इतना संघर्ष करके? क्यूँ तुम्हारी हारी हुई दुनिया की तरह मैंने भी कभी कोई समझौता नहीं कर लिया? आज भी नहीं कर पा रही.

हे ईश्वर तुम्हारी दुनिया के लोग ऐसे लोगों को समझ ही नहीं पाते जिनका एक अतीत होता है जिसे वो छुपाना नहीं चाहते. हाँ कभी मेरी जिंदगी में कोई था. पर भगवान आपकी दुनिया के वो लोग क्या मुझसे बेहतर हैं जो झूठे रिश्तों और नकली धागों के पीछे अपने रिश्ते को छुपा लेते हैं. दो नावों की सवारी करते हैं और किसी को पता भी नहीं चलने देते. क्या मैं भी उनमें शामिल हो जाऊं? बताओ न? मेरे आस पास के लोग बहुत कुछ कहते हैं पर मुझे नहीं लगता वो कभी मुझे समझ पाते होंगे. उनकी जिंदगी मेरे जैसी थोड़े थी.

लोग कहते हैं अच्छा सोचो, अतीत को भूल जाओ और आगे बढ़ो. पर जब भी मैं किसी नए रिश्ते में कदम रखती हूँ तब लगता है कि उसे जानने का हक है. कल को वही मुझसे कहेगा मैंने अपना अतीत छुपाया और उसे पता होता तो... तब क्या करुँगी मैं?

मैं क्या करूँ? लोग मेरा विश्वास तोड़ देते हैं जब भी मैं उन पर भरोसा करती हूँ. जो मुझसे प्यार करते हैं वो मेरे साथ रह नहीं पाते. मेरी कड़वाहट मुझे उनसे दूर कर देती है. मैं ऐसे ही रहना चाहती हूँ हमेशा. प्यार करने पर लोग उसका बदला नफरत से देते हैं. विश्वास करने पर विश्वास तोड़ देते हैं. तुम्हारी दुनिया में प्यार की, विश्वास की कोई कीमत नहीं है भगवान.

मैं अब वो इन्सान हूँ ही नहीं जो किसी को प्यार कर सके. तुम्हारी दुनिया ने मुझे बदल दिया. अब तो खुश होना चाहिए उसे, मेरा हर अज़ीज़ रिश्ता तोड़ कर. पर आज भी खुश नहीं है. आज भी कोशिश कर रही है कि कुछ और टूटे, कुछ और बिखरे. और बचा क्या है बर्बाद होने के लिए? फिर भी रूकती नहीं. मैं भी नहीं रुकूँगी, मैं भी समझौता नहीं करुंगी. मेरी जिंदगी में रहने का हक उसी को है जो मेरे अतीत को समझ सके, उसे स्वीकार कर सके. मेरे गुस्से के पीछे की तकलीफ और मेरी हंसी के पीछे का दर्द समझ सके. जो मुझे प्यार कर सके मेरी बुरी से बुरी आदतों के साथ. ऐसा एक इन्सान है तो भगवान पर पता नहीं कब तुम्हारी दुनिया मुझे उससे दूर करने में कामयाब हो जाये? बस करो भगवान्. इस रिश्ते को बना कर रखो, मेरे विश्वास को बना कर रखो.
  

Saturday, 19 May 2018

तुम जैसी लड़की..

अध्याय  २६


हे भगवान

तुम जैसी लड़की...!! सुन सुन के कान पक गये हैं मेरे. हर बार कठघरे में खड़े खड़े अब तो पांव दुखने लगे हैं, बैठने का कुछ तो ठिकाना करो ईश्वर. लगता है सर पर दो सींग उग आए हैं या अचानक मैंने गले में कोई बोर्ड टांग लिया है. क्या होती है मुझ जैसी लड़की और क्या होता है मुझ जैसी लड़कियों के साथ आपकी दुनिया में. मुझे गलत मत समझना कोई. मैं ‘पीड़ित’ वाला कार्ड खेलने में विश्वास नहीं रखती. मैं तो केवल सच सबके सामने लाना चाहती हूँ और सच कब चाशनी में डूबा हुआ मिलता है?

कल मेरी एक पुरानी तस्वीर देखकर आपने मेरे अतीत के सारे पन्ने मेरे सामने खोल कर रख़ दिए. आपके शब्दों में:

‘तुम्हारी तस्वीर बहुत कुछ कहती है. तुम्हारी तस्वीर को देख कर ऐसा लगता है शोषण को एक चेहरा मिल गया. तुमने यहाँ तक आने के लिए बहुत मेहनत की है. तुम्हारी मेहनत को सलाम! इस तस्वीर में एक ऐसी लड़की है जो बहुत सहमी सहमी सी रहती है. बहुत हिचकिचाती है कुछ बोलने से पहले. एक ऐसी लड़की जिसकी आँखों में बहुत बड़े सपने हैं पर डरती है कहीं पूरे न हुए तो! एक ऐसी लड़की जो बहुत कुछ अन्दर समेटे हुए है. इच्छाएं तो बहुत हैं लेकिन... एक ऐसी लड़की जिसे उड़ने का शौक है पर डरती है कहीं गिर न जाए. हमेशा किसी का डर दिमाग में है. कहीं कुछ न हुआ तो..? बहुत कुछ है...क्या क्या बताऊँ? बहुत सी दबी हुई इच्छाएं. एक ऐसी लड़की जो अपने दोस्तों की तरह रहना चाहती है पर रह नहीं सकती. मेरी अब हिम्मत नहीं हो रही आगे बोलने की. मैं उस स्थिति की कल्पना भी नहीं कर पा रहा. मैं रो दूंगा.

मैंने आपको बहलाने की कोशिश की थी ये कहकर कि वो सब अब अतीत है, बीत चुका है. फिर भी आपने कहा ‘मैं किसी को ऐसे नहीं देख सकता इस तरह से. जानता हूँ अतीत है पर भयानक है.’ मैंने फिर से कोशिश की ‘मैं वो सब पीछे छोड़ चुकी हूँ. देखो न, आज मैं हम सब में सबसे बेहतर स्थिति में हूँ.’ फिर भी आप थे कि उस लम्हे में बहते ही चले गये. आपने तभी तो कहा ‘पता नहीं तुमने वो सब कैसे सहा होगा?’ मैं समझ नहीं पा रही थी कि कैसे आपको उस सब से बाहर लाऊं. खुद को भी बचाना था उस अतीत से जिसमें बहुत कुछ था जिससे आज मैं इतनी दूर निकल आई हूँ.

आप भी बस कहते चले गए ‘तुमने बहुत कुछ बर्दाश्त किया है. पता नहीं तुमने कैसे झेला वो सब. तुमने बहुत कुछ सहा है. इस तस्वीर में एक ऐसी लड़की जो अपनी मर्जी से साँस भी नहीं ले सकती. कहीं आ जा नहीं सकती.’ जब आप बोल रहे थे ऐसा लग रहा था कोई मेरे बरसों के ज़ख्मों पर मरहम रख रहा है. और उस एक पल के लिए मैं भी उस लम्हे को महसूस करने लगी थी. लगने लगा था कि मैं वही बन गई हूँ दुबारा. एक बार फिर से वो लड़की जिसके बारे में आप बात तक नहीं कर पा रहे थे. पर खुद को संभाल कर मैंने आपको अपनी एक खुशनुमा तस्वीर दिखा कर संभाल लिया. पर मुझे सँभालने वाला कौन है भगवान्?  

सचमुच बहुत दूर आ गयी हूँ मैं. मुश्किल से मुश्किल वक़्त में मैंने अपने आप पर भरोसा बना कर रखा. कोशिश करती रही उस सब से निकलने कि. वो सब था क्या? वो और कुछ नहीं एक लम्बा इंतज़ार था. इंतज़ार कि किसी दिन मैं कुछ सार्थक करुँगी. कुछ ऐसा जिससे मैं न सिर्फ अपनी बल्कि अपने आस पास के कमज़ोर लोगों की मदद कर सकूँ. एक वक़्त जब अपने सपनों और ख्वाहिशों को मैं खुद अपने दम पर पूरा कर सकूँ. मैंने सचमुच बहुत कुछ चाहा पर वो सब पाने के लिए एक बहुत लम्बा इंतज़ार भी किया. जब वो सब मिल गया है तो ऐसा नहीं है कि कोई नई ख्वाहिशें जन्म ले रही हैं. बस एक राहत सी मिल जाती है कि जो तब हुआ था वो अब कभी नहीं होगा. हमेशा मैं अपने लिए और अपने सपनों के लिए तैयार रहूंगी.

Wednesday, 16 May 2018

भरोसा करते हैं...






अध्याय २५ 

हे ईश्वर

वाराणसी में मारे गए लोगों की तसवीरें सोशल मीडिया पर नंगा नाच कर रही हैं. क्यूँ है दुनिया तुम्हारी ऐसी? सड़ती हुई लाशों में उसको स्कूप नज़र आता है, बाईट दिखाई देती है. लोग मदद का हाथ बढ़ाने के बजाए हादसे की ज्यादा से ज्यादा भयानक तसवीरें और विवरण जगह जगह भेजने में लगे हैं. क्यूँ लोग ये नहीं सोचते कि ऐसे मंच का सदुपयोग वो प्यार बाँटने के लिए और सकारात्मक सन्देश देने के लिए भी कर सकते हैं. ये भी नहीं सोचते कि कच्ची उम्र के नौजवान और गर्भवती औरतों जैसे संवेदनशील लोग जब इस तरह की हौलनाक तसवीरें देखेंगे तो उनके ऊपर कितना बुरा असर पड़ेगा. पर ये तो फैशन है आज कल का भगवान्! मेरी वाली तेरी वाली से ज्यादा भयानक है. अगर ऐसा नहीं होता तो खून में डूबे एक्सीडेंट की वीडियो बनाने के बजाए लोग पीड़ित की मदद करते. दो टुकड़ों में बंटी वो बच्ची याद आ गई आज. उसके आखिरी पलों का वो पूरा मंज़र आँखों के आगे नाच गया. मुझे किसी ने गलती से भेज दिया था. १० सेकंड भी बर्दाश्त नहीं कर पाई उसे मैं. उस पर भी कई कई रातें सो नहीं सकी थी. उसकी मां की चीखें कानों के पर्दे फाड़ रहीं थीं. पता नहीं लोग कैसे उसे देख भी पाए और किसी से बाँटने की हिम्मत भी जुटा ली.  

अब अपनी बात पर आती हूँ. ‘उसने कहा था’* और ‘विश्वास नहीं है क्या?*’ (अध्याय ६) की अपार सफलता के बाद ये एक नया वाला आज मार्केट में ‘लांच’ किया गया. मेरे विश्वास की परीक्षा को एक और नाम मिल गया है - ‘भरोसा करते हैं लोग मुझ पर.’ किसी ने एक बार फिर उनको अपनी सारी बातें, अपने सारे राज़ बता दिए. ठीक उसी तरह जिस तरह मैंने बताया था सब कुछ अपने बारे में. एक एक करके मेरे मन की हर बात, हर राज़ उनसे बाँट लिया था. अभी कुछ दिन पहले ऐसा करने का नतीजा भी भुगत लिया मैंने. उन्होंने गुस्से में आकर मेरी वही सारी बातें मेरे मुंह पर मार दीं. मैं कितनी गलत हूँ इस बात का एहसास आपका समाज मुझे कभी नहीं दिला पाया ईश्वर. मगर मेरे अपनों को एक पल भी नहीं लगता मुझे मेरी जगह दिखाने में, मेरी कमतरी का एहसास करवाने में. जो लोग इसे आज पढ़ रहे होंगे मैं उनसे गुज़ारिश करती हूँ. बाहर वालों की गलतियाँ माफ़ करने के बजाए अपनों की गलतियों के लिए उन्हें माफ़ करना सीखिए. कोई पर्फेक्ट नहीं होता और गलती किसी से भी हो सकती है. इसलिए इन्सान आपसे मिलने से पहले जो कुछ भी था, उसके लिए उसे आज ज़िम्मेदार मत ठहराइए. हर इन्सान को हक है कि उसकी जिंदगी में ऐसा एक शख्स हो जो उसके सात खून माफ़ कर सके. सजा दे तो अकेले में, सबके सामने नहीं. सबके सामने उसे सिर्फ भरोसा दिलाए कि वो उसके साथ हमेशा है, हर हाल में है और हर तरह से है.

और एक ज़रूरी बात – आपके दोस्त आपका बहुत कुछ हो सकते हैं, पर कोई एक ऐसा होता है जिसके लिए आप सब कुछ हैं. उस इन्सान को दुःख पहुँचाने और अपने दोस्तों के कहने पर उसके बारे में राय बनाने से पहले सोच लीजिये या हो सके तो उससे पूछ लीजिये. उससे नहीं तो अपने दिल से पूछ लीजिये – जवाब अपने आप मिल जाएगा. मेरी जिंदगी में ऐसा अक्सर होता है कि मैंने लोगों के लिए जो कुछ भी किया लोग अक्सर उसे भूल जाते हैं. मेरी बुराइयाँ या मेरा अतीत या मेरी कमियां मेरे रिश्ते पर भारी पड़ जाती हैं. लोग भूल जाते हैं कि मैं उन्हें किस हद तक चाहती हूँ, कितना प्यार करती हूँ, उनके प्रति कितनी वफादार हूँ. मैं ये तो नहीं कहती कि मैं अपने किए के बदले में कुछ चाहती हूँ पर इतना तो चाह सकती हूँ न कि मेरी कड़वी जुबान के बजाए कोई मेरा साफ़ दिल देख ले.

कभी कभी मुझे लगता है मेरे ईश्वर कि आपने कोई ऐसा इंसान बनाया ही नहीं जो मुझे समझ सके. या जान सके कि मैं क्या चाहती हूँ जिंदगी से. आज मैंने कहा उनसे कि आप चाहते हैं किसी के साथ होना इसलिए कोई आपके साथ है. ‘उसी के साथ रह लीजिये.’ कहते ही जवाब मिला ‘और तुम किसी और के साथ, है न!!’ नहीं भगवान् जब वो नहीं थे तब भी मैं किसी और के साथ नहीं थी. उनके जैसे इन्सान का साथ मिलने के बाद कुछ और चाह भी कैसे सकती हूँ? पर मैं अच्छी तरह से जानती हूँ कितना आसान है उसके प्यार में पड़ जाना. बहुत आसान है उस पर भरोसा करना. बहुत आसान है उसके नज़दीक आना. और जो लोग ऐसा करते हैं वो कुछ गलत नहीं करते क्यूंकि भरोसे का मान रखना उनसे बेहतर कोई नहीं जानता. मुझे डर बस इतना है कि दिखावापसंद और मतलबपरस्त लोग जो अपने लिए फौरी राहत तलाशते रहते हैं, अपने स्वार्थ को ज़रूरत जता कर उनका फायदा न उठाने लगें. दुनिया बेहद स्वार्थी है भगवान् और ये बात मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता.

Monday, 14 May 2018

धोखा है

अध्याय २४

हे ईश्वर

क्या होता है प्यार? क्यूँ होता है? वो सब तो एक तरफ. मैं आपसे ये पूछना चाहती हूँ कि प्यार के नाम पर आपकी दुनिया में जो होता है वो क्यूँ होता है? आप तो भगवान् हैं, सर्व शक्तिमान हैं, सर्व ज्ञानी हैं. तो फिर आपने क्यूँ नहीं रोका स्वार्थ की आंच में प्यार जैसे पवित्र एहसास को झुलसने से. बताइए न? एक इन्सान जो दुनिया के सामने तन कर खड़ा होता है प्यार उसका सर झुका देता है. एक इन्सान जो एकांत पसंद करता है, प्यार उसे एकाकी बना देता है. एक इन्सान जो अपनी सफलता पर राहत महसूस करना चाहता है, प्यार उसी सफलता को उसकी सबसे बड़ी हार में बदल सकता है. जीवन में अगर कोई न हो तो आप शायद जी सकते हैं लेकिन जब आपके जीवन में कोई आकर आपसे दूर चला जाता है तो जीना बेहद मुश्किल होता है. क्यूँ करते हैं लोग ऐसा? क्या चाहते हैं? अपनी थोड़े देर की ख़ुशी के लिए किसी का जिंदगी भर का सुख चैन क्यूँ बर्बाद करते हैं? रोज़ देखती हूँ ऐसे लोगों को, रोज़ पढ़ती हूँ उनके बारे में. बड़ी भयानक कहानियां हैं भगवान. खुशकिस्मत हूँ कि मेरी कहानी ऐसी नहीं है. मेरी कहानी में धोखा तो है पर इतना नहीं कि मैं संभल न सकूँ. हिम्मत ने मेरा हमेशा साथ दिया है. ऐसा नहीं है कि मैं कभी गिरी नहीं पर उठ भी गई हूँ. फिर से चलने लगी हूँ, जीने लगी हूँ, हंसने लगी हूँ.

हे भगवान लोग इसे पढेंगे तो यही कहेंगे कि प्यार जैसा कुछ नहीं होता. सब झूठ है, फरेब है, धोखा है. धोखा क्या है और किसने दिया? बताइए न? जब समाज को पता चलता है कि कोई किसी से प्यार करता है तब समाज ही तो है जो उस रिश्ते पर कीचड़ उछालता है. प्यार को फरेब बनाया किसने? बताइए न? एक वक़्त था जब प्यार वो एहसास था जिसके लिए लोग ख़ुशी ख़ुशी अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया करते थे. एक ये वक़्त है जब प्यार के नाम पर हत्या, बलात्कार, शोषण और साजिशें. इस सब में प्यार और उसकी मासूम सी ख्वाहिशों के लिए लोगों के पास वक़्त ही कहाँ है? कभी प्यार के खिलाफ लोग लाठी डंडे लेकर खड़े हो जाते हैं और कभी जिसे आपने प्यार किया वो ही आपका विश्वास तोड़ देता है. मैंने भी अपनी पूरी जिंदगी केवल सच्चा प्यार किया है. लोग कहते हैं कि तुम बार बार प्यार कैसे कर सकती हो? क्यूँ नहीं कर सकती भगवान्? अगर कोई मेरी सच्चाई, ईमानदारी और मेरी कद्र नहीं करता तो क्यूँ मैं उसे छोड़ के आगे नहीं बढ़ सकती? क्यूँ एक नई शुरुआत नहीं कर सकती. ये दुनिया बेहद खूबसूरत है भगवान. इसलिए मैं इसकी ख़ूबसूरती पर विश्वास करना चाहती हूँ. जिंदगी को दूसरा, तीसरा और चौथा ही क्या तब तक मौका देना चाहती हूँ जब तक मेरा सपना पूरा नहीं हो जाता. पर अब ऐसा लगता है कि सब कुछ थम जाए. काश यहाँ से मुझे आगे न बढ़ना पड़े.मेरा ये रिश्ता, मेरा ये आज अब तक का सबसे खूबसूरत रिश्ता है. अब तक का सबसे प्यारा आज है. मैं इस आज को अतीत बनते नहीं देखना चाहती. मैं चाहती हूँ कि मेरी जिंदगी में जिस जीवनसाथी की आपने कल्पना की है वो आप ही हो. मेरे ईश्वर हर इन्सान को जीवनसाथी की ख्वाहिश होती है.मुझे भी थी. पर मैंने देखा कि मैं कितना भी सच्चा प्यार करूँ लोग मुझमें बस अपनी कुछ देर की राहत ही तलाशते हैं जिंदगी भर का साथ नहीं. इसलिए धीरे धीरे मैंने अपने लिए वो कल चाहना ही छोड़ दिया. जिसमें साल दर साल जिंदगी भर के लिए कोई मेरे साथ होगा. मेरा मन डरता है कि साल दर साल बदलते चेहरे ही कहीं मेरा मुक़द्दर बन कर न रह जाएँ.
भगवान प्यार इन्सान की ज़रूरत भी है और ख्वाहिश भी. देखा जाए तो बेहद छोटी पर फिर भी बेहद ज़रूरी.

ऐसी ही थी मेरी भी ख्वाहिश कभी. उनका कहना है मुझे बच्चे की ख्वाहिश थी. मुझे बच्चे की नहीं उनके बच्चे की ख्वाहिश है क्यूंकि मैं प्यार को पूरा होते देखना चाहती हूँ. भगवन मेरी ये छोटी सी इच्छा पूरी कर दो. बहुत से लोग मुझे वो सारे नाम फिर से दे देंगे जो मैंने अब तक सुने हैं. पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. जिस तरह आपका समाज किसी मासूम की मदद की पुकार अनसुनी कर देता है मैं भी उसके सारे इल्ज़ाम अनसुने कर दूंगी. प्यार के लिए इतना तो कर ही सकती हूँ. 

Sunday, 13 May 2018

परफेक्ट हो..

अध्याय २३ 

हे ईश्वर 

कितनी दूर आ गयी हूँ मैं. फिर भी नहीं बदली मेरी ज़िन्दगी ज़रा भी. सब कहते हैं तुम ज़िम्मेदारी से भाग रही हो. क्या सच? क्या होती है ज़िम्मेदारी भगवान् और कौन भाग रहा है? याद आता है मुझे हर वो इन्सान जो मेरे रास्ते में तो आया पर साथ चलने के लिए नहीं. कुछ दूर साथ चलके मेरा साथ छोड़ देने वाले हर इन्सान से मैंने पूछा था 'मुझमें क्या कमी है?' सबने यही कहा कि तुम परफेक्ट हो. क्या होता है परफेक्शन भगवान्? क्या होती है सम्पूर्णता? क्या वो जब कोई ये मान लेता है कि एक रिश्ते में झूठ बोलना सच्चाई बताने से बेहतर है. या वो जब कोई आपसे सहारा मांगे और आप उसमें केवल थोड़ी देर की राहत तलाश रहे हों. या फिर वो जिसमें आप ढेर सारे वादे तो कर लेते हैं पर निभाने की शक्ति नहीं रखते. परफेक्शन के एक नहीं कई सारे रूप हैं भगवान् जो मैंने आजमाए हैं और हर बार धोखा ही खाया है. तुम्हारी परफेक्ट दुनिया के परफेक्ट लोग मेरे साथ छुपन छुपाई तो खेल सकते हैं पर सबके सामने मुझे अपना नहीं सकते. अब आप कहोगे क्यूँ बनाती हो ऐसे रिश्ते तुम? कैसे कर लेती हो विश्वास? कैसे सोच लेती हो कि सामने वाला अपने सारे वादे निभाएगा? वो इसलिए क्यूंकि भगवान मैं आप पर खुद से ज्यादा विश्वास करती हूँ. मैं इंसानियत और इन्सान की नेक नीयत पर  भरोसा करती हूँ. मुझे लगता है कि हर इन्सान एक जैसा नहीं होता. इसलिए जब लोग मेरा फायदा उठाते हैं और उसके बाद अपनी स्वार्थान्धता और कायरता को मजबूरी का नाम देते हैं तब मैं सब्र कर लेती हूँ. ये सोच लेती हूँ कि कोई तो होगा जो कायर नहीं होगा. जिसमें हिम्मत होगी मुझे अपनाने की. मैं सारी जिंदगी वो हिम्मत तलाश करती रही.

एक रिश्ते में सुरक्षित महसूस करना मेरा अधिकार है ईश्वर और मुझे सुरक्षित महसूस कराना सामने वाले का दायित्व है. खुशकिस्मती से मेरी कोई आर्थिक मजबूरी नहीं है. फिर भी मुझे मेरे रिश्ते के लिए सामाजिक स्वीकृति और खो देने के डर से मुक्ति चाहिए.

एक उंगली जब उठती है तो सिर्फ मुझ पर ही नहीं मेरे परिवार और मेरे संस्कारों पर भी. जबकि मुझे जो मेरे परिवार से मिला वो बहुतों को नहीं मिलता. मुझे सपने देखने कि आज़ादी मेरे परिवार ने ही दी है. मुझ पर और मेरे हर निर्णय पर पूरा भरोसा मेरे परिवार ने ही किया है. हिम्मत दी है, इंतज़ार किया है मेरा हर सपना पूरा होने का. सब कुछ ठीक हो जाता अगर पहले की तरह मेरी मेहनत और लगन पर सब कुछ निर्भर होता. शादी तो न जाने किस बात पर निर्भर करती है. मुझे डर लगने लगा है भगवान. अपने आप को ज़िन्दगी भर के लिए किसी को दे देने का नतीजा गलत भी तो हो सकता है. कैसे और किस पर भरोसा करूँ? सब कहते हैं अपने परिवार की खातिर ही कर लो न. पर भगवान् शादी परिवार के लिए नहीं अपना परिवार बनाने के लिए की जाती है. लोग ये बात भूल गये हैं और शादी को बायो डाटा, तस्वीरों, कुंडली और न जाने क्या क्या में उलझा दिया है. मैं शादी करना चाहती थी पर वो शादी नहीं जो लोगों को दिखाने के लिए की जाती है.पर वो जिसमें दो इन्सान जिंदगी भर हर सुख दुःख में एक दूसरे का साथ देते हैं.

मेरे ईश्वर मुझे अब कुछ नहीं चाहिए, मैं और कुछ नहीं चाहती. बस एक दुआ मांगती हूँ कि मेरी भटकन को आप विराम दे दो. मुझे थोडा सा सुकून दे दो. मैं अकेले अपने रस्ते पर चल सकूँ, इतनी शक्ति दे दो और विवेक भी. मैं उन सब लोगों से दूरी बनाना चाहती हूँ जिनके पास दुनिया के सामने मुझे अपनाने की हिम्मत नहीं है. उसके बिना जीना आसान तो नहीं है पर सही रास्ता आसान कब हुआ है. इतना ही चाहती हूँ मैं मेरे भगवान कि उस की आँखों में मुझे खोने का डर हो. वो कर रहा हो कोशिशें मेरे साथ आने की. जिस तरह मैंने लोगों की भावनाओं की कद्र की है, वो मेरी कद्र करे. मेरे साथ अगर रिश्ता बनाया है तो उस रिश्ते को सुरक्षा दे दे. और अगर नहीं दे सकता तो छोड़ दे मेरा साथ. कुछ दिन का खालीपन मैं बर्दाश्त कर सकती हूँ पर एक और धोखा नहीं सह पाउंगी. मैं टूट जाउंगी भगवान्. ज़िन्दगी भर के लिए इंसानियत से विश्वास उठ जायेगा मेरा. प्लीज ऐसा मत होने दो. मेरे विश्वास की और मेरे रिश्ते की रक्षा करो भगवान्.

Wednesday, 9 May 2018

सफ़र था वो, मंज़िल नहीं


अध्याय २२ 

हे ईश्वर
बहुत थक गई हूँ मैं खुद को समझाते समझाते. मुझमें कुछ कमी नहीं, उसमें थी. मुझमें कुछ गलत नहीं, उसमें था. मुझमें कुछ झूठा नहीं, उसमें था. मैंने नहीं बदले थे रास्ते, उसने बदले. मैंने तो कोशिश की थी कि हम साथ हो सकें. मैंने समझाया था उसे, कोशिश की थी रोकने की. पर उसने मेरे प्यार को लोगों की नज़रों में एक गंदा मज़ाक बना कर रख दिया. लोग तो छोड़ो, मैं खुद अपनी ही नज़र में दोषी थी. बार बार लगता था, इतना प्यार करने की क्या ज़रूरत थी? करती भी तो क्यूँ उसे एहसास होने दिया मैंने? इसी प्यार का तो लोग फायदा उठाते हैं. तुम्हारी मजबूर दुनिया के मजबूर लोग, अपनी मजबूरी की दीवार नहीं गिरा पाए तो मेरी ही नज़र से गिर गए. क्यूँ बनाते हैं लोग ऐसे रिश्ते जिनकी उम्र इतनी छोटी होती है, पर उनके दिए ज़ख्म उम्र भर रह जाते हैं.  
कई बार की है एक नई शुरुआत मैंने. पर हर बार गलत रास्ता पकड़ा है. मेरे माँ पापा कहते हैं जब आप अपने घरवालों की मर्जी के बिना कुछ भी करोगे तो नतीजा तो यही निकलेगा. पर भगवान् उन लोगों का क्या जो घरवालों की मर्ज़ी से करते हैं सब कुछ. क्या उनके साथ कभी कुछ गलत नहीं होता? हमने इतनी सारी दीवारें बनाई हैं भगवान्. जात बिरादरी धर्म और देश दुनिया – ये सब भी कम पड़ा तो कुंडली और ग्रह नक्षत्र बना डाले. लोग कितना भी कहें कि ये सब अन्धविश्वास है पर ब्याह की गांठ बंधने से पहले एक बार ये फॉर्मेलिटी करते ज़रूर हैं. ‘आजकल ये सब कौन मानता है’ से ‘फिर भी एक बार देख लेने में हर्ज़ नहीं है’ तक जाने में उन्हें समय नहीं लगता.

हे भगवान मैं तो कहती हूँ प्यार की क्यूँ नहीं मिलाईं हैं आपने कुंडलियाँ? जो लोग ‘कैजुअल’  रिश्ते में विश्वास रखते हैं उनको मिलते जुलते लोग मिलें. जो मजबूरी के चलते प्यार की कुर्बानी देने वाले हैं उन्हें उनके जैसे मजबूरों का साथ मिले और वो लोग जो प्यार के नाम पर एक भद्दी गाली हैं, ऐसों को तो कोई न मिले. फिर वो लोग जो जीवन में प्यार तलाश रहे हैं, जिन्हें ऐसा साथी चाहिए जिसका हाथ वो ज़िन्दगी भर थाम कर चल सकें, उन्हें मिले वैसा ही कोई. जो दिलोजान से उनसे प्यार करे. जो हर हाल में उनका साथ दे. जो प्यार या तो न करे और अगर करे तो पूरी ईमानदारी से उसको उसकी जगह और हक दे दे.

तुम्हारी दुनिया में ऐसे भी बहुत सारे लोग हैं भगवान्, जिनसे प्यार संभाला नहीं जाता. वो कर तो लेते हैं प्यार पर उनकी डिक्शनरी में एक शब्द होता है जो उनकी सारी मेहनत, सारी ईमानदारी और सारी कोशिशों पर पानी फेर देता है. वो शब्द है वक़्त. जिस तरह हम एक पौधा लगायें पर उसमें पानी डालना भूल जाएँ तो वो मुरझा जाता है, मर जाता है उसी तरह हम एक रिश्ता अपनाएं और उसे वक़्त और परवाह से सजाना भूल जाएँ तो वो भी जी नहीं सकता.

हमने रिश्तों के बारे में बहुत सी गलतफहमियां पाल रखी हैं भगवान्. रिश्ते बनाना बहुत आसान है और निभाना बेहद मुश्किल. ऐसा कुछ नहीं है. जितना आसान एक रिश्ता बनाना है उतना ही आसान है उसे निभाना. अगर आप उस कल को याद रखें जब आपकी जिंदगी में वो प्यार नहीं था, तो आपका आज बेहद खूबसूरत हो सकता है. हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि जो आज हमारा है, कल न जाने कहाँ होगा. तो वो जब तक है, उसे ख़ुशी दें, प्यार करें, उसकी परवाह करें. हर दिन ऐसे ही जियें जैसे वो आपका उनके साथ पहला दिन हो. एक रिश्ता जो इतना सरल हो सकता है, हम खुद उसे इतना मुश्किल कर देते हैं. मेरे पास वक्त नहीं है – ये वो धीमा ज़हर है जो आपके रिश्ते की जड़ को खोखला कर देता है. मैं जानती हूँ आप अपने पक्ष में तरह तरह के तर्क जुटा रहे होंगे. पर सच! आपका दफ्तर, आपका परिवार और उससे जुड़ी जिम्मेदारियां एक तरफ और दो पल किसी के साथ सुकून से बैठना एक तरफ. हर रिश्ते से जुड़े कुछ खास पल होते हैं जिनको याद रखने में आपका कुछ नहीं जाता.

क्यूँ अकेला छोड़ देते हैं हम अपने प्यार को दुनिया की भीड़ में? क्यूँ देते हैं लोगों को मौका कि वो आपकी जगह ले सकें. ऐसा भी तो नहीं है कि ऐसे लोग कोई जनम जनम के रिश्ते में विश्वास करते हैं और हमेशा के लिए आपकी जगह लेना चाहते हैं. ऐसे लोग आपके रिश्ते की हल्की सी दूरी को एक चौड़ी खाई में बदल देते हैं. बचा कर रखिये अपने प्यार को ‘वक़्त नहीं है’ के ज़हर से. आपकी थोड़ी सी परवाह से आपका रिश्ता बच सकता है. वैसे भी ज़िंदगी भर के लिए किसी का हो जाना दुनिया की सबसे खूबसूरत बात होती है और ये खूबसूरत बात आपके साथ भी हो सकती है.
हे ईश्वर जितने भी सच्चा प्यार करने वाले इस दुनिया में हैं, समझा दो उन्हें. प्यार का इज़हार करने से पहले सोच लें कि कल किसी भी ‘काश, लेकिन और शायद’ को वो अपने रस्ते का रोड़ा नहीं बनने देंगे. उनका वो सच्चा प्यार जो सिर्फ उनकी ख़ुशी चाहता है और बदले में सिर्फ एक मुकम्मल रिश्ता.

Saturday, 5 May 2018

तुम्हारे लिए


मेरे ईश्वर

आपने मेरी दुआ कबूल कर ली पर कितने अलग तरीके से. आज मैं हूँ उसके पास, उसके साथ.आज न जाने कितने दिनों के बाद एक बार फिर पहले जैसी फिक्र जताई उसने, पहले जैसे बातें की, वक़्त बिताया. मन एकदम से शांत हो गया, अजीब सा चुप चाप. पर मुझे डर लग रहा है. उसने इतनी हिम्मत की है आज भगवान्.उसे सही रास्ता दिखा दो. मेरे ईश्वर आपने ही हमें मिलाया है, आप ही उसके मन के सारे वहम हटा दो. प्लीज भगवान् उसे सही और सहज रास्ता दिखा दो. उसे एहसास दिला दो कि वो गलत नहीं है, सपने में भी उसके जैसे इन्सान से कोई गलती नहीं हो सकती.

एक इन्सान जब किसी चीज़ पर विश्वास करने लगता है न तो बहुत मुश्किल होता है उसे उसके विश्वास से परे कुछ और समझाना. ऐसा सिर्फ आप कर सकते हो भगवान्. प्लीज भगवान् उसके मन से पाप के सारे बोझ हटा दो. उसे एहसास दिला दो कि जीवन को चलने और किसी दिशा में मोड़ने वाले आप हो. मेरे सारे निर्णय मैंने आपके हाथों में छोड़ दिए थे. इसलिए कभी सवाल नहीं करती. इसलिए सवाल नहीं किया. इस बात की सज़ा उसे क्यूँ मिले भगवान्? क्यूँ? क्यूँ उसके मन में पाप का बोझ हो? क्या करूँ कि उसके मन की ये दुविधा ख़त्म हो जाये, उलझन मिट जाए.

हे भगवान् आज बहुत दिनों के बाद कितनी सारी प्यारी प्यारी यादें आखों के आगे आ रही हैं. बहुत खूबसूरत जिंदगी दी है आपने मुझे भगवान्. उसके जैसा जीवन साथी देकर आपने उसे पूरा भी कर दिया. जानती हूँ दुनिया और समाज की नज़रों में वो गैर है. समाज तो क्या मेरे अपनों की नज़रों में भी मेरा वो कुछ नहीं. पर ईश्वर प्यार आप ही का रूप है. ये रिश्ता आप का ही तो आशीर्वाद है मेरी ज़िंदगी में. तो कैसे कह दूँ कि वो मेरा कुछ नहीं. याद है किस तरह ढाल बनकर खड़ा हो जाता है मेरी हर मुसीबत के आगे. हम जब भी कहीं जाते हैं भीड़ में मेरा हाथ थाम कर, मेरे आगे खड़े होकर या मेरे लिए बैठने की जगह बना कर जब वो मेरे नज़दीक खड़ा हो जाता है, ज़िन्दगी इतनी प्यारी लगने लगती है. अपने ऊपर बहुत गर्व होता है और उस पर भी जब वो किसी गलत बात का विरोध करने के लिए अपनी आवाज़ उठता है. उसने तो मुझे भी आवाज़ उठाना सिखा दिया.

जब कभी सफ़र के बीच में अचानक वो मुझसे देश दुनिया की बातें करने लगता है, मन करता है सुनती ही रहूँ. आज बेहद लम्बे अरसे बाद कुछ बेहद प्यारी बातें याद आ रही हैं. याद आ रही है उसकी हर खासियत, हर वो खूबी जिसने मेरा दिल जीत लिया. और सबसे ज्यादा याद आती है वो शाम जब मैंने उससे उसका हर सपना, हर ख्वाहिश पूछी थी. हे ईश्वर उसका हर सपना पूरा करो. समाज में उसे उसकी सही जगह दिला दो. जिस तरह मेरी ज़िन्दगी में आपने मुझे सुख, चैन और सम्मान से जीने का मौका दिया, उसे भी दो. भगवान् उसकी बेचैनी मुझसे देखी नहीं जाती. बहुत कर लिया उसने संघर्ष. अब उसे उसकी सही जगह तक जाने दो. प्लीज भगवान्.

हे ईश्वर आपकी दुनिया मुझसे पूछती है क्या रिश्ता है मेरा उससे. क्या बताऊँ? आप ही तो ले आए थे उसे मेरी ज़िन्दगी में और आज आपने उसे मेरी जिंदगी बना दिया. जब वो सर पर हाथ रखता है, ऐसा लगता है आपका हाथ है. कभी दिलासा तो कभी सहारा देता हुआ. कभी शाबाशी तो कभी डांट. वो अजीब सा एहसास जो सिर्फ उसे देख कर आता है. जैसे बच्चा दिन भर अजनबी लोगों के बीच रहा हो और अचानक अपने उसे लेने आ जाएँ. याद है मैं बचपन में अक्सर खो जाया करती थी. आज भी खो गई हूँ. अपने आप को पहली बार मिली हूँ जैसे. मैंने ख़ुशी तो महसूस की है कई बार पर खोने का डर भी बड़ी शिद्दत से महसूस किया है. खोया भी है. फिर जीना भी सीखा है चीज़ों के बिना, रिश्तों के बिना, प्यार के बिना. पर उसके मिलने के बाद लगता है कि अब मुझे और भटकना नहीं पड़ेगा. ख़त्म हो गई है मेरी तलाश. पूरा हो गया है मेरा अधूरापन.

सब मुझ पर नाराज़ हैं क्यूंकि मैंने आपको अपनी ज़िन्दगी में जगह दी है. सब आपसे नाराज़ हैं क्यूँकि आपने मेरा साथ दिया. हम सबको तो मना नहीं सकते. पर आपसे कह रहे हैं भगवान आप इन नाराज़ लोगों से हमें बचा लो. हमारे प्यार को बचा लो. प्लीज भगवान्.

Thursday, 3 May 2018

लग जा गले


अध्याय 20 

हे ईश्वर

की होलो कोलकाता? कॉस्मोपॉलिटन, बुद्धिजीवी वर्ग, लाल सलाम के झंडे लेके चलने वाला एक ज़रा सी नजदीकी से इतना घबरा गया? क्यूँ? पटे पड़े रहते हैं अखबार और सोशल मीडिया हैंडल्स...खून में डूबे सड़क पर पड़े लोग हों या खून करके उसे अपलोड करने वाले. सड़क चलती लड़कियों से बदसलूकी के किस्से या जानवरों से क्रूरता के वीभत्स नज़ारे...ये सब देख कर अनदेखा करने वाले लोग आज प्यार जैसे मासूम एहसास से इतना नाराज़ हो गये? सही है.
खैर तुमसे तो क्या कहूँ?

शुक्रिया भगवान्. वो वापस आ गये हैं पर थोड़े से बदले बदले से हैं. किस्मत, कुंडली, लकीरों की बातें करते हैं और मेरे दिल की धड़कन की नहीं. थोड़े दिन का साथ है कह कर एक दूरी बनाने को कहते हैं और ये नहीं सोचते कि उनसे दूर होकर मैं खुद के भी नज़दीक नहीं रह पाऊँगी. दोस्ती निभाने के लिए कहते हैं पर दोस्ती की सीमारेखा तो कब की टूट चुकी है, अब कैसे उस मोड़ से वापस लौट आऊँ? अब तो वो जिंदगी हैं मेरी. आज फिर उन्होंने गुस्से में क्या कुछ नहीं कहा. आज पहली बार मुझे लगा कि इस इन्सान के या किसी भी इन्सान के सामने अपना दिल और अपने अतीत के पन्ने खोल कर मैंने बहुत बड़ी गलती की है. अगर इनकी हमदर्दी और नेक सीरत पर विश्वास करके अपनी कहानी इन्हें नहीं बताती तो शायद आज इनके पास कहने को इतना कुछ नहीं होता. इस तरह मेरे ज़ख्मों पर नमक छिड़कने का बहाना नहीं होता. इस तरह मुझ पर उंगली उठाने का सबब नहीं बनता. एक पल को तो कानों पर विश्वास नहीं हुआ. जिस इन्सान ने मेरे हर ज़ख्म पर मरहम रखा था वो आज मुझे गलत ठहरा रहा था. मुझे कह रहा था कि मैं किसी एक के साथ रह ही नहीं सकती. खुश रह ही नहीं सकती.

मेरे भगवान्, मेरी ज़िंदगी में आने वाला हर इन्सान इतना कायर क्यूँ था? जवाब दो मुझे. जिन लोगों को मैंने एक अच्छी ज़िंदगी जीने के लिए साहस दिया, जिनकी मुश्किल में उनका हौसला बढ़ाया, जिनके रस्ते की मुश्किलें दूर करने की कोशिश की, वो सब आज मेरे साथ नहीं हैं. मेरी वजह से जिनकी ज़िन्दगी आसान हुई थी आज वो ही मेरी हर मुश्किल की वजह बने हुए हैं. मेरे अतीत के कारण मेरे आज पर लोग बड़ी आसानी से उंगली उठा देते हैं, भूल जाते हैं कि अतीत बदला नहीं जा सकता. उसे सिर्फ भूला जा सकता है. उस से सीख लेके आगे बढ़ सकते हैं, उसके बोझ तले दब कर अपने आपको सजा नहीं दी जा सकती. माफ़ क्यूँ नहीं कर देते लोग मुझे. मेरी गलतियों के लिए...

हमारा रिश्ता कभी बराबरी का रिश्ता था ही नहीं. जिस रिश्ते में मेरा एक इन्सान से बात करना भी उनको गवारा नहीं है उसी रिश्ते में रहकर भी वो न जाने किस किस को मिलते भी हैं और साथ वक़्त भी बिताते हैं और इस बात को गलत भी नहीं मानते. मुझसे किया वादा उनको याद भी नहीं रहा और किसी से एक ऐसा वादा कर आए जिसने मुझे अन्दर से तोड़ दिया. कहते हैं पिछले दो तीन महीनों में मैंने उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया. मुझे अपनी सारी गलतियों का एहसास है भगवान् पर काश कभी वो भी समझते. मैंने किसी से बात कर भी ली तो उससे कुछ बदल तो नहीं गया. मैंने प्यार किया था कभी उस इन्सान से. आज अगर उसे मेरी ज़रूरत पड़ी तो कदम पीछे नहीं खींच पाई मैं. उसको मना नहीं कर पाई, वो मेरी मजबूरी थी भगवान् खुदगर्जी नहीं.

उनका कहना है अगर तुम खुश नहीं हो तो मत रहो मेरे साथ. मैं कहाँ जाऊं भगवान्? बताइए न? क्या होती है ख़ुशी भगवान्? मैं अपने आप से ज्यादा उन पर भरोसा करती हूँ. उनके साथ मैंने जिस सुरक्षा, जिस सम्पूर्णता को महसूस किया, वो लोगों को ज़िन्दगी भर खोजने से भी नहीं मिलती. मैंने कभी उनसे कहा था मैं उनसे मिलना नहीं चाहती. मैं उनसे मिल कर खुद को भूल जाती हूँ. उनके रिश्तेदारों को उनकी फिक्र है. पूरे समाज को उनकी फिक्र है. एड़ी चोटी का जोर लगाये जा रहे हैं लोग उन्हें मुझसे अलग करने के लिए. पर भगवान् मैं आपसे प्रार्थना करती हूँ गलत साबित करो सब को. साबित करो कि मुझे और मेरे जैसी हर लड़की को एक नई शुरुआत करने का हक है.

वो कहते हैं जब तुम शादी करोगी तब करूंगा सवाल तुमसे. आप बताओ न? आपने लिखा है क्या कोई और मेरी किस्मत में? क्यूँ लिखा है भगवान्? क्या मेरा मेरी खुशियों पर कोई हक नहीं? क्या मुझमें एक रिश्ता निभाने की काबिलियत नहीं? क्या मैं इस लायक नहीं कि इनके साथ रह सकूँ? कैसी शादी होगी वो जिसमें वो समर्पण ही नहीं होगा? क्या कोई मजबूरी होगी या समझौता कोई जिसके चलते अपना इतना प्यारा रिश्ता मैं तोड़ दूंगी? मत करो ऐसा भगवन. मुझे और टुकड़ों में मत बांटो. प्लीज भगवान्.

अकेले हैं तो क्या गम है

  तुमसे प्यार करना और किसी नट की तरह बांस के बीच बंधी रस्सी पर सधे हुए कदमों से चलना एक ही बात है। जिस तरह नट को पता नहीं होता कब उसके पैर क...