Thursday, 24 December 2020

वापस आ जाओ....

हे ईश्वर

वो सारे दिन वापस आ गए हैं। वो फिर से नाराज़ हैं और इनको मनाना दिन पर दिन मुश्किल होता जा रहा है। मैं अकेली तो पहले भी थी पर वो मेरे साथ थे। दूर होकर भी हमेशा मेरे साथ थे। अब न जाने क्यूँ ऐसा लगता है अब मैं अकेली हूँ। उनके बिना एक दिन भी काटना कितना मुश्किल है। आपने मेरे साथ ऐसे क्यूँ किया? भगवान क्या मेरी श्रद्धा में कोई कमी है? क्या मन में कोई खोट है? क्यूँ करते हैं आप मेरे साथ ऐसा? बताइये न?

कौन चाहता है कि उसके साथ कुछ गलत हो, बुरा हो? सब अच्छे की ही उम्मीद करते हैं, भलाई का ही प्रयास करते हैं। पर जब कभी मैं सोचती हूँ थोड़ा आराम आ गया है जिंदगी में, तब सब कुछ बिखर जाता है। सोचा तो यही था न कि जैसे भी हो काट लेंगे। अब लेकिन कुछ नहीं समझ आ रहा।

कभी कभी लगता है जैसे मेरा कभी कुछ था ही कहाँ जो छूटेगा! फिर अगले ही पल किसी का अपनापन और परवाह मेरे हाथ थाम लेता है, कदम रोक लेता है। कभी लगता है सब कितना खाली और निरर्थक है उस इंसान के बिना अगले ही पल उसकी कड़वी बातों से आँखें भर आती हैं। उस समय उसी कड़वाहट को उसको वापस करने को जी करता है।

इंसान इतना हृदयहीन क्यूँ होता है ईश्वर? क्या उनको थोड़ा भी एहसास नहीं कि वो मेरे जीवन से जिस तरह खेल रहे हैं, मेरा भविष्य किस कदर अंधेरा हो गया है? उनके सामने तो दुनिया खड़ी है बाहें खोले इंतज़ार करती हुई। पर मेरी तो सारी दुनिया उन्हीं तक सीमित रही है। जब पूरी दुनिया मुझ पर उंगली उठाती है तब उसी दुनिया के रंग में डूबे उनके मुंह से निकलते जहर बुझे अल्फ़ाज़ मुझे अंदर से पूरी तरह तोड़ देते हैं। इसके बावजूद भी आज भी मैं सर उठा कर चलती हूँ तो वो कहते हैं तुम बेशर्म हो...

हाँ, बेशर्म तो मैं हूँ ही वरना आज की दुनिया में भी सच्चाई, ईमानदारी और सच्चरित्रता लेकर क्यूँ जी रही हूँ मैं? मेरे ऊपर उंगली उठाने वाले वो पहले इंसान तो हैं नहीं और वैसे आजकल तो पूरी दुनिया, पूरा समाज मेरे ऊपर ही उँगलियाँ उठाने में लगा हुआ है। फिर भी उनके लगाए हुए इल्ज़ामों पर मुझे हंसी क्यूँ आ जाती है। रात के अंधेरे में अपने अकेलेपन में भले ही ज़ार ज़ार रोती हूँ मैं, आपके सामने भले भरी हुई आँखें हो पर आपकी दुनिया ने हमेशा मेरा हँसता हुआ चेहरा ही देखा है।

भगवान, क्या मेरी नियति में हमेशा अपनों से ही एक अंतहीन सी जंग करना लिखा है आपने? ये कैसे अपने हैं जो मेरे लिए बुरे से बुरे श्राप निकालते हैं, मेरी जिंदगी में और भी मुश्किलें आने के दावे करते हैं? या फिर ये बोलते हैं कि दुनिया की सारी समस्याएँ तुम्हारे ही साथ क्यूँ होती हैं? और भी तो लड़कियां हैं इस दुनिया में! इसका जवाब तो मैं नहीं दे सकती। केवल आप बता सकते हैं। मौन तोड़िए अपना ईश्वर!


Wednesday, 7 October 2020

मैं तुम्हें फिर मिलूँगी*

हे ईश्वर

लोग कहते तो थे कि समय पंख लगा के उड़ जाता है पर मैंने अपनी जिंदगी के 18 साल कब बिता दिए मुझे पता ही नहीं चला। मुझे घर भेजने के लिए शुक्रिया आपका। मुझे इसकी बेहद ज़रूरत थी। एक अरसे बाद मैं अपने शहर, अपनी गली और अपने घर में थी। घर – मैं भी तो किसी का घर ही बनना चाहती हूँ भगवान! पर आपने तो मुझे रास्ते में पड़ने वाला एक पेड़ बनाया है। कोई भी आने जाने वाला कुछ क्षण सुस्ताता है, कभी कभी कच्चे पक्के चूल्हे जला के कुछ रोटियाँ भी सेंक लेता है। पर ईश्वर इस पेड़ के नीचे किसी का घर नहीं है। मैं भी किसी का घर नहीं हूँ और अभी मेरा भी कोई घर नहीं।   

मैं घर होना चाहती थी किसी एक के लिए पर उसके लिए मुझे अपनी जड़ें काटनी पड़तीं, तना छांटना पड़ता और फिर हर आने वाले मौसम के साथ खिलने वाली कोंपलों और कलियों को अलविदा देनी पड़ती। ऐसा तो मैंने नहीं चाहा न! शायद इसलिए भगवान मेरी छाँव में आने वाला हर राहगीर जलावन की लकड़ी के लिए मेरी शाखाओं को बेदर्दी से काट देता है।

तुम बिल्कुल भी नहीं बदली ये सुनने में कितना सुकून है। जानते हैं? हाँ, नहीं बदली हूँ मैं। क्यूँ बदलूँगी? तुम्हारी दुनिया का काम है ये तो... पल पल पर रंग बदलना। मैं कोई दुनिया थोड़ी हूँ। भगवान एक बात तो बताइये... जिसे आपसे इतना प्यार था, जिसको आप पर इतनी श्रद्धा थी उसको आपने इस तरह दर्द क्यूँ दिया? बताइये न?

चलो कोई नहीं... आपका दिया हुआ सब कुछ मुझे आँख बंद करके स्वीकार है।

भगवान कहीं पढ़ा था *हमारी आत्मा का एक हिस्सा ही कहीं पैदा होता है, कोई रूप लेकर। आपको इस दुनिया में उसको ढूंढ कर उसको अपनाना होता है। वो मिल जाए तो जीवन सहज और सरल हो जाता है।* मैं और मेरी आत्मा का वो जुड़वां हिस्सा आपकी दुनिया में कुछ जादे ही भटक गए हैं। मैं इस कोने वो उस कोने। कैसा सफर है ये कि खत्म ही नहीं होता।

वो कहते हैं मैं तुम्हें कोई वादा नहीं दे सकता। वादा मैंने मांगा ही कब था ईश्वर... मैंने तो बस इतना कहा था कहीं भी चले जाओ तुम। कुछ भी कर लो। किसी के भी साथ रह लो। जिस भी दिन, जिस भी क्षण तुम मुझे पुकारोगे उसी दिन, उसी क्षण सब कुछ भूलकर *मैं तुम्हें फिर मिलूँगी।

 नोट:

1॰ ब्लॉग का शीर्षक अमृता प्रीतम जी द्वारा 2002 में रचित अंतिम कविता से साभार।

2॰ प्रतिलिपि पर उपलब्ध अनुराधा पचवारिया जी की रचना परम सत्य से साभार।  

Thursday, 10 September 2020

अंत हो तुम और अंतिम भी

मेरे सबकुछ

बहुत कुछ कहा है आपने मुझे और आजकल मैं आपको जवाब भी दे दिया करती हूँ। अभी कुछ दिन पहले तो अपशब्द ही बोल दिए सीधे सीधे। बोलने के बाद मैं कितना रोई थी ये बात आपको नहीं पता होगी। शायद एहसास हो आपको पर न भी हो तो क्या? मैंने अपना प्रायश्चित तो चुन लिया है। शायद इसी से मेरे थके हुए क्लांत मन को वो शांति मिले जिसके लिए मैं भटक रही हूँ। तुम सोचते बहुत हो जान! कभी ये भी सोचा है कि मैं जो बार बार तुमसे मिलने की, बात करने की मिन्नतें किया करती थी आजकल सारा सारा दिन कैसे खामोशी से गुज़ार देती हूँ। वही मैं जो हर कीमत पर साथ रहना चाहती थी और इतनी कोशिश किया करती थी कैसे अचानक इतनी बड़ी दुनिया में तुम्हें छोड़ के रहने को राज़ी हो गई चुपचाप। वही मैं जिसे जब तुम ब्लॉक कर देते थे परेशान होकर तुम्हें ढेरों मैसेज किया करती थी, कैसे चुपचाप इंतज़ार करती हूँ कि तुम मुझे फिर से कब अनब्लॉक करोगे या फिर सोच कर बैठ जाती हूँ कि न भी करें तो क्या? जब मैं उनके दिल में नहीं तो फोन में रहकर क्या करूंगी?

बहुत कुछ होता है और हो रहा है। फिर इस सब के बीच में एक और बात हुई – क्या हम दोस्त बन कर नहीं रह सकते?’ सीधा जवाब दिया आपको नहीं! पर वो आपको पसंद नहीं आया। फिर आपने वो सारे कारण गिनने शुरू किए कि मैं क्यूँ सही नहीं हूँ और मुझमें कितनी कमियाँ हैं। अपनी कमियाँ मैं खुद भी जानती हूँ। जले हुए दिल से मैं किसी के लिए भला बोलूँ भी तो कैसे? आपको क्यूँ लगता है मेरे अंदर ऐसी कोई अच्छाई बाकी होगी? आप बार बार मेरे आत्मसम्मान पर सवाल उठा देते हैं जब भी कहते हैं तुम जैसी लड़की के साथ तो कोई नहीं रह सकता। मेरी ही मजबूरी है कि मुझे रहना पड़ता है नहीं! आपकी ऐसी कोई मजबूरी नहीं। जिस इंसान को मेरे प्यार, एकनिष्ठा, स्पष्टवादिता और निस्वार्थ भाव ने आकर्षित नहीं किया वो मेरे साथ किसी मजबूरी के चलते रहे ऐसा तो मैं सपने में भी नहीं सोच सकती।

मैं भी जानती हूँ मेरे साथ कोई नहीं रह सकता। सूरज को थोड़ी देर तक देखा जा सकता है पर उसकी आंच में हमेशा कोई नहीं रह सकता। आग हूँ मैं क्यूंकि आग होना पड़ता है। मेरी जैसी हर लड़की को...

आपने ये भी कहा कि आप मुझे अंतिम अवसर दे रहे। जिस इंसान को आपने प्रेम नहीं दिया, जिसकी परवाह नहीं की उसको आपकी ये भीख नहीं चाहिए। मैं अपना जीवन जी लूँगी जिसे भी बन पड़ेगा। अच्छा ही जियूँगी क्यूंकि एक पूरा समाज इंतज़ार कर रहा है मेरे पतन का, चारित्रिक दुर्बलता का और मैं अपने अच्छे आचरण से इसकी आँखों में मिर्च झोंकने का!!

वीरों से खाली धरती

हे ईश्वर

दुनिया में महामारी का आतंक तो आज देखने को मिल रहा है और हजारों जानें भी जा रही हैं। पर इन सब जानों में कुछ ऐसी जानें भी हैं जो अकारण ही स्वेच्छा से मौत को गले लगाए जा रही हैं। आज फिर एक जान गई है भगवान, आज फिर किसी के घर का दिया बुझ गया। क्यूँ? हँसते बोलते, मुस्कुराते रोज़ मिलने वाले लोग अचानक एक दिन ठंडे मुर्दा जिस्मों में बदल जाते हैं। पता चलता है तो विश्वास करना मुश्किल हो जाता है कि कोई ऐसा भी कर सकता था। बाहर चमक दमक में जीने वाले अंदर से कितने खोखले हो चुके हैं भगवान?

सहनशीलता, जुझारूपन और जिजीविषा कहीं देखने को ही नहीं मिलती अब। इन आत्महत्याओं के कारण खोजने जाओ तो बड़ी निराशा होती है भगवान। जान की कीमत इतनी कम है इस संसार में? कभी महंगा फोन तो कभी घंटों खेलने की आज़ादी। कभी कर्ज़ का बोझ तो कभी प्रेम में निराशा या धोखाधड़ी। इंसान का इंसान पर तो विश्वास कभी का हट चुका था। अब तो वो अपने आप पर भी भरोसा करना भूल चुका है। मुझे याद आता है कुछ समय पहले मैं भी कितनी शिद्दत से मर जाना चाहती थी। पर आपने उबार लिया। आज वो स्थितियाँ नहीं हैं उतनी विकट। सब ठीक हो रहा है और हो भी जाएगा। एक आखिरी चोट और जो मुझे सहनी है उसके लिए खुद को तैयार कर रही हूँ मैं। कहा था उन्होंने भी भगवान मिल रहे हैं तुम्हें तो इंसान की क्या ज़रूरत?

सही है। अपनी कमजोरी को छुपाने का बड़ा खूबसूरत बहाना खोजा उन्होंने। ईश्वर आप क्यूँ लेके आते हैं ऐसे इंसान मेरे जीवन में? अब अगर वो दूरी बना भी लें तो क्या मैं भूल सकती हूँ उनको? क्यूँ पुरुष को ऐसा लगता है कि कुछ दूर साथ चल कर अचानक हाथ छोड़ देना एक स्वस्थ परंपरा है या सहज क्रम है जीवन का। जीवन का सहज क्रम तो वो होता कि हम एक साथ हमारे सपने पूरे कर रहे होते। अपनी खुद की आँखों से देख रहे होते अपनी सारी मेहनत साकार होते। वो सब तो छोड़ो, आज तो वो मुझे किसी कोशिश का हिस्सा भी नहीं बनाना चाहते। वो इतने कब दूर हो गए मुझसे भगवान? मैं कबसे उनके लिए इतनी पराई हो गई? जानती हूँ अगर वो जानते तो यही कहते इसकी वजह भी तुम ही हो। हूँ तो!

जो इंसान हमेशा मेरा साथ नहीं दे सकता, दुनिया के सामने, समाज के सामने मुझे अपना नहीं सकता उसको अपने प्यार का एहसास दिला के क्या करूंगी मैं? सोचने दो उसे कि मैं उसे बुरा समझती हूँ, उसकी कदर और इज्ज़त नहीं करती। उस पर शक़ करती हूँ। क्यूँ बताऊँ मैं उसे कि आज भी उसी के लिए जीती हूँ मैं? क्यूँ बताऊँ कि उसको एक नज़र देखने के लिए कितना तरसा करती हूँ? कितनी निराशा होती है मुझे जब वो मुझे मिलने बुला कर नहीं आता और किसी और को भेज देता है। जिसे वो भेजता है वो भी हमारी आँखों का तारा ही है पर ये भी क्यूँ बताऊँ मैं उसे? नहीं बताना मुझे उसे कुछ भी। पर जब भी वो मुझे कुछ करने को कहता है मैं न नहीं करना चाहती, न कभी करूंगी जब तक मेरा बस चले। एक बार एक बात मेरे खिलाफ क्या चली गई, मुझे उसका एहसास दिलाने का कोई अवसर नहीं छोडते हैं वो।

आँखों पर औरों की राय का पर्दा चढ़ा के जब वो मुझसे सवाल जवाब करते  हैं, कुछ बोलने का मन नहीं करता। फिर भी आज उनको आड़े हाथों लिया मैंने। मैं नहीं दिखाऊँगी उनको सही रास्ता तो कौन दिखाएगा भगवान? इसलिए वो मेरी सुने न सुने, मैं हमेशा उसको सही बात ही बोलूँगी। दुनिया उस पर हंस सकती है पर उस दुनिया को उस पर हंसने का मौका दिया तो खुद को कभी नहीं माफ करूंगी।

वेश्या हो तुम, पुरुष!!

हे ईश्वर

इतनी सारी कहानियाँ पढ़ीं मैंने जिसमें सुंदर, सशक्त, आत्मनिर्भर स्त्री का प्यार के नाम पर शोषण किया जाता है। शारीरिक संबंध स्थापित करके उसे नीचा दिखाया जाता है। उसकी संपत्ति, उसके सोच विचार, स्वतन्त्रता का हनन करके उस पर एकाधिकार जताया जाता है। पर ये सब करने वाला पुरुष चाहे उसका पति हो, प्रेमी या दोस्त... कभी स्त्री स्वतन्त्रता, कभी यौन स्वच्छंदता के नाम पर, स्त्री का जी भर कर फायदा उठाते और फिर उसे तड़पने के लिए छोड़ देते। स्त्री जो घर में शोषित और कुंठित होती है तो घर से बाहर कदम निकालती है। अपनी जगह बनाती है, अपना संघर्ष करती है। उसी संघर्ष से जब उसे कुछ प्राप्त हो जाता है या होने की संभावना होती है तो आ जाते हो लार टपकाते हुए। उसके प्राप्य में हिस्सा बंटाने। जब तक सफल नहीं है तब तक स्त्री के लिए तुम्हारे मन में सम्मान नहीं। जब वो सफल हो जाती है तब भी उसकी सफलता को, उसकी मेहनत को अवसरवादिता बताते हो। उसके संघर्ष का मज़ाक उड़ाते हो। तुम ही थे न जिसने बचपन में मुझे समझाया था ‘ससुराल में लात जूते खाओगी तो औकात समझ आएगी’ वो जो आज भी मेरे आत्मसम्मान को घमंड कहता है।  कहा करते थे ‘ज़िंदगी भर तुम कॉल सेंटर में सड़ोगी, तुम उसी के लायक हो’ तुम ही थे न जिसने कहा त ‘तुम तो शायद टाटा नैनो के आगे कभी सोच भी नहीं पाओगी’ या क्या इतना ही आसान है सरकारी नौकरी पाना। जितना पैसा इन सब फॉर्म भरने में बरबाद करती हो उतना तुम्हें बचा के रखना चाहिए। मेरे उज्ज्वल भविष्य से तुम्हें 1000-500 की बचत ज़्यादा ज़रूरी लगती थी। शायद मन ही मन सोचते थे मुझमें ऐसा कोई इम्तेहान पास करने की क्षमता ही नहीं है। 

आज मेरी जिंदगी को देखते हो तो रश्क करते हो न! जवाब तुम्हें मैंने नहीं, मेरे परमात्मा ने दिया। जब मैंने शादी और अपने कैरियर में से कैरियर को चुन लिया। मुझे लात जूते मार कर मेरी औकात दिखाने के सभी विकल्प उसी दिन जड़ से खत्म हो गए थे। जब मेरी ऊंची नौकरी के चलते तुमने एक दिन झल्ला के कह दिया था तुम पैसों के पीछे भागने वाली और दिखावेबाज़ हो। जब मेरी चमकती हुई खूबसूरत सी होंडा सिटी देख कर तुमने अफवाहें उड़ाई थीं ‘इतनी महंगी गाड़ी उससे संभल नहीं रही है, बेचना चाहती है’ ऐसा भी नहीं है कि मैंने तुम्हे अपनी सफलता में हिस्सेदार नहीं बनाना चाहा। अपने घर परिवार का तो मेरा भी सपना था कभी। पर तुम मेरे जीवन में चोर दरवाज़े से ही आते आए हो सदा। सामने से आने का तुम्हारे अंदर साहस नहीं है। थाम सकते हो समाज और परिवार के सामने मेरा हाथ? नहीं न! लेकिन फिर भी मेरे जीवन पर तुम्हें एकाधिकार चाहिए। मैंने शादी से इंकार कर दिया तो तुम आज भी मेरे लिए इंतज़ार करने का दावा करते हो। पर सच्चाई ये है कि तुम्हारी असलियत वैसे ही समझ आ जाती है। याद है मैं कहा करती थी ‘I don’t want to be the man in the relationship. मर्द मर्द के जैसा ही अच्छा लगता है, औरत नहीं’ मेरे स्त्रियोचित गुण सहेज कर रखना चाहती थी  मैं हमेशा। पर तुमने और तुम्हारे समाज ने मुझे मर्दानी बना दिया है। इसलिए तुम्हारा दाम देकर तुम्हारा उपभोग करना भी मेरा अधिकार है जो मैंने अर्जित किया है। पर मैं उसमें भी हमेशा छली जाती हूँ। प्रेम, समर्पण और एकनिष्ठा से तुम्हारे साथ अपना सब कुछ बांटती हूँ। तेरा और मेरा का फर्क नहीं करती कभी। पर तुम... तुम ऐसे नहीं हो। तुम्हें अधिकार चाहिए पर कर्तव्य तुमसे निभाए नहीं जाते। जब भी कभी कहूँ तो कहते हो तुम तो आत्मनिर्भर हो तुम्हें सहारे की क्या ज़रूरत। दूसरी स्त्रियों के प्रति अतिशय सुरक्षा का तुम्हारा भाव मुझे बड़ा ही आकर्षक लगा था। सोचा था जब अजनबी स्त्रियों के लिए तुम्हारे मन में संरक्षण की इतनी उत्कट भावना है, तो अपनी प्रेयसी के लिए तुम कितना करोगे। पर नहीं! मेरे साथ आकर रात के अंधेरे में तुमने मुझे अकेला छोड़ दिया है। मैं वो स्त्री ही नहीं जो सुरक्षा मांग या चाह सकती है, क्या यही सोचते हो तुम मेरे बारे में? 

हर स्त्री चाहे जितनी भी सशक्त हो, प्रेम चाहती है, संरक्षण की इच्छा रखती है। लेकिन तुम वेश्या हो पुरुष, अवसरवादी और धूर्त! तुम दाम लेकर ही सुख दे सकते हो, वो भी क्षणिक। चिरस्थाई तो सिर्फ मेरा अकेलापन ही है। ये कटु सत्य कभी बदलने वाला नहीं।

Saturday, 5 September 2020

गलती मेरी है II

हे ईश्वर

आज तक मैंने हमेशा आपसे उनकी शिकायतें की हैं। बताया है कि वो मुझे कितना सताते हैं। मुझे किस कदर परेशान करते हैं। कितनी बार उनके कारण मैंने आँसू बहाए हैं। कितनी बार किस किस तरह से उन्होंने सताया है मुझे। लेकिन आज मैं आपसे माफी मांगना चाहती हूँ। आज मैंने उनको अपशब्द कहे। मन करता है ऐसी ज़ुबान कट क्यूँ नहीं जाती जिससे मैंने उनके लिए ऐसे अपशब्द बोले। क्यूँ भगवान? आप तो जानते थे कि एक क्षण के आवेश के लिए मैं पूरे जीवन खुद को क्षमा नहीं कर सकूँगी। फिर ऐसा अवसर आपने मेरे जीवन में आने क्यूँ दिया?

मैं क्यूँ उनसे नहीं कह पाती कि मुझे बहुत कष्ट होता है। जब मेरी ही आँखों के सामने वो किसी और पर पर मुझसे जादे विश्वास करते हैं। जब उनकी आँखों में किसी और की उपलब्धियों के लिए प्रशंसा का भाव देखती हूँ। उनकी नज़र में मैंने कोई सफलता अर्जित ही नहीं की। आरक्षण की बैसाखी और मेरा प्रबल भाग्य... यही दो कारण हैं कि मैं आज यहाँ हूँ। कैसे एहसास दिलाऊँ उन्हें यहाँ तक पहुँचने में मेरे पाँव में किस कदर छाले पड़े हैं!

वो धीरे धीरे मुझसे दूर होते चले गए और मैं उनको रोक भी नहीं सकती। मैं हार मान चुकी थी भगवान। स्वीकार कर लिया था कि मैं उनके भविष्य का हिस्सा नहीं हूँ। फिर मुझे क्या हक़ था उन पर और उनके आचरण पर इस तरह सवाल उठाने का? बोलिए न? आपने क्यूँ मुझे ये सब कहने दिया? जवाब क्यूँ नहीं देते?

आपको बहुत अच्छे से पता था न कि मुझ पर चाहे जितनी उँगलियाँ उठा ले वो, मेरा सिर सिर्फ इसलिए ऊंचा रहता है क्यूंकि मैं उनको एकनिष्ठ प्यार करती हूँ। सच्चे मन से उनकी खुशी के लिए, सफलता के लिए आपके आगे हाथ जोड़ा करती हूँ। अब किस मुंह से उनके सामने जाऊँगी? कैसे आँखें मिलाऊँगी उनसे? जिंदगी भर के लिए उनके आगे मेरा सिर झुका दिया आपने।

वैसे ही पिछले साल जो कुछ भी हुआ उससे किसी तरह धीरे धीरे बाहर आने लगे थे हम। सोचने लगे थे कि शायद उनको कभी न कभी एहसास होगा कि गलती मेरी नहीं है। उनके ही नहीं मेरे साथ भी धोखा ही हुआ है। लेकिन नहीं! आपकी दुनिया में मेरे लिए रत्ती भर भी सुकून नहीं, न्याय नहीं।

वो मेरा हाथ इतनी बेदर्दी से छोड़ कर भी कितने सुकून से रहते हैं और मैं? एक गलती करके ऐसी मरी जा रही हूँ। कहाँ है वो चालाकी जिसका वो मुझ पर हमेशा आरोप लगाते रहते हैं?

मुझे तुम्हारी इस दुनिया में अब और नहीं रहना है भगवान। मैं इसके जैसी बिलकुल नहीं हूँ। अपनी छोटी से छोटी गलती के लिए मैंने अपने आप को न जाने कितनी बड़ी बड़ी सजाएँ दे रखी हैं। इस गलती के लिए कैसा प्रायश्चित करूँ? एक तो दिशा दिखा दो। प्लीज भगवान। आपके अलावा मेरे बारे में सोचने वाला कोई नहीं। मुझे और कोई नहीं समझ सकता। प्लीज़ भगवान, उससे कह दो मुझे माफ कर दे। एक बार फिर से मुझे प्यार से देखे, एक बार और मुझ पर विश्वास करे। एक बार तो महसूस करे मेरी तकलीफ़ें। सिर्फ एक बार भगवान! प्लीज़...   

Thursday, 13 August 2020

देर है और अंधेर भी...

 हे ईश्वर

कहते हैं आपके घर में देर है अंधेर नहीं। पर वो तो आपका घर है न, हम जैसे लोग तो इस दुनिया में रहते हैं और इस दुनिया में देर और अंधेर दोनों होती है। ईश्वर मैं जब भी उनसे कोई भी बात कहने की कोशिश करती हूँ वो सुनते ही नहीं। कहते हैं तुम्हारे पास होगा दुनिया जहां का वक़्त तो तुम करा करो खाली पीली बकवास। मेरी सारी बातें, सारी चिंताएँ सब कुछ उनके लिए बस बकवास है। वो करते ही क्यूँ हैं मेरी और अपनी तुलना। उनके साथ दुनिया जहां के लोग हैं, मैं तो अकेली हूँ। हाँ भगवान तुम्हारी बनाई इस दुनिया में मैं बिलकुल अकेली हूँ।

पिछले कुछ दिनों में ये बात तो मुझे बहुत अच्छी तरह से समझ आ गई। खुशी में चाहे मेरे साथ सारी दुनिया हो, अपनी तकलीफ़ों में मैं बिलकुल अकेली हूँ, कोई नहीं है मेरे साथ। मैंने हर किसी से मदद मांगी थी, प्यार, दोस्त, परिवार। पर किसी ने भी मेरा साथ नहीं दिया। सही या गलत लोग जानना ही नहीं चाहते। वो कहते हैं अगर मैं तुम्हारा साथ न दूँ तो तुम्हारा सब कुछ बिगड़ जाएगा। मेरे बिना कुछ नहीं कर पाओगी तुम। क्या सच में उनके बिना मैं कुछ नहीं हूँ?

आदमी बड़ी आसानी से औरत की किसी भी उपलब्धि का श्रेय खुद ले लेता है। मैं आज एक सफल, आत्मविश्वासी और सुशिक्षित इंसान हूँ पर ये सब मुझे क्या किस्मत या किसी की मेहरबानी से मिला है? आपके अलावा किसी को किसी पर दया करने का कोई अधिकार नहीं है भगवान। दया का अधिकार सिर्फ आपका है। फिर आपकी दुनिया क्यूँ मुझ पर दया करने का झूठ मूठ का दावा करती है?

वो हमेशा कहते हैं कि भगवान पर छोड़ देता हूँ मैं अपने अच्छे बुरे काम। मैं भी यही कह रही हूँ। अगर आप सब जानते हैं तो खामोश क्यूँ हैं इतने दिनों से? क्यूँ इस दुनिया को दे रखा है आपने मुझे इतना सताने का अधिकार। वो कहते हैं ये सब पूर्व जामन के बुरे कर्मों का फल है। मैंने ऐसे कौन से बुरे कर्म किए हैं भगवान? प्रायश्चित करने का मौका दो न, और कितनी सज़ा दोगे?

Friday, 7 August 2020

झूठे इल्ज़ाम मेरी जान....II

 हे ईश्वर

क्या मैं वही हूँ जो वो कहते हैं? उनकी सोच को कुछ हुआ है या मैं ही खुद को गलत समझती हूँ। जब मैं अपने बारे में सोचती हूँ तो कुछ और ही तस्वीर बनती है और जब मैं उनकी नज़र से खुद को देखने लगती हूँ तो मैं खुद को पहचान भी नहीं पाती। एक आत्मविश्वासी, आत्मनिर्भर और सशक्त इंसान जो अपने घर बाहर के काम खुद ही कर लिया करती है उनकी नज़र में हर बात के लिए उन पर ही निर्भर है। एक इंसान जो कभी कभी बिना कुछ बोले, बिना किसी से मिले पूरा पूरा दिन बिता देती है वो उनके लिए एक ऐसी इंसान है जो सारा दिन बेवजह उनसे घंटों बातें करना चाहती है। एक लड़की जो अपने घर से कदम बाहर निकालना ही नहीं चाहती उनके लिए वो इंसान है जो सारा सारा दिन बाज़ारों की ख़ाक छानना पसंद करती है।

एक इंसान जो अपने घर को सजाना संवारना चाहती है और उस पर अपनी ही छाप देखना चाहती है उनके लिए एक ऐसी इंसान है जो दूसरों के घर में झांक झांक कर अपने घर के लिए वैसी ही चीज़ें जुटाती है। एक इंसान जो बाहरी चमक दमक की अपेक्षा हमेशा किसी के अंदर की सच्चाई और सरलता की मुरीद है उनके लिए एक ऐसी इंसान है जो दिखावे में विश्वास रखती है। एक इंसान जिसके पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है उनके लिए ऐसी इंसान है जिसकी बेशर्मी की कोई सीमा नहीं। एक इंसान जिसे दुनिया का दोगलापन छू भी नहीं पाया है उनके लिए एक ऐसी इंसान है जिसके दो क्या न जाने कितने चेहरे हैं।

एक इंसान जिसके जीवन में आपकी भक्ति और उनके प्यार के अलावा किसी और सोच के लिए कोई जगह नहीं है उनके लिए एक ऐसी इंसान है जो उनके पीठ पीछे न जाने कितने लोगों के साथ नज़दीकियाँ रखे हुए है। एक इंसान जिसने अथक मेहनत से अपने लक्ष्य को पाया है वो उनके लिए सिर्फ एक किस्मत की धनी है जिसको ये मौका प्लेट में सजा कर दिया गया था। जैसे मुझे तो कभी कुछ करना ही नहीं पड़ा अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए। एक कर्मठ और समर्पित इंसान उनके लिए कामचोर है। एक इंसान जिसका चरित्र गंगा की तरह पवित्र है उनकी नज़रों में चरित्रहीन है।

एक इंसान जिसने अपने जीवन में न जाने कितना संघर्ष बिना किसी शिकायत के किया है उनके लिए एक ऐसी इंसान है जो ज़रा सी मुसीबत से घबरा जाती है। एक इंसान जो उनके साथ ज़ुबान लड़ाने में ज़रा भी रुचि नहीं रखती उनके लिए एक ऐसी इंसान है जिसके पास उनकी बातों का कोई जवाब नहीं है। एक इंसान जो उनसे बेहद प्यार करती है इसलिए उनके आगे अपना सर झुका देती है, उनके लिए एक ऐसी इंसान है जिसमें ज़रा भी आत्मसम्मान नहीं है। एक इंसान जिसने अपनी आत्मनिर्भरता से समझौता करने की जगह स्वेच्छा से ये एकाकी जीवन चुना है उनके लिए वो इंसान है जो किसी की इच्छा अनिच्छा की परवाह किए बिना खुद को उस पर थोप सकती है।

एक इंसान जिसने औरों की खुशी को अपना फर्ज़ समझा और अपनी खुशियों की परवाह नहीं की उसे वो स्वार्थी समझते हैं। एक इंसान जिसकी जिंदगी में उनके सिवा किसी की परछाई की भी संभावना नहीं है वो उसे पुंश्चली समझते हैं। एक इंसान जो अपने विरोधियों का भी हमेशा भला चाहती है उसे वो चाटुकार समझते हैं। भगवान मुझे सब समझ आता है पर ये नहीं कि वो मुझे इतना गलत क्यूँ समझते हैं? क्या इतना ही जानते हैं वो मुझे? क्यूँ भगवान? आपने ऐसा क्यूँ किया है? अगर मेरे जीवन में किसी को भेजना ही था तो किसी ऐसे को क्यूँ नहीं भेजा जिसे मेरी अच्छाइयाँ दिखती हों? मैं वैसी बिलकुल भी नहीं हूँ जैसा वो समझते हैं। लेकिन फिर भी भगवान, वो ये सब कहते हैं, इस पर विश्वास भी करते हैं। वो भी दूसरों के कहने पर। और आप उनको ऐसा करते देख कर भी मौन हैं। मेरे जीवन की डोर आपके ही हाथों में है ईश्वर। आप जिस तरफ मोड देंगे उस तरफ मैं ज़रूर जाऊँगी। बिना कोई सवाल किए। लेकिन आपने क्यूँ ऐसे कायर और कमजोर पुरुष बनाए हैं जिनमें मेरा हाथ थामने का साहस नहीं तो मेरा आत्मविश्वास तोड़ कर निकल जाते हैं।

मुझे पता है कुछ समझदार लोग ये ज़रूर कहेंगे कि किसी के कहने से तुम्हें इतना फर्क क्यूँ पड़ता है। पर भगवान आप तो जानते हैं न, पूरी दुनिया चाहे जो समझे मुझे फर्क नहीं पड़ता। पर वो मुझे क्या समझते हैं उससे मुझे बहुत फर्क पड़ता है। दूसरी बात किसी भी इंसान को भगवान की बनाई किसी रचना पर सवाल करने का कोई अधिकार नहीं। मैं जो भी हूँ आपकी बनाई हुई हूँ। मुझ पर सवाल उठाने का हक़ सिर्फ आपका है।

मेरा दोस्त बनकर जिस इंसान ने वो सब भी समझ लिया था जो मैं कहती ही नहीं थी आज वही इंसान मेरे बोले हुए शब्दों का इतना गलत मतलब कैसे निकाल सकता है? क्यूँ भगवान? आप क्यूँ करने दे रहे हैं उसे ऐसा? अगर वो ये सोचता है कि अपने बुरे व्यवहार से वो मेरे मन में अपने लिए नफरत जगा दे ताकि उसे छोड़ कर आगे बढ़ना मेरे लिए आसान हो तो भी... वो नफरत भी मेरे मन में उसके लिए नहीं अपने लिए ही होगी। क्या वो ये बात नहीं जानता? इंसान ठोकर खाकर उठ सकता है पर उसका प्यार अगर उसे नीचा दिखाए तो अपनी ही नज़र में गिर जाता है वो। ऐसे गिरा हुआ इंसान कभी उठ नहीं पाता। बहुत बार उन्होने ऐसी बातें की हैं जिनको सुन कर ज़ार ज़ार रोए हैं हम। क्यूँ रुला रहा है कोई मुझे इतना? जवाब क्यूँ नहीं देते हैं आप? बताइये न?

Saturday, 18 July 2020

तू प्यार है किसी और का...


मेरे ईश्वर

मुझे पता था ये साल बेहद मुश्किल है। पर क्या सचमुच मेरा सबसे बड़ा डर सच हो चुका है? क्या सचमुच वो किसी और के हो चुके हैं? कितनी आसानी से एक casual बातचीत में उन्होंने ज़िक्र कर दिया। एक कहानी की एक पंक्ति बार बार आँखों के आगे आ रही है विरेन ने पिछले दिनों किसी लड़की से ब्याह कर लिया था। क्या इतना ही सरल था उनके लिए मेरे साथ ऐसा करना? न जाने कितनी बार उनसे कहा था कि मुझे पहले से बता देना। क्या सच में मेरी पीठ पीछे उन्होंने ऐसा किया है? इतना कच्चा था क्या मेरा प्यार कि उनके परिवार की खुशी के आड़े आ जाता?

अब क्या करूँ? किसी से कहूँगी तो वही सब सुनने मिलेगा... उसे भूल जाओ, एक नई शुरुआत करो। कुछ तो चोरी छुपे राहत की सांस भी लेंगे मैं जानती हूँ। वही सब होगा न जो पिछली बार हुआ था। वो खुश है तुम्हारे बिना तुम भी अब अपने बारे में सोचो।

मैं क्या सोचूँ भगवान? जिस इंसान को मैंने इसलिए अकेला छोड़ा था कि वो बिना किसी तनाव या दबाव के अपना भविष्य बना ले उसके भविष्य में अब मेरे लिए कोई जगह ही नहीं! विश्वास तो नहीं होता और किसी और से सच पता क्या करना? अगर ये सच नहीं भी है तो भी कभी न कभी तो सच होने वाला है। मन को यही समझा लेती हूँ। मन करता है हाथ में बंधा ये मन्नत का धागा तोड़ दूँ या उसे दे दूँ जाकर जिसके साथ वो अब है। अब तो उसका ही हक़ है न इस पर।

उनके लिए मांगी सारी मन्नतों का क्या होगा? उस वादे का क्या होगा जो उन्होंने मुझसे किया था। सबसे पहले तुम्हें बताऊंगा, सबसे पहले तुम्हें लेके जाऊंगा, हमेशा साथ रखूँगा। अब किस हक़ से रहूँगी उनके साथ?

अगर ये बात सच है तो उनको शर्म आनी चाहिए। शर्म कि जिसने उन पर आँखें बंद कर के विश्वास किया उसके साथ ऐसा करते उन्होंने एक बार भी नहीं सोचा। उन्हें ये बात नहीं छुपानी चाहिए थी। होने से पहले अगर बता देते तो शायद मेरी नज़र में उनकी इज्ज़त और बढ़ जाती।

अगर झूठ है तो फिर मैं जिंदगी भर उन्हें माफ नहीं कर सकूँगी। इतना दुख तो मुझे तब भी नहीं हुआ था जब उन्होंने रात के दो बजे मुझे सड़क पर अकेला छोड़ दिया था या जब मेरी मदद करने का वादा करके भी पीछे हट गए थे। मेरी इतनी नाज़ुक स्थिति में भी उनको मेरे साथ ये घटिया गेम खेलना उचित लगा।

क्या हो गया है इस इंसान को ईश्वर? ये वही है न जिसने कभी मुझे कभी hurt न करने का वादा किया था। खैर ये कोई पहली बार तो नहीं कि कोई अपना किया हर वादा भूल गया है। जिस तरह वो सारी बातें भूल गए भगवान उसी तरह उनको अब मुझे भी भूल जाना चाहिए। है न?  

PS: अच्छा हुआ वो सब सच नहीं था। 

Friday, 19 June 2020

कैसे कहें अलविदा....?

हे ईश्वर

मैंने अपनी जिंदगी में बहुत सा मुश्किल वक़्त देखा है, ये भी उसमें से एक है। इसके पहले भी तो बहुत बार बहुत सी  चीज़ें हुई हैं जब लगता था इस दर्द को बर्दाश्त कैसे करें? क्या करें कि इसकी टीस कम हो? क्या करूँ कि सांस ले सकूँ? थोड़े वक़्त के लिए मुझे सुकून मिलता है पर वो वक़्त बहुत थोड़ा होता है भगवान। कुछ ही दिन बाद फिर से सब कुछ वैसा ही हो जाता है। जिस इंसान को आप मेरी जिंदगी में ये कह कर लाए थे कि ये मेरे हर दर्द की दवा है, उसी ने मुझे इतना बेहिसाब दर्द दिया है जिसका कोई इलाज नहीं है।

ऐसा आपने मेरे साथ क्यूँ किया भगवान? वो कहते हैं कि सब अपने कर्मों का फल भुगतते हैं, ऐसा कौन सा बुरा कर्म है मेरा जो बार बार मुझे इतना कष्ट दे रहा है? एक बार मुझे मेरी वो गलती तो दिखाइए जिसकी ये सज़ा है? आप क्यूँ कुछ नहीं बोलते?

देखो न, आपकी दुनिया क्या क्या कहती है मेरे बारे में! क्यूँ इनकी ज़ुबान बंद नहीं करते आप? आपको तो पता है न सच क्या है? भगवान मैं उसको ऐसे नहीं देख सकती। उसको तो इस कष्ट से मुक्त रखो। अगर मैं ही उसकी जिंदगी का ग्रहण हूँ तो दूर कर दो मुझे। मैं जी लूँगी, पर इस वक़्त उसको कष्ट में देख कर मुझे जो तकलीफ होती है उसकी कोई तो दवा करो।

न जाने कब से आप चुप हैं और मैं जवाब मांगते मांगते थक गई। सब कहते हैं पाप की लंका भले सोने की हो, एक दिन राख हो जाती है। पर यहाँ तो वो फल फूल रही है। अत्याचारी मौज में हैं और सदाचारी किसी कोने में किसी तरह अपने दिन काट रहे हैं।

मेरे बुरे दिन कब खत्म होंगे भगवान? आप बताते क्यूँ नहीं? कई बार पूछा है मैंने आपसे। प्लीज भगवान, अपना मौन तोड़िए और मुझे बताइये मैं क्या करूँ? मैं थक गई हूँ भगवान, मुझे अब आराम चाहिए।

 


Thursday, 18 June 2020

अभी और भुगतोगी!

हे ईश्वर

आज एक इंसान ने अपनी जान क्या ले ली, न जाने कितने लोग उसे support करने उतर आए, पर जब वो ज़िंदा था क्या कोई भी था उसका हाथ थामने वाला? नहीं क्यूंकि लोग सिर्फ fair weather friends होते हैं। जब आपको कोई दिक्कत हो या आप किसी से कुछ कहना चाहें तो कोई नहीं होता सुनने वाला। फिर यही लोग शमशान घाट में आपकी चिता के सामने खड़े होकर कहते हैं हमसे बात की होती! हमारे पास आए होते...पर जब जीवित रहते आप इनके पास जाते हो तब मेरी तरह आपको भी फोन स्विच ऑफ मिलेंगे, contact ब्लॉक मिलेगा। ऊपर से ये भी सुनने को मिलेगा कि आप फालतू हो जो इतना सोचते हो। कुल मिलाकर आपकी गलती कुछ इस तरह निकाली जाएगी कि आप अपने आप को सज़ा देने पर मजबूर हो जाओगे।

वैसे एक बात बताइए भगवान? आपने इस इंसान को मेरी जिंदगी में क्या सिर्फ इसलिए रखा है कि ये मुझे तरह तरह के श्राप दे सके। सुबह सुबह उठ कर क्या यही सुनना चाहते हैं हम? वो भी उसके मुंह से? जितना तुमने भुगता है वो कुछ भी नहीं है। अभी और भुगतोगी... कोई तुम्हारा साथ नहीं देगा। अकेली ही रहोगी। मैं कब अकेली नहीं थी भगवान? आप बताइए?

कुछ लोगों को प्यार में तोहफे मिलते हैं, अच्छी बातें मिलती हैं, compliments मिलते हैं। मुझे मिलती हैं गालियां! फिर भी मैं प्यार करती हूँ, क्यूँ? आपकी ये दुनिया जो मुझसे इतनी नफरत करती है मुझे अकेले क्यूँ नहीं छोड़ देती? प्यार सिर्फ तब मिलता है जब किसी का मतलब पूरा होता हो। जहां मैं किसी के काम न आ सकूँ वहाँ मुझे प्यार तो मिलने से रहा, बददुआएं अलग मिलती हैं।

पता नहीं कितनों की बददुआएं लेकर भी मैं बेशर्मों की तरह जिए जा रही हूँ। क्यूँ भगवान? आप क्यूँ किसी को इतना बोलने का हक़ दे रहे हैं? बताइए न? आप कभी कुछ नहीं बोलते। मैं कभी दुआ मांगती हूँ, कभी भीख और कभी कुछ भी नहीं और आप बस चुप रहते हैं। क्यूँ भगवान? आपको अब तो कुछ करना ही पड़ेगा, कुछ तो! या तो मुझे मेरी गलती बता दीजिए या मुझे सज़ा देना बंद कर दीजिए। प्लीज़...


Tuesday, 2 June 2020

कटघरा

हे ईश्वर

आपने फिर से रच दी एक अग्निपरीक्षा मेरे लिए? क्यूँ? मन नहीं भरा क्या अभी तक? बताइए? उनकी वो अजीब अजीब सी बातें सुन कर मन करता है किसी दीवार में चुन दूँ अपने आप को। खत्म कर दूँ खुद को... जान ले लूँ मैं अपनी। ताकि फिर कभी कोई मेरे चरित्र को किसी कटघरे में न खड़ा कर सके। ताकि फिर कभी किसी की आँखों में अपने लिए संशय न देखूँ। भगवान विश्वास इतना नाज़ुक होता है न... पर स्त्री के लिए विश्वास तेल से भरा वो कटोरा होता है जिसे लिए हुए उसे पूरी दुनिया का चक्कर लगाना होता है। एक बूंद भी छलका तो विश्वास खत्म...भगवान बताओ न तुमने मुझे ये जन्म ही क्यूँ दिया? किसलिए? ताकि मैं जिंदगी भर दूसरों के हाथों अपमानित होती रहूँ? लोग मेरे बारे में मनचाही धारणा बनाते चलें और मैं उसका खंडन भी न कर सकूँ?

जिसने मेरे प्यार का, विश्वास का, अपनेपन का ज़रा भी मान नहीं रखा उसके लिए मैं जिंदगी भर बैठती भी तो क्यूँ? मैंने अपनी पूरी निष्ठा के साथ एक सपना देखा था। वो पूरा नहीं हुआ तो क्या मुझे दूसरा सपना देखने का कोई अधिकार नहीं? किसी विवाहित पुरुष के साथ मैं खुद को कैसे देख सकती हूँ? मेरी मर्यादा और संस्कार इतने तो कच्चे नहीं हैं न! पर एक बात कहूँ॥ उनकी आवाज़ और उनका ये लहजा मुझे बहुत चुभता है। वो कहते हैं ऐसा इसलिए होता है क्यूंकि इंसान को सच्चाई बुरी लगती है। पर मैं आपसे कहती हूँ ऐसा इसलिए होता है कि अपना मन और आत्मा देकर भी उनका विश्वास नहीं जीत पा रही मैं। परीक्षा देते देते थक सी गई हूँ।

क्या ही अच्छा होता कि ऐसा इंसान मेरी जिंदगी में कदम ही नहीं रखता जिसे मुझ पर विश्वास ही नहीं। जो मुझे चोर कहता भी है और मानता भी है। जो सोचता है कि वक़्त के साथ कुछ ऐसा उसके सामने आएगा जिससे वो कह सकेगा कि मैं ही गलत हूँ, दुश्चरित्र हूँ। पर मैं आपसे कहती हूँ मेरा सिर नहीं झुकने देना कभी। उसका मेरी जिंदगी में आना आपका फैसला था। उसकी मेरी जिंदगी में जगह और अहमियत दोनों आपने ही दिए। मैंने आपने दिए हुए को आपका आशीर्वाद समझ कर स्वीकारा है। मान, अपमान जो भी मिला सिर झुका के स्वीकार लिया। कभी प्रश्न नहीं किया आपके निर्णय पर। इसलिए भगवान गुजरते हुए वक़्त के साथ उसके इस झूठे सच को झुठलाना आपका ही काम है। आप ही मेरे साक्षी हैं, आप ही मेरी अदालत और आप ही मेरे गवाह।

झुठला दो उसके मन में बनी हर एक दुर्भावना। गलत साबित कर दो उसे। मैं चाहती हूँ कि एक दिन वो मुझ पर आँखें बंद करके विश्वास करे। मैं चाहती हूँ कि वक़्त के साथ आप उसे समझाओ कि मैं सही हूँ और मेरे माथे पर सत्य का केसर दमकता है, कपट की कालिख नहीं।


Wednesday, 27 May 2020

चुप नहीं रहूँगी...


हे ईश्वर

आज मेरे सोशल मीडिया अकाउंट पर संदेशों का आदान प्रदान कुछ जादे ही लंबा खिंच गया है। आज कोई फिर एक बार मेरा सिर झुकाने पर अड़ा हुआ है। ज़िद पकड़ रखी है मुझे गलत साबित करने की। पर नहीं भगवान, आज नहीं। आज न तो मैं चुप रहूँगी न ही हार मानूँगी। इसलिए किसी के हर तर्क का जवाब दिया है आज मैंने। बहुत आसान समझती है आपकी दुनिया मेरी ज़ुबान पर लगाम लगाना। पर इतना आसान भी नहीं है। भले ही मेरी आवाज़ दबाने के हजारों लाखों षड्यंत्र हों, मैं कभी हार नहीं मानूँगी। ये आर या पार की लड़ाई मैं ज़रूर लड़ूँगी।

मैंने इतना ही सवाल तो किया था प्यार हो या न हो हमें एक दूसरे का इस तरह तमाशा बनाने का क्या हक़ है’? पर मुझे कोई जवाब नहीं मिला। मेरे लिए उनके पास बस ये कडवे बोल हैं, चुनौतियाँ हैं और इनके ये जहरबुझे शब्द जिनकी जद में मैं ही नहीं मेरे अपने भी आ चुके हैं।

ईश्वर मैंने इनका क्या बिगाड़ा है? हजारों लाखों बार पूछा है मैंने आपसे ये सवाल। मैंने किसी का भी क्या बिगाड़ा है? आप ही क्यूँ नहीं जवाब दे देते? आपकी दुनिया मुझसे इतनी नफरत क्यूँ करती है? क्यूँ मेरी सफलता से इतना जलती है? हजारों लाखों लोगों की तरह मैंने भी तो केवल एक अच्छी जिंदगी की चाहत की थी। उस जिंदगी के लिए बेहिसाब मेहनत भी की है, आज भी कर रही हूँ। किसी से कुछ नहीं मांगा था मैंने। मुझे रास्ता दिखाने वाला भी तो कोई नहीं था। आज जब अपने आप, अपनी मेहनत से मैंने कुछ हासिल किया तो मुझे आराम क्यूँ नहीं करने देते आपके लोग?

कैरियर और जीवनसाथी इंसान की जिंदगी के दो अहम फैसले होते हैं। मेरी जिंदगी में एक फैसला सही हुआ और एक... एक बार गलत हुआ तो होता ही चला गया। मैंने इतना ही तो सोचा था कि अब इस खोज पर एक बार में पूर्णविराम लगा ही देते हैं। खत्म ही कर देते हैं ऐसी उम्मीद को जो बार बार मुझे नाउम्मीद कर देती है। पर नहीं इतनी आसानी से कैसे खत्म होगा सब कुछ? जब तक दुनिया के सामने मेरा तमाशा न बने, सारी दुनिया मुझ पर हँसे नहीं और जब तक मैं खून के आँसू न रो दूँ... कैसे चैन पड़ सकता है आपकी दुनिया को।

पहले तो रोना आया करता था पर अब गुस्सा आता है, बेहिसाब गुस्सा! देखें इस गुस्से की जद में कौन कौन आता है।

Sunday, 17 May 2020

किनारे मिलते नहीं....


हे ईश्वर

एक बार मैंने आपको कहानीकार कहा था, याद है? मेरी कहानी में फिर लिख दिया वही मोड़ आपने। वही तन्हा दिल, तन्हा सफर! क्यूँ? बताइये न? अच्छी नहीं लगती क्या मेरे होठों की हंसी? अधूरापन मेरी हर कहानी का वो मोड़ है जो कभी न कभी आता ही है। अब ये कहानी भी एक मोड़ से अधूरी ही रहेगी। आपकी बेटी हमेशा अकेली ही रहेगी। उम्मीद रखना ही छोड़ दिया है अब हमने भी। टूटेगी तो कौन संभालेगा हमें? सब तो मैंने तो पहले ही कहा था में व्यस्त रहेंगे, है न?
कोई बात नहीं। मैंने भी सोच लिया है, ये मेरी आखिरी कोशिश थी, अंतिम विकल्प। अब इसके आगे न कोई कोशिश, न विकल्प। अब होगी बस एक अंतहीन चुप्पी। उनको भी सिर्फ मेरा गुस्सा ही नज़र आता है। मेरे गुस्से के पीछे जो तकलीफ है वो तो किसी को दिखाई ही नहीं देती। शायद कभी नहीं नज़र आएगी।

आपकी दुनिया ने मुझे धोखे के सिवाय कभी कुछ नहीं दिया और मैं अब इससे कोई भी उम्मीद लगाना छोड़ चुकी हूँ। पर मेरे अपने क्यूँ ऐसा करते हैं? मुझे तकलीफ देकर उनको कौन सी खुशी मिल रही है? बताइये न? सब हैं फिर भी कभी कभी ऐसा लगता है इस दुनिया में मेरा आपके सिवा कोई नहीं है। भगवान कल वो कह रहे थे सब अपनी करनी का फल भोगते हैं। जो जैसा करता है उसे वैसा ही मिलता है। इसलिए मैं आपसे कह रही हूँ उन्होंने मेरे साथ जो भी किया है उसके लिए उन्हें माफ कर दीजिए। मैं नहीं चाहती वो भोगें अपनी करनी का फल। हर उस शख्स को माफ कर दीजिए आप जिसने मेरे साथ बुरा किया है और अब आप मुझे भी माफ कर दीजिए।

मैं थक गई हूँ। अब नहीं करना कोई हिसाब किताब किसी से। दुनिया बदलने वाली तो है नहीं। मैं भी उसके लिए खुद को क्यूँ बदल दूँ? इसलिए अब चाहे जो हो मैं चुपचाप रहना चाहती हूँ। अपनी इस दुनिया में जहां सिर्फ आप और मैं हैं। आपकी दुनिया और उसके किसी भी शख़्स से मुझे कुछ नहीं चाहिए... मैं प्यार चाहती थी वो मुझसे नफरत करते हैं। विश्वास जीतना चाहती थी उनका पर वो तो मुझ पर भरोसा करते ही नहीं। उनका साथ चाहती थी पर वो मुझसे बहुत दूर हैं और इस दूरी को पाटना उनके वश का रहा ही नहीं। मेरी किस्मत ही ऐसी है। मैं क्यूँ इसको बदलने चली थी? पता नहीं.... पर अब वापस लौटूँगी। अब कभी नहीं करूंगी कोई उम्मीद! नहीं चाहिए किसी का साथ....

Tuesday, 28 April 2020

मैं सीता माता नहीं हूँ!


मेरे ईश्वर

Lockdown के कारण आप तक पहुँचने के रास्ते बंद हो चुके हैं। मैं अपने आप को थोड़ा बेबस महसूस कर रही हूँ। इंतज़ार कर रही हूँ कि सब कुछ ठीक हो जाए और मुझे फिर से आप के पास आने का मौका मिले। न जाने क्यूँ ये मुसीबत हम पर आई है और न जाने क्यूँ हम ऐसे अकेले हैं। इस सब के बीच एक नये संकट ने रास्ता रोका है मेरा। भगवान, कोई भी लड़की कभी भी किसी आक्षेप का संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाती कभी। लोगों की अदालत बिना किसी अपराध उसे दोषी ठहरा ही देती है। जैसे अभी ठहरा दिया। अब मैं नहीं जानती क्या करूँ? कैसे समझाऊँ उन्हें कि मैं निर्दोष हूँ, निष्कलंक हूँ। भगवान, उनकी नश्तर जैसी कड़वी बातें एक बार फिर मेरा कलेजा चीर रही हैं और मैं कुछ नहीं कर पा रही। प्रेम, निष्ठा, समर्पण और वफादारी के बदले में यही मिला है आज मुझे।

उनका कहना है 10 लोग अगर कोई बात कहते हैं तो वो ज़रूर सच होगी। पर कैसे समझाऊँ? ये 10 लोग वही 10 लोग हैं जिनके पास अपने लगाए हुए आक्षेप का कोई आधार नहीं। वो तो केवल मेरी छवि खराब करके तमाशा देखना चाहते हैं। लेकिन अजीब लगता है जब उनके जैसा समझदार इंसान मुझे ऐसे कहता है। कितना मज़ा आ रहा होगा न लोगों को? है न?

पर आप चुप क्यूँ हैं? आप क्यूँ नहीं बोलते कि मैं सच्चरित्र हूँ, पवित्र हूँ! आपने ही दी थी न साक्षी तुसली रामायण पर हस्ताक्षर करके? फिर आज अपनी बेटी के लिए कुछ नहीं करेंगे? बोलिए? वो अगर मुझसे अलग होना भी चाहे तो मैं समझा लूँगी खुद को। लेकिन अपने पर ये झूठे आक्षेप लेकर सिर झुका कर जाना मुझे बिलकुल मंजूर नहीं। न उस युग में स्त्री के पास अपनी सच्चरित्रता का कोई सबूत था, न आज है। कोई बात नहीं भगवान। कभी न कभी उनको एहसास दिला देना कि मैं निर्दोष हूँ, पवित्र हूँ और मेरे मन में कोई कपट नहीं है।


Friday, 17 April 2020

मेरी मदद करो!


हे ईश्वर

मैं आपको किन शब्दों में शुक्रिया कहूँ? मैं जब भी निराश होती हूँ, आप मेरे लिए आशा की नई किरण बन कर आते हैं। आपने हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया है, मुझे हिम्मत दी है। आपके भरोसे मैंने पार की है अपने जीवन की कठिन से कठिन परीक्षा। लेकिन आज तक जो भी था मुझ तक सीमित था। आज मेरे कारण उनको कष्ट हुआ। मेरे कारण उनकी आँखों में नमी है। क्यूँ भगवान? जिस इंसान को मैं तेज़ धूप से भी बचा के रखना चाहती हूँ, उसे ही क्यूँ ऐसे कष्ट हुआ मेरे कारण? क्या मुझे प्यार करने वाले हर शख्स के लिए ऐसी ही कठिन चुनौतियाँ लिखीं हैं आपने?

उनकी गलती बस इतनी है कि वो मुझ पर विश्वास करते हैं। करना भी चाहिए। मैंने भी तो विश्वास ही किया था। है न? फिर मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ? क्यूँ इतनी नफरत करते हैं मुझसे लोग? बताइये न?

ईश्वर मैं आपकी बेटी हूँ। मैंने कभी आपके किसी भी निर्णय पर सवाल नहीं किए। पर अब नहीं जानती क्या करूँ? बताइये। आप तो जानते थे कि आगे चल के ऐसी ही चुनौतियाँ आने वाली हैं। इस तरह का कष्ट उनको देने से लाख दर्जे अच्छा होता अगर मैं ही थोड़ा सा अपमान सह लेती। आज जैसे हमारे रिश्ते पर आंच तो नहीं आई होती। बोलो भगवान?

आप हमेशा की तरह चुप बैठे हो और मैंने अपने आप को समझा लिया है। आगे चाहे जैसा भी कष्ट हो, जैसी भी पीड़ा हो, मैं चुपचाप सह लूँगी। मैं अभी भी अपने हक़ के लिए लड़ रही हूँ पर मेरा वो हौसला अब टूट चुका है, मैं भी टूट चुकी हूँ। भगवान उसकी बातें अभी भी मेरे कानों में चुभ रही हैं। बहुत डर लग रहा है।क्या सचमुच लोग मेरे बारे में ऐसा ही सोचते हैं?  

मुझे प्लीज सही रास्ता दिखा दो।

Sunday, 8 March 2020

महिला दिवस (!)


हे ईश्वर

# Save the tiger की तरह आज महिला दिवस की शुभकामनाएँ हवा में तैर रही हैं। लोग खुश हैं, नाच गा रहे हैं, महिलाओं को सम्मानित कर रहे हैं। पर एक बात बताइए? आज क्या सड़क पर बेखौफ चलेगी लड़कियां? क्या आज से भ्रूण हत्या बंद हो जाएगी? क्या अब किसी लड़की पर कोई तेज़ाब नहीं फेंकेगा? क्या अब किसी लड़की का बलात्कार नहीं होगा? क्या आज भी किसी लड़की को नहीं सताया गया होगा? क्या आज दहेज के लिए किसी लड़की की बलि नहीं चढ़ी होगी? क्या आज दफ्तर के किसी कोने में किसी लड़की ने नहीं झेला होगा अनचाहा स्पर्श? मैं जानती हूँ इनमें से हर एक सवाल का जवाब नहीं है। ऐसा हो ही नहीं सकता कि किसी भी दिन महिलाओं के दमन और शोषण का ये सिलसिला रुक जाए। ऐसा कभी नहीं हो सकता।

मैं जानती हूँ ईश्वर!

फिर किसलिए मैं खुशी मनाऊँ? क्यूँ नाचूँ? बोलो न?

इसलिए मैं आज के दिन आपसे बोल रही हूँ अपनी सारी शिकायतें। मैं जानती हूँ लड़कियों की बातों पर बहुत कम गौर किया जाता है। असल में किया ही नहीं जाता है। पर फिर भी कह रही हूँ।

जब तक इस दुनिया के किसी भी कोने में एक भी लड़की दर्द से चीख रही है, सिसक रही है तब तक महिला दिवस का कोई औचित्य नहीं है। न मेरे लिए न आपके इस दोगले समाज के लिए। जो मंच पर महिलाओं को सम्मानित करने का ढोंग कर रहा है और मंच के नीचे से उन पर छींटाकशी करने में कोई कसर नहीं छोड़ता। मुझे ऐसे समाज और परिवेश का हिस्सा बन कर अपनी आत्मा की हत्या नहीं करनी।

कौन कहता है महिलाएं आत्मनिर्भर हैं, सक्षम हैं? ये सब एक झूठा दिखावा है ईश्वर। न तो हम आत्मनिर्भर हैं, न ही सक्षम। हम तो अतिशय दुस्साहसी हैं। जो इस समाज के इतना पीछे खींचे जाने के बावजूद आगे आने से बाज़ नहीं आते। कभी आएंगे भी नहीं।

Wednesday, 5 February 2020

वापस आ जाओ....


हे ईश्वर
वो सारे दिन वापस आ गए हैं। वो फिर से नाराज़ हैं और इनको मनाना दिन पर दिन मुश्किल होता जा रहा है। मैं अकेली तो पहले भी थी पर वो मेरे साथ थे। दूर होकर भी हमेशा मेरे साथ थे। अब न जाने क्यूँ ऐसा लगता है अब मैं अकेली हूँ। उनके बिना एक दिन भी काटना कितना मुश्किल है। आपने मेरे साथ ऐसे क्यूँ किया? हम जब भी सोचते हैं हमें अकेले जिंदगी काटनी है आप हमारी जिंदगी में किसी को भेज देते हैं। हम खुशी से उनको स्वीकार कर लेते हैं। हमें पता है कोई भी लड़का कभी हमें समझ नहीं पाएगा। समझ भी गया तो आपका समाज उसे हमारे साथ रहने नहीं देगा। हर कोई सिर्फ कुछ दिन या कुछ साल का ही साथ है।

फिर किसलिए शादी का नाटक रचा लूँ? वो भी तो इसी समाज का हिस्सा होगा। कल को मेरे तौर तरीके, रंग ढंग (!) या मेरा व्यवहार उसे अच्छा नहीं लगा तो कहाँ जाऊँगी? बाहर की दुनिया में जो गंदगी है वही मेरे घर में होगी। हो सकता है सब अच्छा हो। पर विष खा कर कौन देखता है कि जहरीला है या नहीं।

मुझे जहर की परीक्षा करके नहीं देखनी। चाहे तो आपकी दुनिया मुझे अंगूर खट्टे हैं कहती रहे। पर ये अंगूर मुझे खाने ही नहीं।

जानती हूँ एक दिन उनके मन की कड़वाहट खत्म होगी। एक दिन वो मुझ पर भरोसा भी करेंगे। एक दिन मेरे साथ भी होंगे। पर वो दिन आते आते मेरी आत्मा कुछ इस कदर छलनी हो चुकी होगी कि मेरे अंदर किसी खुशी के लिए कोई जगह नहीं बचेगी। मेरे जीने की इच्छा बहुत पहले ही खत्म हो चुकी है। मेरी ज़रूरत भी किसी को नहीं है। मैं बस इसलिए जिए जा रही हूँ क्यूंकि जिंदगी हर किसी को नहीं मिलती। इस दुनिया में ऐसे भी लोग हैं जो सिर्फ एक दिन या एक साल और जीना चाहते हैं। ऐसी भी आखें हैं जो आपकी इस खूबसूरत दुनिया को नहीं देख पाती। ऐसे भी हाथ हैं जो आपकी इस खूबसूरत दुनिया को नहीं छू सकते। फिर मेरे तो सब कुछ सलामत है। अपनी जिंदगी को एक दिशा देना मेरे हाथ में है। वो दिशा मैं उसको ज़रूर दूँगी।

Tuesday, 28 January 2020

तुम होती कौन हो....?


हे ईश्वर

आपकी दुनिया में मुझे कोई हक़ हासिल नहीं। ये बात तो मुझे बहुत पहले ही पता लग गई थी। पर समय समय पर आपकी दुनिया मुझे इसका एहसास कराने से चूकती नहीं है। आज फिर एक बार इन्होंने भी यही किया। तुम होती कौन हो मेरे काम में दखल देने वाली। ये सब कुछ तुम्हारा तो है नहीं। जिस चीज़ के लिए मैं दिन रात प्रयासरत रहती हूँ, वो भी मेरी नहीं है। मेरे प्रयास इन्हें कम लगते हैं, मेरी कोशिश बेवजह लगती है। मेरा हर एक सुझाव बेकार लगता है।

मैं कभी नहीं चाहती थी कि पैसा और प्रभाव मेरे रिश्ते में दरार का कारण बने। पर आज वही एक चीज़ मेरी जिंदगी मुझसे छीन लेना चाहती है। नश्तर से लगते हैं उनके सारे कड़वे बोल। कभी कभी लगता है मैं सुनती भी क्यूँ हूँ? क्या मैं उनसे कम शिक्षित हूँ? नीचे पद पर हूँ या कोई गलत काम किया है? लेकिन नहीं। इसमें से कुछ भी सच नहीं। कभी कभी लगता है कि मैं इस सब में नहीं पड़ती तो अच्छा होता। पैसे हमेशा अपनों के बीच दरार डालने का काम करते हैं।

आज फिर इन्होंने एक चेतावनी दी है। आज फिर मेरी एक डेडलाइन खत्म हो जाएगी और मैं कुछ नहीं कर पाऊँगी। आज एक बार फिर मेरा रिश्ता टूटने की कगार पर है। सब हाथ से छूट जाएगा। कैसी होगी जिंदगी इनके बिना? सोच भी नहीं सकती। पर शायद अब सोचना पड़ेगा। बार बार का ये अपमान मुझसे सहा नहीं जा रहा है। फिर भी लगता है जैसे हम हमेशा साथ रहने के लिए बने हैं। हम ऐसे तो अलग नहीं हो सकते।

क्या होगा नहीं जानती। बस इतना जानती हूँ कि इनकी जिंदगी में मेरे जैसे असफल इंसान के लिए कोई जगह नहीं। इनके आस पास तो बस प्रभावशाली, अमीर और खूबसूरत लोग ही रहेंगे। दुनिया स्वार्थी होती है ये तो पता था लेकिन आपके अपने भी इस कदर नश्तर चुभा सकते हैं नहीं जानती थी। मन मजबूत किए जा रही हूँ। पहली बार थोड़े न है, समझा रही हूँ। खुद से कह रही हूँ कि मैं बहुत मजबूत हूँ। पर सच केवल मेरे घर की चारदीवारी को पता है।

ठीक है ईश्वर। अगर उसे मुझसे अलग ही करना है तो इतना करना कि वो हमेशा खुश रहे। उसका हर सपना पूरा हो और दुनिया के स्वार्थ और धोखे से वो दूर रहे। उसकी जिंदगी की सारी तकलीफ़ें दूर कर दो ईश्वर। उसे सुखी रखो, शांत रखो और हौसला दो। मैं उससे दूर सही पर उसके हर सपने को उस तक पहुंचा दो। उसे वही सफलता देना जिसका उसने न जाने कब से सपना देखा है।

अकेले हैं तो क्या गम है

  तुमसे प्यार करना और किसी नट की तरह बांस के बीच बंधी रस्सी पर सधे हुए कदमों से चलना एक ही बात है। जिस तरह नट को पता नहीं होता कब उसके पैर क...