Thursday, 19 December 2019

प्यार करती हूँ


हे ईश्वर

मेरी मदद करो! क्या कहूँ कल के बारे में? इतना मुश्किल क्यूँ है उसे यकीन दिलाना कि मैं सिर्फ उसकी हूँ? जिस सदी से औरत ने एक कदम दहलीज़ से बाहर निकाला है उस दिन से एक कठघरे में भी एक कदम रख दिया। सदियाँ बीत गई हैं पर वो कभी उस कठघरे से बाहर नहीं आई। कैसे समझाऊँ मैं उसे कि... मैं उसे कुछ नहीं समझाना चाहती। वक़्त हर चीज़ का जवाब दे देता है। इस बात का जवाब न जाने उसे कब मिलेगा कि मैं सिर्फ और सिर्फ उसकी हूँ, उसके लिए हूँ।
क्यूँ इतना मुश्किल है उसके लिए ये समझना कि मैंने सिर्फ घर से बाहर कदम निकाला है, उसकी जिंदगी से नहीं। मैं आज़ाद हूँ, उछृंखल नहीं। मेरे संस्कार, मेरी परवरिश और मेरे सिद्धान्त आज भी वही हैं।

मैं उसे प्यार करती हूँ। उसकी सारी मजबूरी और सारे निर्णय के साथ। जब तक मेरी आँखों में उसका चेहरा है, मैं क्यूँ किसी और को देखूँगी? पर वो भी तो पुरुष ही है न! आदमी अपनी ही उधेड़बुन में औरत को इतना उलझा देता है कि वो कुछ और सोच ही नहीं पाती

आर्थिक आज़ादी का कोई मायने नहीं अगर हमारी सोच आज भी ग़ुलाम है अपनी मानसिकता की। बिना सच जाने बस एक नज़र देखा और फैसला कर लिया? होते कौन हैं वो ये सोचने वाले कि मुझे किसी और की ज़रूरत है? कोई और... और कितने दिन तक लटकेगी ये कोई और की तलवार हमारे रिश्ते पर? क्यूँ?

ईश्वर, आप ही मेरे साक्षी हैं। न मैंने उससे न कभी खुद से कोई बात छुपाई है। फिर उसे ऐसा क्यूँ लगता है। तुम्हारी दुनिया तुम्हारा समाज मेरे अंचल पर दाग ही देखना चाहता है।मैं आपसे कहती हूँ, कुछ भी हो जाए मेरा सर मत झुकने देना। मैं तुम्हारी दुनिया की आँखों में मिर्च झोंक कर जी लूँगी।  पर मेरे अपनों की आंखों में जलन मत होने देना आप।

आज भले उसे मुझ पर यकीन नहीं पर मैं उस वक़्त का इंतज़ार करूंगी जब उसे मुझ पर यकीन होगा। मैं उसे बहुत प्यार करती हूँ ईश्वर। आप जानते हैं, उसे भी बता दो न! उसकी बुझी हुई आँखें मुझसे देखी नहीं जातीं। उसकी आँखों में मेरे लिए विश्वास ही देखना चाहती हूँ मैं। उसकी आँखों की चमक और होठों की हंसी ही मेरा सब कुछ है। कितने भी कठघरों में मुझे खड़ा कर लो, मेरा सत्य नहीं झुकेगा, न मिटेगा। उसके लिए मेरा प्यार ही मेरे लिए आपकी परछाई है। वो कितने भी रास्ते बदल ले, आना उसे मेरे पास ही है। है न?

Wednesday, 18 December 2019

मर्दानी II : साहस और क्षमता की अद्भुत दास्तां


एक और नारीवादी फिल्म आई और शोरशराबा शुरू हो गया। कुछ नया नहीं है से लेकर ऐसा थोड़ी न होता है। अति नाटकीयता और अविश्वसनीयता के इल्ज़ाम भी लगे। पर जब मैंने ये फिल्म देखी तो सबसे पहले मुझे सिर्फ दहशत महसूस हुई। डर लगने लगा था। इंसान के भेस में न जाने कैसे कैसे जानवर घूम रहे हैं इस दुनिया में। वैसे भी जिस तरह की घटनाएँ हमारे आस पास हो रही हैं, ऐसी किसी संभावना से इंकार भी तो नहीं किया जा सकता।

बहुत दिन बाद सतही और बिना सर पैर की कहानियों से अलग एक ताजी हवा के झोंके जैसी एक कहानी देखी। पर इस हवा के झोंके में एक सड़ांध भी है – पुरुष की बीमार और दमनकारी मानसिकता की सड़ांध!

हम जानते हैं शायद हर अच्छी कहानी की तरह ये कहानी भी ज़्यादा न देखी जाए। आखिर हमें तो केवल मनोरंजन चाहिए, हम बेसुध होना चाहते हैं। सोना चाहते हैं, फूहड़ हंसी से अपने अंदर की चीत्कार को दबा के रखना चाहते हैं। पर हमें ऐसा करना नहीं चाहिए। जब तक ये असहज सच्चाईयाँ हमारी आँखों में मिर्च नहीं झोंकेंगी, हम जागेंगे नहीं। हमें महसूस करना होगा हमारी जलाई गई बहन बेटियों के सीने की जलन को, तभी शायद पूरे देश में फैली हुई ये आग बुझेगी।

पर्दे पर दिखाई गई वहशत कुछ नई नहीं लगी। ऐसा हो रहा है, पूरी दुनिया में। पर किरदार के मुंह से निकले लफ्ज सुनकर मैंने कुछ लोगों को हँसते भी देखा। किसी मुसीबत में पड़ी हुई स्त्री की मदद करने के बजाय फोन में उन वीभत्स घटनाओं को कैद करने वाले समाज से मैं और क्या उम्मीद करूँ?

बहुत लंबा रास्ता तय करना है लेकिन अभी। अभी तो केवल हम इन सब सच्चाइयों को पर्दे पर दिखाने का साहस ही जुटा पाए हैं। जिस दिन इन्हें देखकर किसी का दिल दहल जाए, किसी वहशी दरिंदे का मन पिघल जाए, किसी कातिल के हाथ कांप उठें और किसी मासूम की जान और इज्ज़त बच जाए उस दिन हम अपनी मंज़िल तय कर चुके होंगे।

Wednesday, 11 December 2019

मैं वो नहीं हूँ!


हे ईश्वर

किसी पौधे को बाहर की धूप, हवा और पानी से ज्यादा उसकी अपनी जड़ें मजबूत करने की ज़रूरत होती है। अगर वो मजबूत हों तो फिर बाहर का कुछ भी उसे हिला नहीं सकता। अगर कुछ समय के लिए वो कटे, छँटे या टूटे भी तो फिर उठ खड़ा होने की ताकत हमें हमारी जड़ें ही देती हैं। हम टूटते भी पहले अंदर से ही हैं। फिर ही कहीं बाहर के थपेड़े हम पर असर कर सकते हैं।

ईश्वर आपने मेरी जड़ें बेहद मजबूत बनाई हैं। इसलिए तो बाहर के मौसम मुझे हिला देते हैं, पर मिटा नहीं सकते। मैंने अपनी जिंदगी में रिश्तों से हमेशा मात ही खाई है, शह का अभी कोई अवसर नहीं आया। अपने रिश्तों को संभालने के लिए लिए गए मेरे सारे निर्णय आज सवालों के घेरे में हैं, पर मैं जानती हूँ कि एक दिन सब समझ जाएंगे, सबको मिल जाएंगे अपने जवाब।

मैं अविवाहित क्यूँ रहना चाहती हूँ, उसका कोई एक कारण तो नहीं है। लेकिन अक्सर मुझे अपने इस निर्णय के लिए कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है। कैसे समझाऊँ और किसको समझाऊँ? मेरे अंदर इतनी ताकत नहीं है कि एक नए परिवार और परिवेश में ढल सकूँ। उम्र के इस दूसरे पड़ाव में अपनी आदतों और रहन सहन में कोई भी बदलाव मेरे लिए घातक सिद्ध हो सकता है। मुझे डर लगता है भगवान किसी को अपने जीवन में इतनी सारी जगह देने से।

इतना प्रयास करके, इतनी ईमानदारी बरत के भी मेरे इतने जतन से सहेजे हुए रिश्तों का ये हाल है! तो फिर नए रिश्ते न जाने किस कठघरे में मुझे खड़ा करेंगे? क्या क्या कैफ़ियतें मांगेंगे, बीते हुए सालों का न जाने कैसे आकलन करेंगे? ये सब न होता अगर मैं भी तुम्हारी दुनिया की तरह झूठी और मक्कार होती!

पर मैं वैसी नहीं हूँ। एक बार मैंने आपसे कहा था कि जीवन एक अधखुली या बंद किताब होना चाहिए। पर मेरा जीवन तो ऐसा नहीं है। इस किताब का कौन सा पृष्ठ न जाने कब खुल जाए, कौन कह सकता है?

पर एक बात तो है। मुझे आगे बढ़ने में वक़्त ज़रूर लगता है पर मैं कभी आगे बढ़ कर पीछे हटने में विश्वास नहीं रखती। फिर भी आपका समाज मुझे आज भी मेरे अतीत से ही जोड़ कर देखता है। ऐसे समाज में, ऐसे परिवेश में मैं एक नई शुरुआत की उम्मीद भी कैसे कर सकती हूँ?

Wednesday, 4 December 2019

प्यार करते हैं.....!!


हे ईश्वर
जब कोई मुसीबत आती है अपनों का पता भी अक्सर उसी वक़्त चल जाता है। आज जो हुआ उसे मुसीबत तो नहीं कह सकती बस कुछ ऐसा है जिसने मुझे चौंका दिया। बदलाव अक्सर इंसान को चौंका देता है। ऐसा ही कुछ हुआ जब मेरी जॉब में एक बदलाव की संभावना ने मुझे और मेरे अपनों को चौंका दिया। कुछ लोग हैं जिनको लगता है कि मैं इस बदलाव से घबरा गई हूँ। कुछ को लग रहा है मैं उनसे मदद की उम्मीद कर रही हूँ। कुछ को लगता है मैं चुपचाप जो भी हो रहा है उसे स्वीकार कर लूँगी।

क्या होगा नहीं जानती पर इतना जानती हूँ आज के इस हलचल में भी मुझे वो सुकून मिल रहा है जो मैंने कभी भी महसूस नहीं किया था। आज जिस तरह से मेरे लोग मेरी फिक्र कर रहे हैं, प्यार से बात कर रहे हैं पहले क्यूँ नहीं की कभी? मुझे कितना सुकून मिला उनकी बातों से कैसे बताऊँ? कितना अच्छा लगता है जब कोई कहता है मैं हूँ न!

जिंदगी में हमेशा मैं हूँ न बहुत ज़रूरी होता है। कोई तो होना ही चाहिए कहने वाला कि मैं हूँ न। मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा। मेरा परिवार भी सब कुछ भूल कर मेरे लिए मेरे साथ खड़ा है। वो भी कहने लगे हैं मैं अब हमेशा तुम्हारा ख्याल रखूँगा। कभी तुमसे बुरी तरह से बात नहीं करूंगा। जिस प्यार को हम उम्र भर तलाश करते हैं, वो प्यार हमेशा हमारे अपनों के दिल में रहता है। ज़रूरत होती है बस उसे ज़ाहिर करने की। 

शुक्रिया भगवान। जो भी है पर यही भरोसा तो मैं चाहती थी। यही प्यार है जिसके लिए तरसती थी। आज मुझे वो सब मिल गया है। कैसे शुक्रिया अदा करूँ आपका? जिस तरह से सब कुछ छोड़ कर मेरी समस्या सुलझाने में सब जुट गए हैं...मैं ये नहीं चाहती कि सब हमेशा सब कुछ छोड़ कर सिर्फ मुझ पर ध्यान दें पर प्यार से बात कर रहे हैं, मुझे समझ रहे हैं, मेरे लिए फिक्र कर रहे हैं मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।

आपने सचमुच मेरे जन्मदिन का तोहफा बेहद शानदार चुना है।

Saturday, 23 November 2019

अग्निकुंड II



हे ईश्वर
मेरे जन्मदिन का तोहफा तो बहुत शानदार चुना है आपने। मेरे घरवाले नाराज़ हैं, वो भी! पिछले कुछ दिनों से हम दोनों रोज़ काफी वक़्त साथ बिताते हैं, हँसते हैं, अच्छी बातें करते हैं। पर उन्होने जो भी सोचा था उसकी काली छाया हमारी इस खुशी पर मंडरा रही है। आज आपसे मिलने भी नहीं आ पाई। उन्होने कहा कि ईश्वर हर जगह है, चाहे जहां मिलो उनसे। पर सच कहूँ बड़ा अधूरा सा लगा था आज आपसे नहीं मिल पाने पर। क्यूँ नाराज़ हो इतना आप?

मैं एक बार फिर अपनी जिंदगी से हार रही हूँ। शुरू तो किया था इतने अच्छे से। क्यूँ बिगड़ गया मेरा दिन? आप मुझसे इतने नाराज़ क्यूँ हैं? बताइये? सब कहते हैं कि आप ही किसी की जिंदगी में कोई भी चीज़ लेके आते हैं, उसे सीखने का मौका देने के लिए, उसे बेहतर इंसान बनाने के लिए। मैं और कितनी बेहतर बनूँगी बताइये? मुझे अब किसी से कोई खुशी की उम्मीद नहीं। किसी तरफ से नहीं। मैं खुद को खुश न रखती होती, इतनी हिम्मत न रखती होती तो बहुत पहले हार मान लेती।

पर मैं आपसे वादा करती हूँ, मैं हार नहीं मानूँगी। खुशी जाएगी कहाँ, सुकून कितना दूर भागेगा मुझसे? मैं खोज लूँगी सुकून, ढूंढ लूँगी अपनी खुशी। मैंने बहुत मेहनत से बनाई थी अपनी जिंदगी। आपने मुझे इतना कुछ दिया है। खुशी भी मिल ही जाएगी। नहीं भी मिली तो क्या?

मैं आज आपसे कुछ माँगूँ? मुझे अपने पास आने दीजिये, प्लीज़। मैं आपसे मिलना चाहती हूँ। आज के बाद कभी भी, किसी के भी लिए मैं अपना निर्णय नहीं बदलूँगी। मुझे सुबह ही आपसे मिल लेना चाहिए था। है न? अब से मिल लिया करूंगी भगवान। 

थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी मुझे तभी सब ठीक होगा। मेरा सफर तो बड़ा लंबा है भगवान। बस एक चीज़ मत करना। मुझे मजबूरी में कोई भी निर्णय लेने को बाध्य मत करना। मजबूरी कायर लोगों के लिए होती है और मैं कायर नहीं हूँ। मैं अपने अकेलेपन को भरपूर जियूँगी, खुश रहूँगी। चाहे जैसी भी परिस्थिति हो मैं हमेशा अपना सिर ऊंचा रखूंगी और पाँव ज़मीन पर।

Thursday, 21 November 2019

मुंह की बात सुने हर कोई...


हे ईश्वर
आज मन बहुत उदास है... सुबह से। मेरा जन्मदिन आने वाला है और मेरी कोई योजना नहीं है। कभी होती भी नहीं थी पर आज पता नहीं क्यूं मन बहुत उदास है। कभी कभी लगता है मेरा अपना कोई है ही नहीं। न किसी की आँखों में मेरे लिए कोई चाह है न ही किसी के पास मेरे लिए वक़्त। क्या इसी खालीपन से बचने के लिए बार बार मुझे शादी करने की सलाह देते हैं सब? लेकिन भगवान इतने सारे रिश्तों से घिरे होकर भी मैं अकेली ही हूँ! इसके आगे आप चाहे रिश्तों की संख्या जितनी भी बढ़ा दो, मैं हमेशा इतनी ही अकेली रहूँगी जितनी आज हूँ।

मेरा कोई अपना नहीं है, ईश्वर। जिनके बीच मैं पैदा हुई, पली बढ़ी वो भी मेरे नहीं है। कहने को है मेरा एक भरा पूरा परिवार। लेकिन इतने बड़े परिवार में मुझे समझने वाला कोई भी नहीं। आजकल एक बार फिर तरह तरह के इल्जामों से छलनी कर देते हैं ये लोग मुझे। मैं दुनिया भर से लड़ सकती हूँ पर मेरे अपने खुद मुझे हारते हुए देखना चाहते हैं।

मैं बचपन से ही अकेली थी भगवान। इस बात का एहसास मुझे हर साल होता है इसी बीच में। जब मेरा जन्मदिन आता है। इस बार भी मेरे लिए कोई फोन नहीं आएगा, कोई तोहफा मेरा दरवाजा नहीं खटखटाएगा। मेरे घरवाले आजकल मेरे खिलाफ मोर्चा सा खोले बैठे हैं। पर एक बात कहूँ? एक बच्चे को दूसरे की छाया में ही बड़ा करना है तो आपको कोई अधिकार नहीं दूसरा बच्चा पैदा करने का।

दोनों अलग होते हैं, दो अलग इंसान। उसके रंग रूप, शौक, रुचियाँ, निर्णय और चुनाव सब अलग होते हैं। फिर भी अपने बड़े बच्चे से लगातार छोटे की तुलना करना कहाँ का इंसाफ है। मैं किसी की फोटोकॉपी नहीं हूँ, ईश्वर। एक भरी पूरी अलग इंसान हूँ। मेरे शौक अलग हैं मेरे निर्णय अलग हैं। उसमें और मुझमें उतना ही अंतर है जितना आकाश और पाताल में होता है। फिर भी आकाश तक नहीं पहुँच पाने वाले अपनी ही आग में झुलसते इस पाताल को नर्क बनाने पर तुले हैं। कैसे समझाऊँ इन लोगों को?

ये भी तो नहीं होता कि अगर वो मुझे नहीं समझ पा रहे तो एक सुरक्षित सम्मानजनक दूरी बना लें। पर नहीं! इन्हें मेरे नजदीक शायद इसलिए रहना है कि मुझे छलनी करते रह सकें। लगातार मुझे ये एहसास दिला सकें कि मैं कितनी गलत हूँ। गलत या सही मुझे आपने बनाया है। मैं अपने आप को सम्पूर्ण रूप से स्वीकार करती हूँ। मेरे निर्णय, मेरे शौक, मेरी रुचियों और मेरी हर कमी के साथ। मुझे किसी तोहफे, किसी फोन, किसी भी सहारे की ज़रूरत नहीं। थोड़ा सा टूटी ज़रूर हूँ पर संभल जाऊँगी, वादा करती हूँ!

जानती हूँ आज थोड़ा मुश्किल है, पर आने वाले कल में कोई न कोई खुशी, कोई न कोई उम्मीद मेरा इंतज़ार कर रही है। है न?

Saturday, 16 November 2019

खोया खोया चाँद


हे ईश्वर

आपसे क्षमा मांगू या सोच लूँ कि मैंने जो किया सही किया। दिल की पहली आवाज़ कभी गलत नहीं होती। जिस दिन हमारे बीच की कड़वाहट भुला कर मैंने उस औरत की चौखट पर कदम रखा था, उस दिन ही लग गया था कि मैंने कुछ गलत किया है। गलत तो था। वहाँ जो कुछ भी हुआ उसके बाद मुझे नहीं जाना चाहिए था। उस दिन भी तो कितना तमाशा हुआ था। फिर भी मैंने यही सोचा कि जो हो गया सो हो गया। अब एक नई शुरुआत करती हूँ। गलत सोचा भगवान।

जिस भी इंसान को मैं अपने दिल और अपनी जिंदगी से निकाल देती हूँ, उसकी तरफ मुझे पलट कर कभी नहीं देखना चाहिए। मुझे नहीं जाना चाहिए था। उस औरत के लिए सारी दुनिया कदमों में पड़ी है, मैं नहीं भी जाती तो शायद फर्क नहीं पड़ता। पर फिर भी मैंने उनकी बात का मान रखा। उस मान रखने के एवज़ में आज उन्होने मुझे कितना अच्छा सिला दिया है। कहते हैं तुम्हारी कोई इज्ज़त नहीं, मान सम्मान नहीं। मैं होता तुम्हारी जगह तो कभी नहीं जाता।

अब जब मेरे मन में उसके लिए वो कड़वाहट है ही नहीं, तो फिर झूठे अहम का नाटक क्यूँ करूँ? पर नहीं। वो तो चाहते हैं कि मैं अपने उसी दायरे में लौट जाऊँ, जहां मेरे अलावा कोई है ही नहीं। मैंने सच ही कहा था, ज़रा सी सफलता मिलते ही वो मुझे ऐसे भूल जाएंगे जैसे मैं कभी थी ही नहीं। सच ही सोचा था मैंने कि आगे जैसे ही कुछ और आकर्षक अवसर मिले, वैसे ही खत्म हो जाएगा मेरे किए हुए की कोई भी अहमियत।

आपका शुक्र अदा करती हूँ कि अपनी रोज़ी रोटी के लिए मैं उन पर निर्भर नहीं। कभी हो भी नहीं सकती। किसी पर भी। मुझे आपकी मर्द जात पर इतना विश्वास कभी नहीं होगा। होना भी नहीं चाहिए। लोगों को लगता है कि मेरी जिंदगी में पैसा ही सब कुछ है। पर सच तो ये है कि पैसे से ज़्यादा मैंने हमेशा अपने रिश्तों को अहमियत दी है।

पर अब से नहीं दिया करूंगी। मैंने उनको इतना प्यार दिया पर वो मेरे प्यार को मेरी कमजोरी समझे बैठे हैं। वैसे भी मैंने तो यही तय किया था न कि जिस दिन वो एक ऐसे मक़ाम पर पहुंचे जहां से आगे उन्हें मेरी ज़रूरत नहीं रही, तो मैं उन्हें उनके हाल पर छोड़ दूँगी। मेरी जिंदगी में उनकी ज़रूरत तो पानी जैसे है, कभी खत्म नहीं होने वाली। पर कितनी भी प्यास लगी हो मैं जूते में दिया हुआ तो पी नहीं सकती। अगर ये प्यास ही मेरा नसीब है तो यही सही। कम से कम कोई मेरे आत्म समान को तो चुनौती नहीं देगा। है न?

Tuesday, 12 November 2019

टुकड़े टुकड़े इश्क़


हे ईश्वर

उनको वापस लाने के लिए शुक्रिया। पता नहीं क्या है उनके साथ मेरा! कभी सोचती हूँ कि मैं खुद को और मजबूत बनाऊँगी, उनके बिना रहना सीखूंगी। यही सोच कर कहा था कि अगर आप नहीं चाहते तो कभी नहीं करूंगी आपसे बात। उनको अंदाज़ा भी नहीं मैं किस कदर दिल पर पत्थर रख कर जीती हूँ। जिस इंसान के बिना मैं एक पल भी नहीं रह सकती वो मेरे साथ एक पल भी बिताना नहीं चाहता। फिर भी मैं अपनी जिंदगी ऐसे जिए जा रही हूँ जैसे कुछ हुआ ही नहीं। हँसती हूँ, बोलती हूँ, काम भी करती हूँ। पर किसी भी सफलता का कोई मोल ही नहीं रह गया है जैसे।

आज जब उनकी आवाज़ सुनी तो लगा मैं कितनी खो जाती हूँ उनके बिना। मैं बहुत कुछ चाहती हूँ अपनी जिंदगी से पर मेरी हर ख़्वाहिश, मेरा हर अरमान अधूरा ही लगता है अगर वो साथ न हो। मैं सब कर सकती हूँ पर उन्हें मेरी तरफ से निराश होते नहीं देख सकती।

आज किसी ने उनको थोड़े से पैसे क्या दे दिए मेरा सारा किया धरा उनको अकारथ ही लग रहा है। किसी के रुपयों की चकाचौंध के आगे धूप में जली हुई मेरी उँगलियों की कोई कीमत नहीं। कहते हैं तुमने किया ही क्या है? मैंने किया ही क्या है? उसकी तरह मैंने अपनी नौकरी तो नहीं छोड़ी। उसकी तरह झोली भर रुपए तो नहीं दिए मैंने। मैंने तो बस हर कदम पर उनका साथ दिया है। कभी पैसे दिए, कभी समय, कभी श्रम, कभी मौके। पर नहीं। वो सब काफी नहीं है।

मैं आज अपनी जिंदगी में जिस मुकाम पर हूँ, मैं खुश हूँ। पर उनको मेरी सफलता से कोई सरोकार नहीं। अगर आज मैं उनके लिए ये सब कुछ छोड़ भी दूँ तो किस भरोसे से? वो क्या मेरा भविष्य संवार पाएंगे? अपनी ही कंपनी में एक मामूली कर्मचारी बन के क्या मैं रह पाऊँगी? सबसे बड़ी बात तो ये है कि जिस तरह ये मुझे बार बार अपनी जिंदगी से निकाल फेंकने पर उतारू हो जाते हैं, ऐसे में अपनी रोज़ी रोटी के लिए मैं इन पर कैसे निर्भर रह सकती हूँ? वैसे देखा जाए तो अब इन्हें मेरी कोई ज़रूरत भी तो नहीं। आ गए हैं न उनको झोली भर रुपए देकर उनकी मदद करने वाले। उन्हें मेरी काबिलियत पर विश्वास भी तो नहीं। वो कहते हैं कि तुम्हें काम करने का सलीका ही नहीं।

मेरे चारों तरफ फैली मेरी सफलता की कहानियों पर खुद मुझे भी अब विश्वास नहीं रहा। कितना भी अच्छा काम कर लूँ कानों में बस वही गूँजता है तुम इस सफलता के लायक नहीं हो। ये सारी तारीफ तुम्हारे लिए नहीं है। तुम्हें भीख में मिली है ये नौकरी। मैं दुनिया से लड़ सकती हूँ भगवान और उसे हरा भी सकती हूँ। पर मेरे बारे में उनकी इस राय के चलते मैं बार बार हार रही हूँ अपने ही आप से। काश उनकी जगह कोई और होता तो उसे मुंह तोड़ जवाब देती। पर उनको क्या कहूँ और कैसे कहूँ। उनके लिए मेरी कोई भी सफलता तब तक बेकार है जब तक उससे उन्हें कोई लाभ न हो। इसलिए अब मैं भी उनके लिए बेकार की हूँ। है न?


Thursday, 7 November 2019

तुम ही हो...


हे ईश्वर

मुझे माफ कर दो! किस मुंह से कहूँ आज मैं। एक मन है जो कहता है मेरी गलती नहीं है। एक है जिसे लगता है मैं थोड़ा और प्रयास कर सकती थी। इतना नाराज़ हो गए वो मुझसे कि बीच रास्ते में मुझे छोड़ कर चल दिए। बिना ये सोचे कि मैं वहाँ से कहाँ जाऊँगी। एक पल के लिए नज़र हटी और वो वहाँ नहीं थे। कैसे कहूँ मुझे कैसा लगा?

वो कहते हैं तुम ईश्वर से दुआ करो कि कभी मेरे नीचे तुम्हें काम न करना पड़े। मैं तो आपसे यही दुआ करती हूँ कि मुझे हमेशा उनके साथ काम करने का मौका मिले। आज वो मुझे गलत समझ रहे हैं ईश्वर क्यूंकि मेरी परिस्थितियाँ मेरा साथ नहीं दे रहीं। कारण चाहे जो भी हो, मैं सिर्फ उनके सुख और आराम के बारे में सोचती हूँ। उनका सुकून ही चाहती हूँ। उनकी सफलता की दुआ करती हूँ।

इतने पर भी आज मैं उनकी परेशानी की वजह बन गई। क्या करूँ मैं कि उनको सुकून मिले। क्या करूँ कि उनके रास्ते की सारी मुसीबतें दूर हो जाएँ। एक से एक अवसर उन्हें मिलें। यही चाहती हूँ मैं। जिस इंसान की आवाज़ सुने बिना मैं अपने दिन की कल्पना भी नहीं कर सकती आज उसी ने कह दिया मैं तुमसे बात करना ही नहीं चाहता इसलिए उसे दिखाने के लिए ही सही मैंने भी अपने आप को उससे थोड़ा दूर कर लिया है।

फिर भी मन का एक छोटा सा कोना है जिसमें बहुत से सवाल हैं। एक कोना जिसमें मेरे सहमे हुए अरमान हैं जो कहते हैं हम पूरे होने की कब तक राह देखें? कुछ सपने हैं जो टूटने के लिए ही देखे थे शायद। कुछ वादे हैं जो उन्होने तोड़ दिए।

ईश्वर मुझे माफ कर दो। मेरे प्रयास ईमानदार सही पर कम ज़रूर थे। मेरे प्रयासों में जो भी कमी है उसे दूर कर दो भगवान। उनके लिए जो भी कुछ सोचा है उसे पूरा कर दो। मेरी कमियों को दूर कर दो। फिर कभी ऐसा कोई मौका मत दो कि मेरे कारण उनको कष्ट पहुंचे। मैं खुद कुछ भी सह सकती हूँ पर उनकी नज़र में अपने लिए नफरत नहीं देख सकती। उस नफरत को प्यार में बदल दो भगवान।

Tuesday, 29 October 2019

मुझसे नाराज़ हो तो...


हे ईश्वर

कल इस बात का सबूत मुझे मिल ही गया कि मैं एक अदना सी इंसान हूँ, इसी दुनिया में रहने वाली, रहना चाहने वाली। सामाजिकता से पूरी तरह कटे फटे इस जीवन में पहली बार मेरी इच्छा  हुई थी किसी समाज का हिस्सा बनने की। एक उत्सव में भागीदारी करने की। कुछ क्षण मेरे अग्रजों के सानिध्य में बिताने की। पर उसका परिणाम ऐसा होगा मैंने कहाँ सोचा था, चाहा भी तो नहीं था।

एक बार फिर सुनना पड़ा मुझे कोई और है’! है क्या ईश्वर? अचानक से मैं भी उनके तय किए इल्जामों से खुद को घिरा पाती हूँ। सज़ा भी खुद ही सुना चुके हैं वो। सिर्फ इसलिए कि मैंने एक छोटा सा निर्णय लिया और उनको बताने से चूक गई। मुझे यही लगा था कि अचानक कहीं जाने का निर्णय लेना एक नगण्य सी बात थी। वैसे भी मैं कब उनसे कुछ पूछती हूँ। पर तुम्हारे संसार में जो हक़ पुरुष को हासिल है वो स्त्री को नहीं। इसलिए तो सुन रही हूँ उनके कहे अनकहे इल्ज़ाम। देख रही हूँ उनका बदला हुआ व्यवहार। आज अचानक ही मेरी हर हरकत संशय के दायरे से बाहर नहीं। कार्यालय से आए अनगिनत फोन, मुझे मिलने आए व्यक्ति, मेरा घर जाने का निर्णय सब सबूत हैं मेरी चरित्रहीनता के।

क्यूँ ईश्वर, कुछ दिन जैसे सुख में बीते थे मैं कितनी अभिभूत हो गई थी। खुश रहती थी, हल्का महसूस करती थी। अब वो सब कहाँ है? क्यूँ चला गया है? सिर्फ एक निर्णय ने सब बर्बाद कर दिया, मिटा दिया।

बहुत बार कहते हैं वो मुझे – तुम पर विश्वास नहीं है मुझे। कोई न कोई तो होगा ही। किसी भी आते जाते से मेरा नाम जोड़ देना उनके लिए रोज़ की बात है। बार बार उनके कहे को बस ये कह कर टाल देती हूँ कि वक़्त बताएगा। पर वक़्त है कि खामोश है, आपकी तरह!

क्यूँ करने देते हैं उसे मेरे आत्मविश्वास की हत्या? क्यूँ बोलने देते हैं उसे इतने कड़वे बोल? अपनी इतनी खूबसूरत ज़िंदगी में ये चरित्रहीनता का काला दाग लेकर कैसे जियूँ मैं? बताइये न? जिस इंसान के लिए मैंने सैकड़ों बार आपके आगे माथा टेका है, उसी की खुशी और सफलता की दुआ मांगी है वो इस कदर हृदयहीन क्यूँ है? क्या कभी आप मुझे कोई जवाब देंगे ईश्वर?

वो सदी भी मौन थी जब सीता धरती में समा गईं थीं और आज भी सब मौन है जब इस सीता को समा सकने लायक धरती नसीब ही नहीं है!

Sunday, 20 October 2019

तुम अच्छी नहीं दिखती


हे ईश्वर
मेरे आत्मविश्वास का किला वैसे भी रेत का ही बना था। आपको उसे ढहाने के लिए इतने बड़े पहाड़ की क्या ज़रूरत थी? किसी की तारीफ का एक छोटा सा झोंका ही काफी था। एक वो दिन था जब उसने मुझे अपशब्द कहे थे और मैं दो दिन तक घर से कदम बाहर निकालने का साहस नहीं कर पाई थी। एक आज का दिन है उसने ऐसा कुछ कहा कि मैं बिना किसी डर के जब चाहूँ, जैसे चाहूँ निकल सकती हूँ। या शायद एक बार फिर खुद को घर की चारदीवारी में ही क़ैद कर लेना होगा, इस बार हमेशा के लिए।
ईश्वर उसने कहा कि मेरे जैसी लड़कियों के साथ कुछ भी बुरा होने की संभावना नगण्य है क्यूंकि मैं अच्छी नहीं दिखती। मैं अच्छी नहीं दिखती! अचानक से मेरी सादगी पर बेतरह गुस्सा आने लगा मुझे। आईना हंसने सा लगा मुझ पर। कहा था न कि इस दुनिया में दिखावा ही सब कुछ है। क्यूँ अपने आचरण, चरित्र, सोच और ज्ञान पर मेहनत किए चली जा रही है। कुछ अपने चेहरे का भी तो सोच! क्या फायदा तेरी इन 300 किताबों का? गीत संगीत में तेरी रुचि का। कागज़ काले करने के तेरे इस गुण का? क्या फायदा भीड़ को संबोधित कर सकते की तेरी क्षमता का। एक चमकीले चेहरे और तड़क भड़क वाले परिधानों के सामने ये सब कुछ भी नहीं है।
अचानक से मन कर रहा है मैं अपने सारे अच्छे कपड़े जला दूँ, अपने काजल और लाली सब उठा के कचरे में फेंक दूँ। अपने सारे शालीन कपड़ों की जगह मैं भी चिथड़े लपेट कर सड़कों पर घूमा करूँ। कम से कम तब तो मैं उसको अच्छी दिखूंगी शायद?
कैसी कैसी बातें करती हूँ न मैं भी? पता नहीं क्यूँ? कह दिया तो कह दिया उसने। मैं क्यूँ इतना सोच रही हूँ! पर नहीं मेरा मन है कि शांत ही नहीं हो रहा। सोचे जा रहा है कि अगर कभी मेरे साथ कुछ भी गलत हुआ तो क्या वो मानेगा? या तब भी यही कह देगा कि इसके साथ तो ऐसा हो ही नहीं सकता क्यूंकि ये तो अच्छी नहीं दिखती।
अच्छा ही हुआ कि मैंने कभी चाय की ट्रे वाला सीन नहीं किया है। वरना अनगिनत बार यही सुनना पड़ता कि मैं अच्छी नहीं दिखती।

Sunday, 13 October 2019

झूठे इल्ज़ाम मेरी जान....II


तो आपको लगता है कि मेरा किसी के साथ कोई ऐसा वैसा रिश्ता है। आप इस भुलावे में रहना चाहते हैं तो बेशक रहिए। मैं आपको नहीं रोकूँगी। कहने को और बचा भी क्या है वैसे? मेरा चरित्र आपकी कसौटी का मुहताज नहीं है वैसे भी। हर बार यही कहती हूँ न मैं आपको, “मैं आपके साथ हूँ या नहीं, मैं आपके लिए वफादार हूँ या नहीं, मैंने आपको कोई धोखा दिया या नहीं, मेरे जीवन में कोई और है या नहीं...” इन सब सवालों का जवाब आपको वक़्त ही देगा। वक़्त ही सिखाएगा आपको हमारी कद्र करना। उस वक़्त के इंतज़ार में और उसी वक़्त के भरोसे ही काट रही हूँ मैं अपने दिन।
फिर भी जब भी आप मेरी तरफ उंगली उठाते हैं मन विद्रोह सा करने लगता है। मेरे आपके प्रति इतने सच्चे और ईमानदार होने के बावजूद आप मुझ पर विश्वास नहीं करते। ये बात मुझे अंदर ही अंदर खोखला कर रही है। क्यूँ हो रहा है ईश्वर मेरे साथ ऐसा? मैंने जब भी किसी पर विश्वास किया है हमेशा ठोकर ही खाई है। किसी ने मुझे कभी संभाला नहीं। सब गिराते ही चले गए। अब एक बार फिर मेरा कोई अपना ही मुझे धकेल रहा है। उसी नरक की तरफ जहां से निकले मुझे अभी दिन ही कितने हुए हैं?
मेरा मन इतना क्यूँ मरा हुआ है भगवान? मैं कुछ करती क्यूँ नहीं। जिया नहीं जा रहा है चीख चीख कर कहती हूँ मैं। क्यूँ मर नहीं जाती? क्या इतना भी साहस नहीं बचा मुझमें? और क्या देखना चाहती हूँ? और कितना अपमानित होना चाहती हूँ? और कितना अपमान सहने पर कह सकूँगी धरती माँ, मुझे स्थान दो! मैं माता सीता थोड़े न हूँ जो धरती की गोद मिले। मुझे तो माँ की गोद भी फिलहाल नसीब नहीं। बहुत दूर आ गई हूँ मैं अपने हर रिश्ते से।
अपने आप के भी पास नहीं रह पा रही हूँ मैं अब। क्या करूँ? आज फिर उसने गंदे और गलीज शब्दों में उस दूसरी औरत की तारीफ की। अपने आप पर शर्म सी आने लगी है मुझे। पटाखा, बारूद और माल जैसे शब्द तो केवल सड़क छाप मवालियों के मुंह से सुने थे आज तक। इस परिष्कृत रुचि वाले इंसान के मुंह से निकले तो विश्वास नहीं हुआ कि उसके जैसा इंसान ऐसी गलीज़ भाषा बोल भी सकता है। ऐसी निकृष्ट सोच रख भी सकता है।
क्या सचमुच यही मेरी नियति है ईश्वर? नरक और फिर एक और नरक का अंतहीन सिलसिला! कब और कैसे मिलेगी मुझे मुक्ति। बोलो न?

Wednesday, 9 October 2019

अग्निकुंड


हे ईश्वर
एक बार फिर से अंगारों पर चलने के लिए मुझे झोंक दिया गया है। एक बार फिर से वो वही सारी बातें करते हैं। तुम सुबह कहीं, शाम को कहीं होती हो। तुम्हारा कोई भरोसा नहीं। दूसरे लोग तुमसे कहीं अधिक कार्यकुशल हैं, सक्षम हैं। तुम सुबह से शाम तक सिर्फ लोगों की जी हजूरी में लगी रहती हो। वो अंगारे चबा रहे हैं और मैं खून थूकने लगी हूँ। जिया नहीं जाता मुझसे भगवान।
मैंने इसी नर्क से बचने के लिए अपनी जिंदगी खत्म करने का सोचा था। अब एक बार फिर वही सब ख्याल मुझे परेशान कर रहे हैं। एक इंसान इतना क्यूँ ज़रूरी है मेरे लिए। है भी तो ईश्वर वो इतना स्वार्थी क्यूँ है? एक स्वार्थ नहीं पूरा हुआ तो मैं इतनी निकृष्ट हो गई हूँ। उसने पहले तो मुझे आसमान में बिठाया और अब बड़ी बेरहमी से मुझे वहाँ से धकेल दिया है। बार बार टूटती हूँ, बिखरती हूँ।
मैंने उनका काम करने के लिए ही हाथ में लिया था, बर्बाद करने के लिए नहीं। लेकिन उन्हें कौन समझाए? वो ऐसे क्यूँ हैं भगवान? हार पर तो अपने हौसला बढ़ाते हैं, गिर कर फिर उठने को प्रेरित करते हैं! ये कैसे अपने हैं जो गिर जाने पर उठना ही मुश्किल कर देते हैं। एक तो मेरा हौसला पहले ही टूटा हुआ है, ऊपर से ये उसे और तोड़ रहे हैं। इतने पर भी मेरा मन है कि हार ही नहीं मान रहा।
जानती हूँ कि ये सब हमेशा नहीं रहेगा। शायद मेरा मन कठोर हो जाएगा। शायद सहने की हिम्मत आ जाएगी। शायद कुछ दिन बाद उनके ताने मुझ पर असर नहीं करेंगे। शायद मैं संभाल जाऊँगी। शायद ये, शायद वो! पर ऐसा कुछ नहीं हो रहा फिलहाल। इस वक़्त तो खून के घूंट पी कर सुनने ही पड़ेंगे उनके दिए सारे इल्ज़ाम। चरित्रहीन कहते हैं वो मुझे। सही तो है। जिस इंसान के सामने मेरा मन और जीवन एक खुली किताब है, उससे मुझे यही तो उम्मीद थी। इस एक इल्ज़ाम को तो साबित करने की भी ज़रूरत नहीं। बस कहना ही बहुत है। है न, ईश्वर?

Friday, 4 October 2019

किनारे मिलते नहीं


मेरे ईश्वर
आज का जैसा दिन आप मेरी जिंदगी में कभी मत लाना। मैं जो हमेशा सर उठा कर चलती हूँ उसका बस इतना ही कारण है कि मैंने कभी किसी का बुरा नहीं सोचा। वही मैं हूँ जो आज किसी का दिल दुखा कर आई हूँ। वो भी इस बुरी तरह। जितनी रातें मैंने जागते हुए बिताई हैं आज शायद वो भी बिताएगी। शायद आज वो भी उतना ही बेबस महसूस करेगी जितना मैं करती हूँ। शायद आज उसे भी अपने रंग रूप, साज शृंगार से उतनी ही अरुचि हो जाएगी जितनी मुझे है। शायद ऐसा हो भगवान या शायद नहीं। मैं नहीं जानती! मैं ये भी नहीं जानती कि जो मैंने किया वो सही था या गलत।

आज मैं बहुत थक गई हूँ भगवान। एक बार फिर लगा दी मेरे लोगों ने मुझ पर वही तुम भी उसके ही जैसी हो। तुम भी किसी दुहाजू के पीछे पड़ जाओगी एक दिन की कालिख। मैं कैसे समझाऊँ इन लोगों को! मेरी अपनी सोच है और अपना विवेक भी। मैं किसी और की परछाई नहीं एक स्वतंत्र व्यक्तित्व हूँ। इसलिए जो किसी और ने किया वो मैं भी करूंगी ऐसा कोई निश्चित नहीं है। मेरे मन में किसी के लिए दुर्बलता हो सही, पर अपनी सीमाएं मैं भली भांति जानती हूँ। कैसे समझाऊं इन्हें कि लोग अलग अलग होते हैं और उनके निर्णय भी। मेरी स्थिति- परिस्थिति कुछ भी हो मेरा संकल्प अटल है। मैं कभी कोई ऐसा काम नहीं करूंगी कि अपने आप से नज़र न मिला सकूँ।
जानती हूँ कि मुझे कितनी दूर जाना है और किसके साथ? ईश्वर मेरी ये हद पार करती ईमानदारी ही मेरे दुख का कारण बनी हुई है।

आज न जाने कितनी बार उन्होने कहा “तुम बेकार की बातें सोचती हो। खाली बैठी रहती हो इसलिए” मैं और खाली? सच? मुझे तो सांस लेने तक की फुर्सत नहीं। आज फिर लगा दी उन्होने तुम शादी कर लो की रट। सबको लगता है शादी ही मेरे अकेलेपन का अंतिम सहारा है। पर मेरा मन नहीं मानता। अगर वो भी मुझे नहीं समझ पाया तो मेरी आज़ादी बिना वजह ही कुर्बान हो जाएगी।

कैसे कहूँ और किससे कहूँ? बोलो भगवान? इतनी बड़ी सी आपकी दुनिया में इतनी छोटी सी बात कोई नहीं समझ सकता। जो शादियाँ लड़के वालों के लिए ब्लैंक चेक और लड़कीवालों के लिए ऋण का बोझ बनी हुई हैं ऐसी शादियों और ऐसे रिश्ते से मेरा विश्वास न जाने कब से उठ चुका है। जो मेरी नज़र में शादी है लोग उसे न जाने कितने ही नाम दे लें पर फिर भी कभी नहीं पहचान पाएंगे। मेरे जैसे लोग जो आज भी एकनिष्ठ प्रेम में विश्वास करते हैं उनको आपकी इस लेफ्ट और राइट स्वाइप वाली दुनिया में समझने वाला कोई नहीं, कोई भी नहीं।

Wednesday, 2 October 2019

नरक का द्वार


मेरी माँ
क्या सच में उन्होने वैसा ही किया है जैसा वो कहते हैं? क्या सचमुच वो हर वर्जना, हर मर्यादा पर पाँव रख सकते हैं अपनी ज़िद में अंधे होकर? क्या उनके लिए उनका अहंकार इतना बड़ा हो गया है? या सच में उस औरत ने इन पर कोई मोहिनी डाल दी है? क्या सच है भगवान? क्या मुझे कभी पता चलेगा? बताइये?

अगर ये सच है तो क्यूँ मुझे छोड़ कर आगे नहीं बढ़ सकते वो? यदि झूठ है तो ऐसा सफ़ेद झूठ बोलते उन्हें क्यूँ शर्म नहीं आई? आपने क्यूँ कहने दिया उनको ये सब? वो कहते हैं तुम्हारे बोले हुए अपशब्द ही तुम पर फलित होते हैं। सबको दिखती है मेरी कड़वी ज़ुबान पर उस कड़वी ज़ुबान के पीछे कितना दुखा हुआ मेरा दिल है। वो किसी को क्यूँ नहीं नज़र आता? सब कुछ दिया है आपने मुझे और मैं कोई नाशुक्री तो हूँ नहीं माँ। आपको शुक्रिया अदा करने और अपने घमंड से निजात पाने ही तो रखती हूँ हर साल ये व्रत। आपके नवरात्र मेरे जीवन के सबसे प्यारे दिन होते हैं। फिर उन्हीं दिनों के बीच में ये शूल क्यूँ?

मेरे ईश्वर मैं आपसे बस एक बात जानना चाहती हूँ। मेरे पूर्वजन्म में ऐसे कौन से पाप थे जिनका इतना भीषण दंड है? क्यूँ नहीं बंद होता मेरे बुरे कर्मों का बही खाता? क्यूँ नहीं पूरी होती मेरे लिए तय की हुई आपकी सारी की सारी सज़ा? क्या अपराध किया है मैंने भगवान जो सब कुछ होकर भी मेरा मन इतना अशांत रहता है?

क्या करूँ कि मुझे सुकून महसूस हो? सब कुछ करके देख लिया मैंने ईश्वर। आपसे प्रार्थना की, परोपकार किया, अपने जीवन और आचरण में ईमानदारी बरती और अपनी रोज़ी रोटी से हमेशा इंसाफ करने की कोशिश की। फिर भी मेरी कोशिशें न जाने क्यूँ कम पड़ जाती हैं। हर बार एक नया शूल, एक नई टीस, कोई नया विश्वासघात! क्यूँ? मैंने किसका दिल इतना दुखा दिया ईश्वर? जवाब दो न? नहीं तो अब तो माफ कर दो न मुझे!

Tuesday, 24 September 2019

तुम्हारी बददुआ


हे ईश्वर
एक चाणक्य हुआ करते थे जिनके अपमान ने एक पूरे साम्राज्य को धूल में मिला दिया। एक वो हैं जो आज मुझे बर्बाद करने की धमकी दे रहे हैं। आज का दिन जब मैं आपके पास दुआ करने आई थी उस दिन ये मुझे श्राप दे रहे हैं। मुझे अपने कानों पर और अपनी किस्मत पर विश्वास ही नहीं हो रहा। ईश्वर मैंने सिर्फ प्यार किया था। उस प्यार की इतनी बड़ी सज़ा आप मुझे क्यूँ दे रहे हैं? कुछ भी तो नहीं मांगा था मैंने आपसे? जो गलती मैंने की ही नहीं उसके लिए क्यूँ वो मुझे सज़ा देने पर उतर आए हैं? बोलो भगवान? आपको मुझ पर ज़रा भी दया नहीं आती न?

मैंने भी अब पक्का इरादा कर लिया है। मैं कुछ भी प्रतिवाद नहीं करूंगी और कोई सफाई भी नहीं दूँगी। मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिसकी मुझे सफाई देनी पड़े। मेरे सही गलत का फैसला करने का हक़ केवल आपका ही है। वैसे भी वो मुझे जितना दर्द देते रहे हैं वो कौन सा बददुआ से कम है। बस एक ही बात का मुझे दुख होता है। मैंने जिस इंसान के लिए फूल ही फूल बिछाने चाहे हैं वो मेरे रास्ते में कांटे बिखेरना चाहता है। कोई और करता ये सब तो समझती। पर वो तो मेरे अपने ही हैं। आज भले ही वो मुझे अपने रास्ते का पत्थर समझें पर असल में मैं उनके रास्ते की हर रुकावट ही हटाती आई हूँ और आगे भी हटाती रहूँगी।

बस विश्वास नहीं हो रहा कि जिसे मैं इतना प्यार करती हूँ वो मुझे बर्बाद देखना चाहता है, रोता हुआ देखना चाहता है। भगवान, इन्हें तो मेरे आँसू पोंछने चाहिए थे। मेरा साथ देना चाहिए, मेरे लिए लड़ना चाहिए। वही इंसान आज मेरे आमने सामने खड़ा है। क्यूँ?

बचपन से आज तक न जाने कितनों की बददुआ लेती आई हूँ। पहले अपने अभिभावकों की क्यूंकि मैंने किसी से प्यार किया था और उन पर विश्वास करके ये बात मैंने उनको बता दी। आज भी गूँजती है कानों में उनकी बात "भटकोगी जिंदगी भर। कभी इसके साथ कभी उसके साथ।" वही भटकन मेरी नीयति बन गई। मैं सचमुच प्यार की तलाश में न जाने कहाँ कहाँ भटकती फिरी। फिर ली थी उसकी बददुआ जिसने मेरा हाथ मांगा था। उसके हाथ में मेरा हाथ देने की हर तैयारी धरी रह गई थी जब मैंने उसका साथ देने से ही इंकार कर दिया। उसने भी तो कहा था "सब कुछ होगा तुम्हारे पास सिर्फ प्यार नहीं होगा।" तब से लेके आज तक मैं सिर्फ भटकती जा रही हूँ। सच कहूँ तो मैं तो सिर्फ अपने ही रास्ते चलती हूँ। लोग हैं कि मेरा रास्ता रोकते भी हैं, साथ भी चलना चाहते हैं और फिर छोड़ के भी खुद ही जाना चाहते हैं। वापस भी आ जाते हैं कभी कभी। पर मैं आगे बढ़ने के बाद कभी पीछे मुड़ने में विश्वास ही नहीं रखती।

मुझे लगा था इनके साथ शायद मेरी भटकन पर विराम लग जाएगा। चलते चलते थक सी गई थी। सोचा था कि शायद अब मुझे आराम आएगा। पर मेरी किस्मत में आराम आपने कहाँ लिखा है? वो कहते हैं मैं वो नहीं हूँ जिससे वो मिले थे। पर मैं आज भी वही हूँ। अगर आपकी इतनी बड़ी दुनिया में उनके जैसा इंसान मुझे नहीं पहचान सका तो फिर ऐसा कोई नहीं जो कभी मुझे सच में जान सकेगा। आज आपने मेरा प्यार पर से विश्वास ही उठा दिया ईश्वर। अच्छा किया। आप जो भी करते हैं अच्छा ही करते हैं। मुझे विश्वास है।

Monday, 23 September 2019

हमारी अधूरी कहानी



हे ईश्वर
बहुत सी लुका छिपी आजकल आप मेरे साथ करते रहते हैं। कभी छोड़ कर जाने की धमकियाँ, कभी इफरात प्यार। हमारे बीच का विश्वास ही मेरी सबसे बड़ी ताकत है। ईश्वर आज भी वो मुझे छोड़ के जाने की बातें कर रहे हैं। पर मेरे मन में बैठे हुए आप कहते हैं कि सब ठीक हो जाएगा। आपके ही भरोसे आज तक मैंने अपना हर कदम चला है। आप ही मुझे दिशा दिखते रहे हैं। आज भी मुझे विश्वास है कि आपके होते मेरा रिश्ता संभल ही जाएगा। अगर मेरा सफर उनके साथ इतना ही है और आज सचमुच हमारे साथ का आखिरी दिन है तो शुक्रिया! मैंने उनके साथ बेहद खूबसूरत सा समय बिताया है।  
ईश्वर ये सच है कि सबको सब कुछ नहीं मिलता इसलिए शायद मेरी जिंदगी में भी सब कुछ है सिवाय सुख चैन के। शायद यही कीमत हो मुझे मिली हुई सारी सफलता की। वैसे भी मैंने आपसे कहा ही था मैं कभी सवाल नहीं करूंगी। इसलिए नहीं करूंगी।
न जाने आपकी दुनिया में कितने ऐसे लोग हैं। जो आपसे कभी धन मांगते होंगे, कभी संतान तो कभी सफलता। कुछ लोग इंसाफ भी मांगते हैं। पर मैं आपसे कुछ नहीं मांग सकती। उसकी नज़र में अपने लिए इज्ज़त भी नहीं। आप जो भी मुझे देते हैं मैं उसी को सिर माथे लूँगी। मैं आपसे वादा करती हूँ। ईश्वर मैं बेशर्म हूँ क्या सच में? क्या वाकई में मैं बदल गई हूँ? क्या सच में मैं वो रही ही नहीं जिसे वो जानते थे? बताओ न ईश्वर?
पर आपसे एक बात कहूँ? मैं आज भी उनसे उतना ही प्यार करती हूँ जितना तब करती थी। आज भी उनकी हर इच्छा पूरी करनी का ही मन करता है। जितनी कड़वाहट आज उनके लहजे में है उतनी मेरे मन में नहीं। मैं आज भी उनके होठों पर हंसी और चेहरे पर सफलता ही देखना चाहती हूँ। आपसे मैंने जो वादा किया है मैं उस पर ही कायम रहूँगी। मैं उसी तरह आपके आगे सर झुका कर उनकी सफलता की दुआ करूंगी। आप उन्हें जल्दी सफलता दे देना भगवान और मुझे माफी कि मैंने उन्हें चोट पहुंचाई। इतना तो मुझे आपसे मांगना ही पड़ेगा।

Thursday, 19 September 2019

बेअसर लानतें


हे ईश्वर

सुने नहीं जाते उनके लगाए हुए इल्ज़ाम! अब बस!! उन्होने कहा था कि वो मेरा मान सम्मान रखेंगे, मुझे वो इज्ज़त देंगे जो मेरा हक़ है और मुझे हमेशा प्यार से ही रखेंगे। पर आज उनकी एक मांग न पूरी होने की कितनी बड़ी कीमत मैं रोज़ चुका रही हूँ। कहते हैं तुम सुबह से शाम तक करती ही क्या हो? मुझे जबकि खबर ही नहीं रहती सुबह से शाम और फिर रात भी न जाने कब हो जाती है। मेरा मन चुप सा होता जा रहा है। कान सुनते हैं पर दिल तक उनकी कोई बात नहीं पहुँच पा रही। क्या करूँ? आज का दिन ही न जाने कैसा है? पहले दी और फिर वो न जाने क्या कुछ बोलते चले गए। बिना ये सोचे कि उनकी बातें, उनके ताने किस कदर दिल को छलनी कर रहे हैं। दी का कहना है किसी को अपनी जिंदगी में आने दो। पर उसकी बातों का विरोधाभास मुझे उसकी बात मानने नहीं देता। मैं कभी नहीं भूल सकती जो उसने कहा था “अच्छा है कि तुम्हारी शादी नहीं हुई है। किसी की जिंदगी बर्बाद होने से बच गई।“ यकीन मानो बहन मैं खुद भी भगवान को रोज़ शुक्रिया अदा करती हूँ कि मेरे जीवन में रायते फैलाने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ मेरा है!

शायद वो सच ही कहते हैं कि मेरी आँख का पानी मर चुका है और कुछ भी कह लो मुझे कोई असर नहीं पड़ने वाला। कल से जो उनके धाराप्रवाह आशीर्वचन (!) शुरू हुए हैं। गोलाबारी अभी तक चल रही है, थमी नहीं। पर मैं शायद अब वो ध्वस्त इमारत हो चुकी हूँ जो पूरी तरह से धूल में मिल चुकी है। अब उस पर चाहे जितनी बार वार करो कोई असर नहीं होने वाला। सच ही कहा था उस दिन मैंने “जो मेरे साथ हो चुका है उससे बुरा मेरे साथ हो भी क्या सकता है!”

हो सकता है पर होगा कुछ भी नहीं। ईश्वर आपको मुझ पर और मुझे आप पर अटूट विश्वास है। मुझे पता है मैं इतना कभी नहीं गिरूंगी कि उठ न सकूँ। न ही आप इतने ऊंचे होंगे कभी कि मुझे हाथ न दे सकें। वो कहते हैं मैंने उनका अपना होकर उनको धोखा दिया, उनकी पीठ में छूरा घोंपा। सुना नहीं जाता भगवान। पर अपनी जिंदगी अब इतनी भी सस्ती नहीं लगती। अपने प्रयास इतने भी छोटे नहीं लगते। न ही ऐसा लगता है कि मेरी कार्यकुशलता में कोई कमी है। उनकी बातों का सर नहीं हो पा रहा। मन अपनी नई नई सफलता में ही डूबा है। अब तो धमकियाँ भी बेअसर हो चली हैं। मैं साहसी हो गई हूँ या बेशरम समझ नहीं आता। बस इतना समझ पा रही हूँ कि आज भी मैं उनका ही हित चाहती हूँ। हमारे बीच की ये गलतफहमी मिटा दो ईश्वर। मेरी मदद करो न।कुछ करो न!


Wednesday, 18 September 2019

किस्मत का दोष...


मेरे ईश्वर
अपमान का एक नया घूंट आज फिर ये मुझे पिलाने आ गए। एक बार फिर मेरी प्रतिभा,निष्ठा, विश्वास,योग्यता सब पर सवाल उठा दिया। कैसे कैसे विशेषण है न मेरे लिए – काहिल, कुटिल, झूठी और आज विभीषण। उनके अनुसार मैं  इनका वो अपना हूँ जो इनका ही गला काटने को तत्पर है। अलसुबह से देर रात तक बिना रुके काम करने वाली मैं इनके लिए बेकार हूँ। सिर्फ इसलिए कि मैंने इनके तय किए हुए समय के अनुसार इनको लाभ नहीं पहुंचाया। इनकी हर बात बिना शर्त मान लेने वाली मैं आज इनकी रखी शर्तों के बोझ तले दबती जा रही। कितना ही कर लूँ कुछ न कुछ रह ही जाता है। अभी कल ही तो इतने प्यार से बात कर रहे थे। आज ज़रा सी मुसीबत क्या आई, वो सारा प्यार हवा हो गया।
ये सिलसिला अब ज़रा पुराना हो चला है भगवान। ये मुझे कोसते हैं, गलीज से गलीज बातें बोलते हैं, मुझे दुख होता है। कभी बाद में ये माफी मांगते हैं, कभी मेरा दोष बता के मामला रफा दफा हो जाता है। अभी कुछ दिन पहले तो कह रहे थे तुम मेरे लिए कितना सोचती हो, कितना करती हो। सच तो है। मैं तो वो थी जो पड़ी रहती थी दफ्तर के एक कोने में। दीन दुनिया से अलग चुप चाप अपने में डूबी हुई। फिर इनके सारे संघर्ष मैंने अपना लिए। बीड़ा उठाया कुछ करने का और फिर मैंने अपने ही सुकून को खुद अपने ही हाथों से आग लगा ली। कितना भी कर लूँ, कुछ न कुछ रह ही जाता है। फिर उनके सारे ताने, उलाहने और किसी न किसी का नाम लेके मेरी योग्यता, शिष्टता, संस्कार और शिक्षा दीक्षा पर सवाल।
दुनिया के लिए हूँ मैं एक मेहनतकश, प्रतिभाशाली इंसान। उनके लिए तो किस्मत की धनी हूँ बस। मेरी योग्यता, मेरे संघर्ष और आज की मेरी हर सफलता उनकी नज़र में नगण्य है। क्या फर्क पड़ता है उन्हें अगर मैं बेहद नपे तुले शब्द बोलती हूँ। क्या फर्क पड़ता है अगर मेरे वक्तव्य प्रभावशाली हैं, मेरी आवाज़ में कशिश है, मेरा व्यवहार सौम्य है। ये सब कुछ उनकी नज़र में तुच्छ है, बेकार है।
मैंने हमेशा इनके ही सुकून के लिए, सुख चैन के लिए सोचा। आप जानते हैं न? तो बताओ क्यूँ बिछा रखे हैं इतने कांटे मेरे जीवन में? क्यूँ ईश्वर? कैसे पार करूँ ये नागफनी का जंगल? बोलो न!

Monday, 9 September 2019

सफेदपोशों की बस्ती में


हे ईश्वर

मेरी और कितनी परीक्षा लेना चाहते हैं आप? बताइये? पूछ पूछ कर हार गई पर आज उन्होने कोई जवाब नहीं दिया। कहते हैं कहने को कुछ नहीं बचा। ये किस किस्म का मज़ाक करते हैं कि मेरे होंठो पर हंसी की जगह आँखों में आँसू छलक जाते हैं! मैं और जीना नहीं चाहती कह कर आपके दिए जीवन का अपमान क्यूँ करूँ? इस दुनिया में न जाने कितने लोग बस एक और पल जीना चाहते हैं और उन्हें वो मुहलत नहीं मिलती। फिर मुझे क्यूँ आप जल्दी रुखसत की इजाज़त देंगे? क्यूँ आपकी दी हुई जिंदगी पर सवाल उठाऊँ? मैं खुश हूँ भगवान कि आपने मुझे सब्र का सबक सीखने के इतने मौके दिए।

ग़ालिब भी तो कह कर गए “रगों में दौड़ते रहने के हम नहीं कायल, जो आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है?” तो ठीक है! मैं भी तैयार हूँ खून के आँसू रोने के लिए। रुला लीजिये आप और भी मुझे। प्यार में शर्तें नहीं होतीं और शर्तों पर प्यार नहीं होता कहने वाली मैं अपने प्यार की हर शर्त मानती चली जा रही हूँ। उनकी शर्तें हैं कि खत्म ही नहीं होतीं! अब एक नई शर्त है। छोड़ दो मुझे! जिस चीज़ को बनाने के लिए मैंने इतनी कोशिशें की थीं उसी के लिए आज ये कहते हैं कि अगर तुम उसका हिस्सा होती तो वो भी बर्बाद हो जाती। सही तो है! जिस सपने के लिए मैंने इतनी सारी कोशिशें की हैं, आज वो कहते हैं वो कभी तुम्हारा था ही नहीं।  

मैं कहाँ साथ हूँ आपके? आप भी अकेले हैं और मैं भी। आपने खुद ही तो वो रास्ता चुन लिया था जो आपको मुझसे अलग लेके गया। मैं भी जानती हूँ आपको मेरे मरने जीने से कोई फर्क नहीं पड़ता, पड़ेगा भी क्यूँ? आपके चारों तरफ की इस भीड़ में मैं आपको नज़र ही कहाँ आती हूँ? आपको ही क्या मैं किसी को भी नज़र नहीं आती। आपको लगता है न कि मैं किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकती। सच तो ये है कि लोग खुद ही अपना सब कुछ बिगाड़ते चले आ रहे हैं। मैं भी। कहाँ से कहाँ आ चुकी हूँ पर न मेरा सफर खत्म होता है न मेरी तलाश।

मेरे ईश्वर इस सफर, तलाश और बनने बिगड़ने में मैं खुद को भी खो चुकी हूँ। बाहर की दुनिया के लिए मैं एक सफल, आत्मविश्वासी और बेहद प्रतिभाशाली इंसान हूँ। पर अपने घर की चारदीवारी में मैं खुद से ही हारी हुई हूँ। मेरा आत्मविश्वास और मेरे जीने की इच्छा सब मर चुके हैं। मैं न जाने क्यूँ और किसलिए ज़िंदा हूँ। जिनका मैंने इतना ख्याल रखा वो ही बोलते हैं मुझे कुछ पता नहीं। न जाने कैसे मिली मुझे ये नौकरी! आप ही बताओ न कैसे मिली थी मुझे ये नौकरी? क्या था मुझमें ऐसा? अभी कुछ दिन पहले एक ग्राम विकास अधिकारी ने अपनी प्रतिभा पर उठे सवालों से तंग आकर अपनी जान दे दी। कितने सारे प्रशासनिक उच्चाधिकारी अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे रहे हैं। इंसान ही इंसान का दम ऐसा घोंट देता है कि साँसो का रुक जाना साँसों के चलते जाने से ज्यादा आसान लगने लगता है। मुझे भी अब ऐसा ही लगने लगा है। जिंदगी हो या हमारा रिश्ता दोनों रेत की तरह हाथों से फिसलते जा रहे हैं। काश इस रिश्ते के बदले आप मुझसे मेरी जिंदगी ही ले लो। मैं अपना रिश्ता बचाना चाहती हूँ। मेरी मदद करो ईश्वर। प्लीज।

Tuesday, 27 August 2019

झूठे इल्ज़ाम मेरी जान...!


हे ईश्वर
तो ये थी उस रात की हक़ीक़त। उनका कहना है कि वो तो मेरे पास अचानक पहुँच कर मुझे चौंकाना चाहते थे। मुझे मिलने के लिए आने ही वाले थे और आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि वो मुझे मिले बिना आ गए हों। ऐसा कैसे हो जाता है भगवान कि हमेशा वो मेरे लिए कुछ अच्छा करने ही वाले होते हैं कि मेरी ही किसी बात पर नाराज़ होकर अपना इरादा बदल लेते हैं। ऐसा है तो मेरा इरादा कभी क्यूँ नहीं बदलता? कुछ भी हो जाए मैं क्यूँ हमेशा वही करती हूँ जो वो चाहते हैं? क्यूँ भगवान?
मैं ही क्यूँ हर बार दोषी हूँ?? क्या उनकी कभी कोई गलती नहीं होती? बड़ी आसानी से उन्होने ये साबित कर दिया कि मेरी जिंदगी कुछ और हो सकती थी। उन्हें मुझसे प्यार हो सकता था, मेरी कदर हो सकती थी, मेरी परवाह जता सकते थे। सब कुछ हो सकता था पर सिर्फ इसलिए नहीं हुआ क्यूंकि मेरी किसी बात ने उनका इरादा बदल दिया। कुछ भी कहने पर वो मुझे मेरी कमियाँ किसी पहाड़े की तरह गिना देते हैं। पर आजकल मुझे अपनी कोई भी गलती उतनी भी बड़ी नहीं लगती। आजकल अपना कोई भी गुनाह अक्षम्य नहीं लगता।
मैं कमजोर हूँ, मेरा विश्वास कच्चा है ये सच है। पर किसी ने भी कभी एक पल के लिए ये नहीं सोचा कि मेरा विश्वास इतना कच्चा क्यूँ है? मेरे साथ जो कुछ भी हुआ था उसके बाद कोई गुंजाइश नहीं बची कि मैं किसी पर विश्वास कर सकूँ। शायद मेरे अंदर वो कोमलता ही नहीं बची जो किसी रिश्ते को बचाए रखने के लिए ज़रूरी है। क्या नहीं देखा है मैंने? हर एक टूटते हुए रिश्ते के साथ मेरे अंदर का विश्वास भी मर गया।
अजीब लगता है जब दूसरों की हर इच्छा अनिच्छा बिना कहे समझने वाला इंसान मेरी पसंद नापसंद से इतना अंजान बन जाता है। मेरी बात आते ही उसकी संवेदनशीलता बुझ जाती है। क्यूँ? मैंने बेहद प्यार, ध्यान, समय, श्रम और धैर्य इस रिश्ते को दिया। पर हमेशा मेरी कोई कमी मेरे सारे प्रयास पर भारी पड़ जाती है।
मेरे परिवार वाले भी अब बेहद नाराज़ रहने लगे हैं। मैं अकेली पड़ती जा रही हूँ। या शायद मैं हमेशा से अकेली थी। मैं ही इस बात को देख नहीं पाती। हर बार यही चूक मुझसे हो जाती है। सबका ख्याल रखते रखते मैं अपने बारे में सोचना ही भूल गई हूँ। ईश्वर, मुझे एक बार अपने आप से प्यार करना सिखा दो।

Thursday, 22 August 2019

दुखवा मैं कासे कहूँ?


हे ईश्वर
कितना प्यारा सा रिश्ता था मेरा, तोड़ कर आपको क्या मिला? खुशफहमी ही सही, रहने देते। लोग यूं ही तो नहीं नशे में खुद को भूलने की कोशिश करते। मैं जानती हूँ कि गलत उसने किया था फिर भी मेरा ध्यान बार बार अपनी गलतियों पर जाता है। क्या बिलकुल ही मर गया है मेरा खुद पर यकीन? बताइये न? क्यूँ बार बार ऐसा लगता है जैसे गलती मेरी थी? वैसे भी अब तो मुझे आदत पड़ ही गई है। दूसरों से पहले खुद से उम्मीद लगाने की। अपने प्यार की सच्चाई को साबित करते करते भूल ही गई थी कि वो भी तो सच्चा होना चाहिए जिससे मैंने प्यार किया है। अब वही बातें उसकी, कोई और होगा, तुम उसी के साथ रहोगी। मैंने खुद को इस कदर समेट लिया है कि उसके अलावा कोई भी हो मुझे भीड़ ही लगती है, अपनापन नहीं।

मेरी जिंदगी में अब कहीं कोई खुशी नज़र नहीं आ रही। शायद मैं इसी दिन का इंतज़ार कर रही थी। कितना स्वाभाविक सा लगता है रात रात भर जाग कर बिताना। मेरा मन खुशी बर्दाश्त ही नहीं कर पाता। उसे तो दुख में ही जीना अच्छा लगता है। किसी भी इंसान की परिस्थितियाँ तब तक नहीं बदलती जब तक वो खुद नहीं बदलता। मैंने अपने को बदलने की हर संभव कोशिश कर ली, सब बेकार लगती है। ऐसे धूप छांव में न मैं पूरी तरह खुश रह पाती हूँ, न ही उदास। कभी कभी खुशी से नाचते झूमते दिन ऐसा बीतता है कि पता ही नहीं चलता। कभी कभी मन ऐसा डूबा रहता है कि बिस्तर से उठना तक दूभर हो जाता है।

उसका कहना है कि मैं नहीं तो कोई और ज़रूर होगा। पर जब से वो मिला मेरे दिल ने शिद्दत से बस एक ही तमन्ना की है। किसी दिन, किसी पल उसे एहसास हो कि उससे मिल कर मेरी हर चाह, हर इच्छा पूरी हो गई है। मन मार कर समझौता करना होता तो शादी कोई बुरा विकल्प नहीं था। सिर्फ कुछ दिन के लिए मुझे अपनी अंतरात्मा का गला घोंटना था। पर मेरा मन चीखने लगता है किसी और के नाम पर। एक रिश्ते में रह कर उसका मान न रख पाई तो अपनी ही नज़र में गिर जाऊँगी।

इस सब में मुझे बस एक ही बात का दुख होता है। उस औरत का मुझे नीचा दिखाने का अरमान पूरा हो गया। वो भी उस इंसान की नज़रों में जिससे मैं इतना प्यार करती हूँ। खैर! आप हैं तो एक दिन ज़रूर उसे अपनी गलती का एहसास होगा। पता नहीं वो लौटेगा तो मैं उसे स्वीकार कर भी पाऊँगी या नहीं। पर उसे मेरे पास वापस तो आना ही है। आना है न?

अकेले हैं तो क्या गम है

  तुमसे प्यार करना और किसी नट की तरह बांस के बीच बंधी रस्सी पर सधे हुए कदमों से चलना एक ही बात है। जिस तरह नट को पता नहीं होता कब उसके पैर क...