हे ईश्वर
मेरी मदद करो! क्या कहूँ
कल के बारे में? इतना मुश्किल क्यूँ है उसे यकीन दिलाना कि मैं सिर्फ उसकी हूँ? जिस सदी से औरत ने एक कदम दहलीज़ से बाहर निकाला है उस दिन से एक कठघरे में
भी एक कदम रख दिया। सदियाँ बीत गई हैं पर वो कभी उस कठघरे से बाहर नहीं आई। कैसे समझाऊँ
मैं उसे कि... मैं उसे कुछ नहीं समझाना चाहती। वक़्त हर चीज़ का जवाब दे देता है। इस
बात का जवाब न जाने उसे कब मिलेगा कि मैं सिर्फ और सिर्फ उसकी हूँ, उसके लिए हूँ।
क्यूँ इतना मुश्किल है उसके
लिए ये समझना कि मैंने सिर्फ घर से बाहर कदम निकाला है, उसकी जिंदगी
से नहीं। मैं आज़ाद हूँ, उछृंखल नहीं। मेरे संस्कार, मेरी परवरिश और मेरे सिद्धान्त आज भी वही हैं।
मैं उसे प्यार करती हूँ।
उसकी सारी मजबूरी और सारे निर्णय के साथ। जब तक मेरी आँखों में उसका चेहरा है, मैं क्यूँ
किसी और को देखूँगी? पर वो भी तो पुरुष ही है न! आदमी अपनी ही
उधेड़बुन में औरत को इतना उलझा देता है कि वो कुछ और सोच ही नहीं पाती।
आर्थिक आज़ादी का कोई मायने नहीं
अगर हमारी सोच आज भी ग़ुलाम है अपनी मानसिकता की। बिना सच जाने बस एक नज़र देखा और
फैसला कर लिया? होते कौन हैं वो ये सोचने वाले कि मुझे किसी और की ज़रूरत है? कोई और... और कितने दिन तक लटकेगी ये ‘कोई और’ की तलवार हमारे रिश्ते पर? क्यूँ?
ईश्वर, आप ही मेरे
साक्षी हैं। न मैंने उससे न कभी खुद से कोई बात छुपाई है। फिर उसे ऐसा क्यूँ लगता है।
तुम्हारी दुनिया तुम्हारा समाज मेरे अंचल पर दाग ही देखना चाहता है।मैं आपसे कहती हूँ, कुछ भी हो जाए मेरा सर मत झुकने देना। मैं तुम्हारी दुनिया की आँखों में मिर्च
झोंक कर जी लूँगी। पर मेरे अपनों की आंखों
में जलन मत होने देना आप।
आज भले उसे मुझ पर यकीन नहीं पर मैं उस वक़्त का इंतज़ार करूंगी जब उसे मुझ पर यकीन
होगा। मैं उसे बहुत प्यार करती हूँ ईश्वर। आप जानते हैं, उसे भी बता
दो न! उसकी बुझी हुई आँखें मुझसे देखी नहीं जातीं। उसकी आँखों में मेरे लिए विश्वास
ही देखना चाहती हूँ मैं। उसकी आँखों की चमक और होठों की हंसी ही मेरा सब कुछ है। कितने
भी कठघरों में मुझे खड़ा कर लो, मेरा सत्य नहीं झुकेगा, न मिटेगा। उसके लिए मेरा प्यार ही मेरे लिए आपकी परछाई है। वो कितने भी रास्ते
बदल ले, आना उसे मेरे पास ही है। है न?